दोस्तों, नेतृत्व करना एक ख़ास कला है ,जो सामान्य व्यक्तित्व के अन्दर नहीं होती ! श्रेष्ठतम लीडर वही बन पाता है ,जो लोगों के दिलों पर राज करता है ! और जिसकी personality को हर कोई स्वीकारता है ! ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने वाले लोग अपना सब कुछ उस पर निछावर करने के लिए तत्पर होते हैं ! आइये जानते हैं उन 16 गुणों को ,जो effective leadership के लिए आवश्यक हैं ---- अनुशासन प्रिय होना ---- एक नेतृत्व कर्ता को स्वयं अनुशासित जीवन जीना चाहिए ! और समय पर हर काम को पूरा करना चाहिए ! ऐसा होने पर ही उसके Subordinate और colleague अनुशासित रहेंगे और अपने निर्धारित कार्यों को समय पर पूरा करने का प्रयास करेंगे ! श्रमशीलता --- जो व्यक्ति श्रम को ही पूजा मानते हैं तथा अपेक्षा से अधिक काम करने की चाहत व क्षमता रखते हैं ,वे ही अपने सहकर्मियों को और अधिक अच्छा करने की प्रेरणा दे सकते हैं ! उत्तरदायी होना ---व्यक्ति को अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार या उत्तरदायी होने के साथ -साथ अपने अंतर्गत काम करने वालों की गलतियों व असफलताओं के दायित्व को स्वीकार करने का साहस भी होना चाहिए ! ऐसा किये बिना उनके विश्वास को नहीं जीता जा सकता ! वस्तुनिष्ठ व्यवहार ---सफल नेतृत्व कर्ता के व्यवहार में निष्पक्षता एवं सोच में वस्तुनिष्ठता का गुण होना चाहिए ! इसके लिए Personal relationships को professional relationships से बिलकुल अलग रखा जाना चाहिए ! साहस ---नेतृत्वकर्ता को साहस का परिचय देते हुए चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए और अपना पुरुषार्थ करना चाहिए ! जो व्यक्ति आत्मविश्वास से भरपूर और निर्भय नहीं होते हैं ,उनके नेतृत्व को बार-बार चुनोतियाँ मिलती रहती हैं और ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को उसके सहकर्मी लम्बे समय तक स्वीकार नहीं कर पाते ! स्वनियंत्रण ---नेतृत्व कर्ता को अपनी वाणी एवं व्यवहार ,अपने नियंत्रण में रखना आना चाहिए ! क्योंकि नेतृत्व कर्ता के मर्यादाहीन व्यवहार से उसके नियंत्रण में काम करने वाले लोग भी मनमानी करने लगते हैं ! सही निर्णय लेने की क्षमता ---जो व्यक्ति अपने निर्णयों को बार-बार बदलता है , उसकी निष्पक्षता और बुद्धिमत्ता संदिग्ध रहती है ! इसीलिए नेतृत्व कर्ता को ठीक से सोच विचार कर दूरदर्शिता के साथ सही निर्णय लेना आना चाहिए ! स्पष्ट योजना ---एक सफल नेतृत्व कर्ता केवल अनुमान के आधार पर कोई कार्य नहीं कर सकता ! उसे कार्य की योजना बनाना और योजनानुसार कार्य करना आना चाहिए ! सहानुभूतिपूर्ण सोच ---एक नेतृत्व कर्ता को सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण सोच वाला होना चाहिए ! साथ वालों का बुरा न हो और यथा संभव भला हो ,ऐसे व्यवहार से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है ! शालीन व्यवहार ---कहते हैं ,व्यक्ति वाणी से ही दोस्त और दुश्मन बनाता है ! वाणी में मिठास और व्यवहार में शालीनता व्यक्ति को समूह में स्वीकृति दिलवाती हैं ,जो नेतृत्व की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ! सहकारिता की प्रवृति ---नेतृत्व कर्ता अपने हर काम को सहकार अर्थात एक सबके लिए ,सब एक के लिए की भावना से करता है ! वो