Wednesday, August 24, 2016

स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का सन्देश

भारत की स्वतंत्रता-संध्या पर, स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वप्नद्रष्टा पंडित जवाहर लाल नेहरु का संसद में भारतीय संविधान सभा में दिया गया विश्व को सन्देश "नियति के साथ करार (Tryst with destiny)"(हिंदी रूपांतरण: पुष्पराज चसवाल)


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कई वर्ष पूर्व हमने नियति के साथ परस्पर एक करार किया था और अब वह समय आया है जब हम अपने उस वचन को साकार करेंगे, न केवल सम्पूर्ण अर्थों में बल्कि पूरी जीवन्तता से। आज घड़ी की सुइयाँ जब मध्य रात्रि का समय बताएंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारतवर्ष स्वतंत्रता से परिपूर्ण जीवन की अंगड़ाई ले रहा होगा। इतिहास में ऐसा क्षण कभी-कभार ही आता है जब हम विगत से नये युग में प्रवेश करते हैं, जब एक युग का अंत हो रहा होता है तथा एक राष्ट्र की आत्मा जिसका लम्बे समय तक शोषण किया गया हो, मुखर हो उठती है। इस शुभ घड़ी में यह सर्वथा उचित होगा कि हम सभी भारतवर्ष और उसकी जनता की सेवा करने का व्रत लें इससे भी आगे बढ़ कर मानवता से जुड़े महत उद्देश्य के लिए समर्पित हों।


इतिहास के पहले उजाले के साथ ही भारत ने अपनी अनंत खोज प्रारंभ की तथा इस प्रयास में उसकी कई सदियाँ गरिमापूर्ण सफलताओं एवं असफलताओं से भरी रही हैं। सौभाग्य तथा दुर्भाग्य समान रूप से मानते हुए भारत ने कभी भी उस खोज को दृष्टि-विगत नहीं होने दिया और न ही उसने उन आदर्शों को कभी भुलाया जिनसे उसने ऊर्जा ग्रहण की। आज हमारे दुर्भाग्य का युग समाप्त हो रहा है तथा भारत फिर से स्वयं को खोजने में सफल हुआ है। जिस उपलब्धि का उत्सव आज हम मना रहे हैं, यह उस अवसर की शुरूआत है जिसमें बड़ी-बड़ी सफलताएँ एवं उपलब्धियाँ हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हम इतने सक्षम एवं बुद्धिमान हैं कि हम इस अवसर पर अपनी पकड़ बना सकें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार कर सकें। स्वतंत्रता तथा शक्ति दोनों ही उत्तरदायित्व से बंधे हुए हैं। उत्तरदायित्व है इस संविधान सभा का जो कि भारत के संप्रभु लोगों की सर्वप्रभुतासंपन्न संस्था है। स्वतंत्रता से पूर्व हमने बहुत कष्ट उठाए हैं और हमारा हृदय आज उन दर्दभरी स्मृतियों से भरा हुआ है। उनमें से कुछेक कष्ट अभी भी मौजूद हैं। फिर भी वह दुखभरा अनुभव अब अतीत हो चुका है और भविष्य हमें आशातीत नज़रों से आवाज़ दे रहा है। भविष्य सुविधाजनक अथवा विश्राम करने के लिए नहीं है बल्कि हमें निरंतर प्रयास करना है, जिससे वे वचन जो हम प्राय: दोहराते रहे हैं और जो प्रतिज्ञा हम आज भी लेंगे पूरी कर सकें। भारत की सेवा करने का मतलब है उन लाखों-करोड़ों देशवासियों की सेवा जो कष्टों से पीड़ित रहे हैं। इसका अर्थ हुआ निर्धनता, अज्ञानता, बीमारी एवं अवसरों की उपलब्धता में असमानता का अंत करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति का सपना रहा है 'प्रत्येक आँख से आंसू पोंछना'। हो सकता है यह कार्य हमारी सामर्थ्य से बाहर हो, तो भी जब तक एक भी आँख में आँसू है और कष्ट है, उस क्षण तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।



अत: हमें अपने सपनों को साकार करने के लिए सख्त मेहनत करनी है। ये स्वप्न हैं भारत के लिए, पर वे सारे संसार के लिए भी हैं। अब सारे राष्ट्र परस्पर निकटता से जुड़ गये हैं, इनमें से कोई भी राष्ट्र अकेला नहीं रह सकता, शांति को विभाजित नहीं किया जा सकता, इसी प्रकार स्वतन्त्रता, खुशहाली तथा आपदाएँ एकता में बंधी इस दुनिया में अविभाज्य बन गये हैं, इन्हें अब अकेले अलग-अलग टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता।


भारत के लोगो के जन-प्रतिनिधि होने के नाते हम उनसे आग्रह करते हैं कि वे पूरे विश्वास एवं आस्था के साथ इस महान कार्य में हमारे साथ शामिल हों। ये समय सस्ती, नकारात्मक, स्तरहीन आलोचना का नहीं है, न ही ये समय परस्पर द्वेष अथवा दूसरों पर दोषारोपण करने का है। हमें स्वतंत्र भारत की ऐसी इमारत का शानदार निर्माण करना है जिसमें उसके सभी बच्चे इकट्ठे रह सकें।


