Monday, August 1, 2016

विचार

अभिषेक मेहरोत्रा
सोशल मीडिया पर टाइम्स नाउ के प्रेजिडेंट अरनब गोस्वामी को लेकर एनडीटीवी की कंसल्टिंग एडिटर बरखा दत्त की फेसबुक पर लिखी पोस्ट वायरल हो रही है। कई तरह के कॉमेंट उस पर पढ़ने को मिल रहे हैं, ऐसे में हमने मीडिया जगत के कई वरिष्ठ संपादकों से इस मुद्दे पर बात की है। पेश हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश…
pramod_joshiप्रमोद जोशी, पूर्व संपादक, हिन्दुस्तान (दिल्ली)
मेरा मानना है कि इस तरह दो सम्मानित पत्रकारों का एक- दूसरे पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाना अच्छा नहीं है। इसे सार्वजनिक बहस का विषय बनाया जा रहा है, जबकि इसे किसी एक मंच पर बैठकर भी विमर्श किया जा सकता था। वैसे भी टीवी मीडिया गंभीर विमर्श से दूर ही रहता है, उसी तरह दोनों टीवी पत्रकार भी सिर्फ छीछालेदार टिप्पणी कर रहे हैं।
मेनस्ट्रीम मीडिया हमेशा ही मीडिया के अहम विषयों पर चुप्पी साध लेता है। चाहे नीरा राडिया मामला हो या अन्य, मुख्य मीडिया इन विषयों से दूरी ही बनाता है। अगर मीडिया अपने विषयों पर गंभीर विमर्श करे तो इस तरह की फजीहत की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हमें ये भी देखना होगा कि अयोध्या विवाद और हाल ही में कश्मीर में मीडिया बैन पर भी मीडिया कवरेज किस तरह की हुई है। वैसे टीवी एडिटर्स की संस्था बीईए को भी इस तरह हो रही व्यक्तिगत टिप्पणियों पर कोई एक्शन लेना चाहिए।
om-thanviओम थानवी, पूर्व संपादक, जनसत्ता
इस तरह की टिप्पणियों को करने में मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। यहां पत्रकारिता की प्रतिष्ठा और मूल्यों को लेकर बात हो रही है,जो सही है। किसी भी विषय पर डॉयलॉग्स होने ही चाहिए। बरखा दत्ता ने अरनब गोस्वामी की बातों का जवाब दिया है, जो जरूरी भी था।
इस तरह के विवाद से पत्रकारिता को नुकसान हो रहा है, ऐसा मैं नहीं मानता हूं। आदर्श स्थिति तो ये थी कि अरनब को बरखा पर इस तरह का अटैक नहीं करना चाहिए था। दोनों पुराने साथी हैं। वैसे कई बार टीवी शो की टीआरपी के चक्कर में अरनब इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं।
रामकृपाल सिंह, पूर्व संपादक, नवभारत टाइम्स
Ram Kripal singhइस विषय पर मेरा यही कहना है कि वैचारिक तौर पर मतभेद होने ही चाहिए, पर उसे व्यक्तिगत स्तर पर नहीं ले जाना चाहिए। कई बार लोग इसे खुद ही पर्सनल लेवल पर ले लेते हैं। कई विषयों पर पॉइंट ऑफ व्यू अलग-अलग होता है, उस पर चर्चा होनी चाहिए, पर व्यक्तिगत नाम लेकर आक्षेप लगाना सही नहीं लगता है।
आज समाज बदल रहा है और मीडिया भी इसी समाज का हिस्सा है, तो उसमें भी बदलाव आना स्वाभाविक ही है। मीडिया को ये गलतफहमी दूर करनी चाहिए कि वे समाज में विशिष्ट है, इसी के चलते उनमें अहंकार बहुत हो जाता है और फिर वे कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। Put you Before I अगर इसे फॉलो करेंगे तो We कभी I में नहीं बदलेगा और कई मुद्दे स्वस्थ चर्चा का विषय बनेंगे। अगर आप कोई विचार पेश करेंगे तो कुछ लोग उसकी मुखालफत भी करेंगे। अगर कोई आपका नाम न लेकर किसी एक समूह की बात कर रहा है तो आपको भी जवाब उसी भाषा में ही देना चाहिए।

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