अपने समूह की सफलता में ही अपनी सफलता देखता है ! अहम् से दूरी ---नेतृत्व कर्ता में अपनी कमजोरियों या गुणों के सम्बन्ध में किसी प्रकार की ग्रंथि नहीं होनी चाहिए ! उसे अपने अहम् को दूर रख यथार्थ को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए ! संस्थान के लिए समर्पण भावना ---जो अधिकारी अपने संस्थान के हितों के प्रति समर्पित नहीं होता , उसे अपने अधीनस्थों से भी ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए ! जानकारी की पूर्णता ---नेतृत्व कर्ता को अपने संस्थान के प्रत्येक कार्य की थोड़ी या अधिक जानकारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए ! इसके अभाव में उसको सहायकों द्वारा मुर्ख बनाये जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ! संपर्कों से सुद्रढ़ता ---नेतृत्व कर्ता का व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक क्षेत्रों से भी संपर्क होना चाहिए और उनकी जरुरत के समय यथा संभव सहयोग भी करना चाहिए ! इससे उसे भी अन्य लोगों का सहयोग मिलेगा ! अनोपचारिक सम्बन्ध ---नेतृत्व कर्ता को अपने सम्बन्ध को प्रगाढ़ करने के लिए अपने साथियों की खुशियों में उत्सव मनाने और विपत्ति के समय सहानुभूति व्यक्त करने से संबंधों में प्रगाढ़ता बढती है ! नेतृत्व कुशलता एक ऐसी कला है ,जिसके माध्यम से बहुत आसानी से बड़े-बड़े असंभव कार्यों को भी सरलता के साथ किया जा सकता है ! बिना मार्गदर्शन के आगे बढ़ने में भटकाव ही होता है ! और किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं होती है ! बिना नेतृत्व के इकठ्ठा हुयी भीड़ से कुछ ख़ास कार्य नहीं कराया जा सकता , वहीं सही नेतृत्व से सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के द्वारा भी युद्ध जीता जा सकता है !
आज स्थान चाहे राजनीति हो, अथवा व्यवसाय जगत, नेता उसको कहेंगे, जिसके साथ काम करने में लोग खुशी का अनुभव करें। ऐसा व्यक्ति, जो उन्हें नींद से जगाए, उनमें उत्साह का संचार करे, उनके अच्छे गुणों का सदुपयोग करना जाने, परन्तु अन्तत: उनका सच्चा हितचिन्तक व मित्र हो।
एक नेता को चुनौतियां पसन्द होती हैं। वह घर में सुख-चैन से बैठना पसन्द नहीं करता। वह देखता है कि जिस क्षेत्र में वह व्यस्त है, उसमें अन्य लोग क्या कर रहे हैं, कहां पहुंच रहे हैं, और कौन से नये तरीके ढूंढ़ रहे हैं। नेता परिस्थितियों का जायज् ाा बहुत जल्दी ही ले लेता है और उसके अनुसार अपने आप को ढालने और अपने अभीष्ट का चयन करने में बहुत जल्दी उद्यत हो जाता है।
जब इस दृष्टि से हम भारत में शासन का इतिहास देखते हैं तो हमें नूरजहां में एक जगमगाता नेतृत्व वाला व्यक्तित्व दिखलाई देता है। जहांगीर के इशारे पर नूरजहां के पहले पति शेर अफगान की हत्या की गई थी। उसके पश्चात जहांगीर से विवाह प्रस्ताव को नूरजहां ने स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह के पश्चात अपनी चतुराई, सृजनशीलता और मेहनत के बल पर धीरे-धीरे नूरजहां की ताकत बढ़ती गई। कहा जाता है कि न्यायालय के फैसले तक नूरजहां के इशारे पर ही बादशाह द्वारा किये जाते थे। वे पर्दे के पीछे बैठती थीं और हाथ की थपकियों से जहांगीर को अपने अभिमत से अवगत कराती थीं। यद्यपि विद्वत्ता में जहांगीर उनसे कहीं अधिक आगे थे। उनके समय में कलाओं, महिलाओं के तरह-तरह के पहनावों की सजावट, आभूषणों और विभिन्न कारीगरियों की अत्यधिक प्रगति हुई। शाहज् ाादा खुर्रम (शाहजहां) से अपनी बेटी लाडली बेगम का विवाह करवाने की नूरजहां ने पुरजोर कोशिश की परन्तु सफलता न मिल सकी। जहांगीर अत्यधिक शराब सेवन की वजह से धीरे-धीरे बीमार और नि:शक्त हो गए तथा मृत्यु को प्राप्त हुए, तब नूरजहां ने भी हथियार डाल दिए। उनकी लाहौर शहर में बनी कब्र पर यह शेर लिखा गया है:-