वह सुनिश्चित दिन अब आ पहुंचा है, वह दिन जिसका निश्चय नियति ने किया है, भारत दीर्घ निद्रा व लंबे संघर्ष के उपरांत फिर से खड़ा है, जाग रहा है, समर्थ एवं स्वतंत्र भारत। कुछ हद तक अतीत अभी भी हमसे जुड़ा हुआ है और जो वचन प्राय: हमने भारत की जनता को दिए हैं, उन्हें निभाने के लिए हमें बहुत-कुछ करना होगा। अन्तत: समय ने निर्णायक करवट ले ली है और हमारे लिए इतिहास का नया अध्याय शुरू हो रहा है, जिसे हम बनाएंगे, परिश्रम करेंगे तथा भावी पीढ़ी के लोग जिसके विषय में लिखेंगे।


भारत के लिए, सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप के लिए तथा समूचे संसार के लिए यह एक भाग्यशाली समय है। एक नये सितारे का जन्म हो रहा है, पूरब दिशा में स्वतन्त्रता का प्रतीक एक सितारा, एक नई आशा जन्म ले रही है, बहुत अरसे से संजोया एक स्वप्न साकार हो रहा है। ये सितारा कभी अस्त न हो, यह आशा कभी धूमिल न हो। इस दिन हमें सबसे पहले ध्यान आता है हमारी इस स्वतन्त्रता के निर्माता का, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जिन्होंने भारत की प्राचीन आत्मा को संजोये हुए स्वतन्त्रता की मशाल को ऊँचा उठाए रखा एवं हमारे चारों ओर छाए अंधेरे को दूर करके प्रकाश का विस्तार किया। हम कई बार उनके अयोग्य अनुयायी सिद्ध हुए हैं, उनके द्वारा दिए गए संदेश से भटक गए हैं। केवल हम ही नहीं बल्कि भावी पीढियाँ भी उनके संदेश को याद रखेंगी और भारत के इस महान सपूत की छवि अपने हृदय में संजोयेगी जो अपनी आस्था में, ऊर्जा में, साहस में एवं विनम्रता में बेमिसाल रहे हैं। हम स्वतन्त्रता की उस मशाल को कभी भी बुझने न देंगे, कोई तूफ़ान या ज़लज़ला कितना भी बड़ा भले ही क्यों न आये।


इसके बाद हमारा ध्यान अवश्य ही उन अनगिनत गुमनाम आज़ादी के सिपाहियों की ओर जाना स्वभाविक है जिन्होंने भारतमाता की सेवा के मार्ग में बिना किसी पारितोषिक या सराहना की अपेक्षा किये अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। आज हमें अपने उन भाई-बहनों का भी ध्यान आता है जो राजनैतिक सीमाएं खिंच जाने के कारण हमसे अलग हो गये हैं और जो इस समय स्वतन्त्रता की इस खुशी में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वे हमारा ही हिस्सा हैं और आगे भी रहेंगे। चाहे कुछ भी हो, हम सुख-दुःख में उनके बराबर के साथी रहेंगे।


भविष्य हमें बुला रहा है। यहाँ से हम किस दिशा में जाएँगे और हमारा प्रयास क्या होगा? हमें प्रत्येक साधारण जन के लिए, भारत के किसानों, कर्मचारियों के लिए स्वतन्त्रता एवं अवसर सुनिश्चित करने हैं; हमें ग़रीबी, अज्ञानता तथा बीमारी से जूझना है; एक खुशहाल, जनतान्त्रिक एवं समुन्नत राष्ट्र का निर्माण करना है; ऐसी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक संस्थायों का निर्माण करना है जिनसे प्रत्येक महिला व पुरुष के लिए न्याय और जीवन की सम्पूर्णता सुनिश्चित की जा सके।


हमें भविष्य में बहुत परिश्रम करना है। जब तक हम अपने संकल्प पूरी तरह साकार नहीं कर लेते, जब तक हम भारत की जनता का जीवन ऐसा सुनिश्चित नहीं कर लेते जैसा नियति ने उनके लिए चुना था, तब तक हम में से किसी एक के लिए भी क्षण भर का विश्राम सम्भव नहीं है। हम सभी एक साहसपूर्ण प्रगति के मुहाने पर खड़े हुए महान देश के नागरिक हैं, हमें ऊँचे मानकों को सुनिश्चित करना है। हम सभी चाहे जिस भी धर्म से सम्बन्धित हों, भारत के समान नागरिक हैं तथा हमारे अधिकार, कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व भी समान हैं। हम साम्प्रदायिकता व संकीर्णता को बढ़ावा नहीं दे सकते क्योंकि कोई भी राष्ट्र जिसके नागरिकों की सोच और कर्म में संकीर्णता होगी, महान नहीं बन सकता।


विश्व के राष्ट्रों एवं लोगों को हम शुभकामनाएं देते हैं तथा शांति, स्वतन्त्रता एवं प्रजातन्त्र को मज़बूत करने में उनके साथ सहयोग करने का वचन देते हैं। और भारत, हमारी मातृभूमि जिसे हम बेइंतिहा मुहब्बत करते हैं, जो प्राचीन है, शाश्वत है, सदा नवीन है, उस प्यारे भारत को सम्मानपूर्वक श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए एकजुटता से इसकी सेवा करने का व्रत लेते हैं।


- जयहिंद।  

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