Monday, August 8, 2016

प्रेग्नेंसी को नेशनल कैजुअलिटी इश्यू न बनाए.

हमारा समाज भी बड़ा अजीब है न? उसे अपने से ज्यादा दूसरों के मामले में तांकने झांकने में ज्यादा इंटरेस्ट होता है. एक  सामान्य सा उदाहरण ही लीजिये, जैसे ही किसी लड़की की विवाह की उम्र होने लगती है, वह  उससे यह पूछ पूछ कर उसका दिमाग ख़राब कर देता है कि शादी कब कर रही हो? सेटल कब हो रही हो? किसी तरह इन के सवालों से पीछा छुड़ाने के लिए शादी कर लो, तो नया राग अलापना शुरू कर देते हैं, खुशखबरी कब सुना रही हो? अरे भाई थोड़ा तो सांस लेने दीजिये, हमें अपनी ज़िन्दगी अपने तरह से जीने का कोई तो मौका दीजिये. आपकी अपनी जिंदगी में अपने लिए सोचने लायक क्या कुछ भी नहीं है, जो हमारे फटे में अपनी टांग घुसाते रहते है और चलो अगर हमने उनके कहे अनुसार सो कॉल्ड सेटल होने का डिसीजन ले भी लिया और उनकी भेदती आँखों और जासूसी निगाहों ने भांप लिया कि विवाह के बाद हम दो से तीन होने वाले हैं तो सच मानिए वे अपनी नसीहतों का पुलिंदा दे देकर आपको पूरी तरह पका देंगे और अच्छे भले इंसान को बीमार बना देंगे. हम बात कर रहे हैं गर्भावस्था के दौरान मिलने वाली एक्सपर्ट एडवाईजेज की.
अरे भई, गर्भावस्था कोई बीमारी  थोड़े न  है जो  आप लोग बिना मांगे अपनी एक्सपर्ट हिदायतें देकर अच्छी भली महिला को जिसके लिए मातृत्व एक सुखद अनुभव होना चाहिए, आप उसे बीमार बना देते हैं. आम लोगों के साथ तो ऐसा होता ही रहता है लेकिन जब ऐसा ही कुछ फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर के साथ हुआ और बार बार अपनी प्रेग्नेंसी पर मीडिया के अटेंशन के कारण जब उनके बर्दाश्त की सीमा खत्म हो गयी तो  उन्होंने जमकर अपनी  भड़ास निकाली  और गुजारिश  की कि मीडिया उनकी प्रेग्नेंसी को नेशनल कैजुअलिटी इश्यू न बनाए.
साथ ही उन लोगों की जानकारी के लिए भी बता दें जो गर्भावस्था को  कैजुअलिटी इश्यू बना देते हैं कि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है यह एक सुखद एहसास है और इस अवधि में एक महिला को खुश और फिट रहना चाहिए न कि खुद को बीमार मानकर सारे कामकाज छोड़कर बैठ जाना चाहिए और बेवजह की शंकाओं से खुद को डिप्रेस करना चाहिए क्योंकि आने वाले बच्चे का स्वास्थ्य व भावनात्मक स्थिति गर्भवती महिला के स्वास्थ्य व मूड पर निर्भर करता है.
गर्भावस्था किसी भी महिला के शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह के  परिवर्तनों कारण बनता है, और कोई भी महिला (किसी भी स्थिति में) इन बदलावों के लिए अच्छी तरह से तैयार होती है. अपने बच्चे के बारे में एक मां से बेहतर ओर कोई नहीं सोच नहीं सकता लेकिन जैसे ही कोई महिला गर्भवती होती है, लोग सलाह या नसीहतें देना शुरू कर देते हैं. ऐसे नहीं बैठो ,ये खाओ, ये नहीं नहीं खाओ, ज्यादा काम नहीं करो ,आराम करो आदि आदि...ऐसे में गर्भवती महिला को भी समझ नहीं आता कि वह इन बातों को माने या नहीं, क्योंकि कई बार ये सलाह अटपटी या उलझन पैदा करने वाली भी होती हैं.
गर्भवती महिला को इन दिनों में तनाव से दूर रहना चाहिए लेकिन बार-बार की रोक-टोक उसे चिंता में डाल देती है.. सच्चाई तो ये है कि इन सलाह और नसीहतों में से ज्यादातर सुनी-सुनाई बातों पर या अंधविश्वासों पर आधारित होती हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.कुछ लोग तो महिला की चालढाल और उसके खाने पीने की आदतों को देखकर यह भी अनुमान लगाना शुरू कर देते हैं  कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की? जहाँ तक गर्भावस्था में अधिक से अधिक आराम करना चाहिए वाली जो सोच है यह बिलकुल गलत है .अमेरिका में हुई एक स्टडी के अनुसार गर्भावस्था के दौरान सक्रिय रहने वाली महिलाओं में बैचेनी की शिकायत कम होती है और उन्हें प्रसव के दौरान भी कम परेशानी का सामना करना पड़ता है .

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