इस गरीब अजनबी की कब्र पर न तो चिरागां हो कोई चिराग
न चढ़ाए जाएं गुलाब, न किसी परवाने के पंख जलें
न ही कोई कोयल गाए राग।
यदि आज का जमाना होता, तो जहांगीर के देहान्त के बाद नूरजहां ड्रेस डिजाइनर बन कर अमेरिका चली गई होती और करोड़ों कमातीं। परन्तु वह जमाना और था। उस समय उन्हें और कोई रास्ता नहीं सूझा, सिवाय निराशा के। सरकार व निजी उपक्रमों में किसी भी नियुक्ति के समय, व्यक्ति में नेतृत्व की गुणों को प्रश्रय दिया जाता है। यही कारण है कि केन्द्रीय शासन के कर्मचारियों की भर्ती के दौरान उनसे पूछा जाता है, कि क्या उन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान किसी प्रतिद्वंद्विता, एनसीसी, राष्ट्रीय सेवा योजना, खेल इत्यादि में भाग लिया? यह भी कि वे अपने खाली समय में क्या करते हैं। कुछ लोग संगीत, सिनेमा आदि का आनन्द लेते हैं, जबकि शेष लोग खेल, पहाड़ों पर चढ़ना, भ्रमण और नाटक आदि में हिस्सा लेते हैं।
नेतृत्व मनुष्यों से सीधे-सीधे सम्पर्क करने तथा उनमें एक ही भावना का संचार करना, एक ही लक्ष्य सामने रख कर चलने के लिए प्रेरित करने का नाम है। इसके रास्ते में जो पध्दति है उसमें नेता अपने दल के सदस्यों से आगे तो रहता है, परन्तु इतना आगे नहीं, कि उसे पीछे वालों की सुध ही न रहे। नहीं, वह पीछे रहकर उन्हें ठेलता है। वह उनके थोड़ा आगे और थोड़ा घूमते हुए साथ ही चलता है। वह उन्हें प्रोत्साहित भी करता है और लक्ष्य का आकर्षण भी समझाता है। यह लक्ष्य एकदम स्थूल या आर्थिक होना पर्याप्त नहीं है। यह उनके अन्दर से आना चाहिए और ऊपर सामने दिखाई देते लक्ष्य से भी ऊपर, थोड़ा आध्यात्मिक भी होना चाहिए। नेता को नेतृत्व करते हुए, अपने अहं को मिटाना और अपने निजी दर्शन को अपने पीछे आने वालों में समाहित करना होता है। उसे अपने दल के मौलिक सोच में परिवर्तन लाना होता है। अन्य शब्दों में कहें तो वह लक्ष्य न केवल उनके स्वयं के आर्थिक लाभ की दृष्टि से प्राप्य हो, बल्कि समूची मानवता का कल्याण करने की भावना से भी ओत-प्रोत हो। नेता को अपने दल के लोगों के हृदय में उनके अन्त:स्थल में अपनी जगह बनानी होती है। यह तब तक संभव नहीं है जब तक उसे अपने दल के लोगों से सच्चा प्रेम न हो। प्रेम से बोले गये शब्दों में नमी और आदर होते हैं। ये हरेक मनुष्य को अत्यन्त प्रिय होते हैं।
सच्चे नेता बोलते हैं तो अपने गुणों का बखान करने के लिए नहीं, बल्कि अपना मूल्यवान अनुभव बांटने के लिए बोलते हैं। उनकी बातों में सार होता है। वे बताते हैं कि उनके सामने कौन सी चुनौती आई। जैसे, कि महात्मा गांधी ने अपनी जीवनी में लिखा है कि, पहली बार जब दो स्त्रियां उनसे मिलने आर्इं तब वे उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे सके चूंकि उनका ध्यान अपनी ही शारीरिक प्रतिक्रिया पर अधिक केन्द्रित हो गया। उन्होंने अपने सरलतम शब्दों में यह भी बताया कि कैसे दक्षिणी अफ्रीका में रहते हुए उनके संपर्क में न केवल गुजराती हिन्दू समुदाय के लोग आए, बल्कि दक्षिण भारत के प्रान्तों के लोग व मुस्लिम सभी आए और उन सबकी मित्रता बाद में पूरे भारत में उनका मित्र वर्ग स्थापित करने में खूब काम आई। अन्तत: इस सबका लाभ उन्हें भारत की देशव्यापी स्वतंत्रता आंदोलन चलाने में मिला।
