(1) अँधेरे से अँधेरे की ओर 🌑
जिनके जीवन में अँध:कार है यानि गरीबी है,
व्याकुलता है।
फिर भी वह क्रोध जगाता है, द्वेष जगाता है।
इसने ऐसा कर दिया इसलिये मैं दुखी हूँ, ऐसा मानता है।
ऐसा व्यक्ति आज तो दुखी है ही,
आगे के लिये भी दुःख के बीज बो रहा है।
यानि अँधेरे की तरफ बढ़ रहा है।
🌓(2) अँधेरे से प्रकाश की ओर🌓
इसके जीवन में अँधेरा तो है, लेकिन भीतर प्रज्ञा जाग रही है।
यह जो कुछ है मेरे किसी पूर्व दुष्कर्म से है,
किसी दूसरे को क्या दोष दूँ? ये तो बेचारे माध्यम बन गए है।
तो अपना वर्तमान कर्म सुधारता है,
ओरो के प्रति मैत्री,
करुणा, सद्भावना जगाता है।
किसी के प्रति क्रोध नही,
द्वेष नही।
तो आगे के लिये प्रकाश ही प्रकाश है।
🌗(3) प्रकाश से अँधेरे की ओर🌗
यह व्यक्ति प्रकाश में है,
यानि धन है,
प्रतिष्ठा है,
पर अहंकार है,
सबसे घृणा करता है।
देखो मै कितना बुद्धिमान,
कितना मेहनती, ऐसा मानता है।
तो दुःख के बीज बो रहा है।
भविष्य में अँधेरा ही अँधेरा होगा।
🌕(4) प्रकाश से प्रकाश की ओर🌕
यह प्रकाश में है,
पर साथ साथ प्रज्ञा भी है।
अरे यह जो कुछ प्राप्त हुआ किसी पूर्व पुण्यकर्म से हुआ।
सदा रहने वाला नही।
तो लोगो की सेवा करता है,
उनमे सामर्थ्य के अनुसार सहर्ष बाँटता है।
ओरो के प्रति मंगल कामना करता है।
तो आगे के लिये प्रकाश ही प्रकाश है।
आप सब का जीवन मंगलमय हो।
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