इस प्रकार सच्चा नेतृत्व के उच्चतर आदर्श लिए हुए होता है। बकौल ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के, एक छोटा सा लक्ष्य लेकर चलना तो एक अपराध है। मनुष्य को अपना मानसिक धरातल विस्तृत रखना चाहिए। चूंकि भले ही मनुष्य कमल के समान रहता स्थूल जगत में है, परन्तु उसकी अभीप्सा ऊंची (आकाश के सामने) होती है और उसकी खुशबू दूर-दूर तक फैलती है।
आज स्थान चाहे राजनीति हो, अथवा व्यवसाय जगत, नेता उसको कहेंगे, जिसके साथ काम करने में लोग खुशी का अनुभव करें। ऐसा व्यक्ति, जो उन्हें नींद से जगाए, उनमें उत्साह का संचार करे, उनके अच्छे गुणों का सदुपयोग करना जाने, परन्तु अन्तत: उनका सच्चा हितचिन्तक व मित्र हो।
एक नेता को चुनौतियां पसन्द होती हैं। वह घर में सुख-चैन से बैठना पसन्द नहीं करता। वह देखता है कि जिस क्षेत्र में वह व्यस्त है, उसमें अन्य लोग क्या कर रहे हैं, कहां पहुंच रहे हैं, और कौन से नये तरीके ढूंढ़ रहे हैं। नेता परिस्थितियों का जायज् ाा बहुत जल्दी ही ले लेता है और उसके अनुसार अपने आप को ढालने और अपने अभीष्ट का चयन करने में बहुत जल्दी उद्यत हो जाता है।
जब इस दृष्टि से हम भारत में शासन का इतिहास देखते हैं तो हमें नूरजहां में एक जगमगाता नेतृत्व वाला व्यक्तित्व दिखलाई देता है। जहांगीर के इशारे पर नूरजहां के पहले पति शेर अफगान की हत्या की गई थी। उसके पश्चात जहांगीर से विवाह प्रस्ताव को नूरजहां ने स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह के पश्चात अपनी चतुराई, सृजनशीलता और मेहनत के बल पर धीरे-धीरे नूरजहां की ताकत बढ़ती गई। कहा जाता है कि न्यायालय के फैसले तक नूरजहां के इशारे पर ही बादशाह द्वारा किये जाते थे। वे पर्दे के पीछे बैठती थीं और हाथ की थपकियों से जहांगीर को अपने अभिमत से अवगत कराती थीं। यद्यपि विद्वत्ता में जहांगीर उनसे कहीं अधिक आगे थे। उनके समय में कलाओं, महिलाओं के तरह-तरह के पहनावों की सजावट, आभूषणों और विभिन्न कारीगरियों की अत्यधिक प्रगति हुई। शाहज् ाादा खुर्रम (शाहजहां) से अपनी बेटी लाडली बेगम का विवाह करवाने की नूरजहां ने पुरजोर कोशिश की परन्तु सफलता न मिल सकी। जहांगीर अत्यधिक शराब सेवन की वजह से धीरे-धीरे बीमार और नि:शक्त हो गए तथा मृत्यु को प्राप्त हुए, तब नूरजहां ने भी हथियार डाल दिए। उनकी लाहौर शहर में बनी कब्र पर यह शेर लिखा गया है:-
इस गरीब अजनबी की कब्र पर न तो चिरागां हो कोई चिराग
न चढ़ाए जाएं गुलाब, न किसी परवाने के पंख जलें
न ही कोई कोयल गाए राग।
यदि आज का जमाना होता, तो जहांगीर के देहान्त के बाद नूरजहां ड्रेस डिजाइनर बन कर अमेरिका चली गई होती और करोड़ों कमातीं। परन्तु वह जमाना और था। उस समय उन्हें और कोई रास्ता नहीं सूझा, सिवाय निराशा के। सरकार व निजी उपक्रमों में किसी भी नियुक्ति के समय, व्यक्ति में नेतृत्व की गुणों को प्रश्रय दिया जाता है। यही कारण है कि केन्द्रीय शासन के कर्मचारियों की भर्ती के दौरान उनसे पूछा जाता है, कि क्या उन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान किसी प्रतिद्वंद्विता, एनसीसी, राष्ट्रीय सेवा योजना, खेल इत्यादि में भाग लिया? यह भी कि वे अपने खाली समय में क्या करते हैं। कुछ लोग संगीत, सिनेमा आदि का आनन्द लेते हैं, जबकि शेष लोग खेल, पहाड़ों पर चढ़ना, भ्रमण और नाटक आदि में हिस्सा लेते हैं।
नेतृत्व मनुष्यों से सीधे-सीधे सम्पर्क करने तथा उनमें एक ही भावना का संचार करना, एक ही लक्ष्य सामने रख कर चलने के लिए प्रेरित करने का नाम है। इसके रास्ते में जो पध्दति है उसमें नेता अपने दल के सदस्यों से आगे तो रहता है, परन्तु इतना आगे नहीं, कि उसे पीछे वालों की सुध ही न रहे। नहीं, वह पीछे रहकर उन्हें ठेलता है। वह उनके थोड़ा आगे और थोड़ा घूमते हुए साथ ही चलता है। वह उन्हें प्रोत्साहित भी करता है और लक्ष्य का आकर्षण भी समझाता है। यह लक्ष्य एकदम स्थूल या आर्थिक होना पर्याप्त नहीं है। यह उनके अन्दर से आना चाहिए और ऊपर सामने दिखाई देते लक्ष्य से भी ऊपर, थोड़ा आध्यात्मिक भी होना चाहिए। नेता को नेतृत्व करते हुए, अपने अहं को मिटाना और अपने निजी दर्शन को अपने पीछे आने वालों में समाहित करना होता है। उसे अपने दल के मौलिक सोच में परिवर्तन लाना होता है। अन्य शब्दों में कहें तो वह लक्ष्य न केवल उनके स्वयं के आर्थिक लाभ की दृष्टि से प्राप्य हो, बल्कि समूची मानवता का कल्याण करने की भावना से भी ओत-प्रोत हो। नेता को अपने दल के लोगों के हृदय में उनके अन्त:स्थल में अपनी जगह बनानी होती है। यह तब तक संभव नहीं है जब तक उसे अपने दल के लोगों से सच्चा प्रेम न हो। प्रेम से बोले गये शब्दों में नमी और आदर होते हैं। ये हरेक मनुष्य को अत्यन्त प्रिय होते हैं।
सच्चे नेता बोलते हैं तो अपने गुणों का बखान करने के लिए नहीं, बल्कि अपना मूल्यवान अनुभव बांटने के लिए बोलते हैं। उनकी बातों में सार होता है। वे बताते हैं कि उनके सामने कौन सी चुनौती आई। जैसे, कि महात्मा गांधी ने अपनी जीवनी में लिखा है कि, पहली बार जब दो स्त्रियां उनसे मिलने आर्इं तब वे उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे सके चूंकि उनका ध्यान अपनी ही शारीरिक प्रतिक्रिया पर अधिक केन्द्रित हो गया। उन्होंने अपने सरलतम शब्दों में यह भी बताया कि कैसे दक्षिणी अफ्रीका में रहते हुए उनके संपर्क में न केवल गुजराती हिन्दू समुदाय के लोग आए, बल्कि दक्षिण भारत के प्रान्तों के लोग व मुस्लिम सभी आए और उन सबकी मित्रता बाद में पूरे भारत में उनका मित्र वर्ग स्थापित करने में खूब काम आई। अन्तत: इस सबका लाभ उन्हें भारत की देशव्यापी स्वतंत्रता आंदोलन चलाने में मिला।
इस प्रकार सच्चा नेतृत्व के उच्चतर आदर्श लिए हुए होता है। बकौल ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के, एक छोटा सा लक्ष्य लेकर चलना तो एक अपराध है। मनुष्य को अपना मानसिक धरातल विस्तृत रखना चाहिए। चूंकि भले ही मनुष्य कमल के समान रहता स्थूल जगत में है, परन्तु उसकी अभीप्सा ऊंची (आकाश के सामने) होती है और उसकी खुशबू दूर-दूर तक फैलती है।
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