Tuesday, March 22, 2016

पुलिस और जनसंपर्क नहीं तय करती कि कौन पत्रकार है या नहीं : प्रत्येक नागरिक पत्रकारिता कर सकता है , संविधान ने दिया है अधिकार

अधिमान्यता केवल उन पत्रकारों के लिए है जो सरकारी दामाद बनना चाहते है ,बाकि ईमानदारी से पत्रकारिता करने के लिए आपको कही पंजीयन या अनुमति की जरुरत नहीं है आप जिस प्रिंट मिडिया तंत्र से जुड़े है उसके लिए ही आर एन आई पंजीयन जरुरी है यदि इलेक्ट्रानिक मिडिया  से जुड़े   हैं  तो  केवल आईडी  कार्ड  होने से नहीं बल्कि यह भी जांच  लीजिये की उनका लायसेंस वैध है या नहीं | पुलिस विभाग इस गलत फहमी में है कि पत्रकारिता के लिए लायसेंस जन सम्पर्क  जारी  करती है \ आश्चर्य्य है कि बस्तर आई जी जैसे पद में बैठा व्यक्ति इतनी मुर्खता पूर्ण बात कर सकता है कि कौन पत्रकार हैं और कौन पत्रकार नहीं इसका निर्णय जनसंपर्क विभाग करता है | जन सम्पर्क के पास केवल जिला मुख्यालय के ही पत्रकारों की सूचि रहती है और यह सूची केवल सरकारी कार्यक्रम को जनता तक पहुँचाने के लिए होती है | इन्हें इस बात के लिए इन पत्रकारों की चिरौरी करने के लिए बाकायदा बजट भी मिलता है , जिससे पत्रकरों को पटाया जा सके | कुल मिलकर जनसंपर्क विभाग सरकार का मिडिया मैनेजमेंट होता है | मेरे पास सूचना का अधिकार से प्राप्त किया गया दस्तावेज है , जिसमे स्पष्ट है कि कोई  पत्रकार है या नहीं यह तय करने की एजेंसी जनसम्पर्क  विभाग नही है |साथ ही यह भी कि कोई दुसरा भी ऐसा कोई सरकारी एजेंसी नहीं है जो यह तय करे कि प्त्रस्कार कौन हो सकता है | यह तो विधिवत निकल चल रहे मिडिया संस्थान का नियुक्ति पत्र और आईकार्ड ही तय करता है | 
                साथ ही अधिमान्यता की स्थिति यह है की यह फिल्ड से दूर बुजुर्ग हो चुके वरिष्ठ पत्रकारों राजधानी के टेबल रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों अख़बार मालिकों दैनिक अख़बारों के संपादकों और नेताओं की सूची बनकर रह गयी है किन्तु आदरणीय वरिष्ठ साथियों को किसी भी प्रकार की सुविधा पाने का पूरा  हक़ है  प्रदेश के कुल १५१ राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों में १0७ रायपुर में बसते है इन्ही की समिति है इस गैंग ने यंहा ऐसी घेराबंदी कर रखी है की किसी मेहनतकश पत्रकार को बिना सिफारिश या किसी संघ के पदाधिकारी बने यहाँ घुसने नहीं दिया जाता बस्तर जिसके समाचार के भरोसे देश भर की मिडिया जिन्दा है हजारों सेठों की रोजी-रोटी चल रही है ---- वहां से दहाई की संख्या में भी  पत्रकार अधिमान्य नहीं है इसी बात से इस गणित को समझ लीजिये अधिमान्यता विरोधी संघ बनाइये उसी में शामिल रहने से ही इज्जत है जो सच लिखना चाहतें है सरकार किसी की भी रहे उनका इस संघ में स्वागत है कम से कम पुलिस को पत्रकारिता नापने या जांचने का अधिकार अभी तक तो है ही नहीं |
               भारतीय संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक को न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपने विचार बनाने से पहले हर प्रकार की बात जानने का और  उसके प्रकट करने का अधिकार प्राप्त है इसी अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक पत्रकारिता कर सकता है कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक जनता के नौकर है इन्हें हमारे हर प्रश्न का जवाब देना है शासन भी अपना है सत्ता किसी भी पार्टी की क्यों ना हो हर घटना - दुर्घटना अपराध और ताजा स्थिति जानने के लिए आप अपने एस पी और कलेक्टर , कंट्रोल रूम  को फोन व मेल उनकी जवाबदारी है की वे आपकी जिज्ञासा शांत करने की उचित व्यवस्था करें इसी तरह आप  नीति - नियम सरकारी योजना की जानकारी सीधे कलेक्टर से जान सकते है इसके लिए आप को पत्रकार का परिचय पत्र लेने या दिखाने की जरुरत नहीं है |  न ही पत्रकार होने का मतलब कोई तोपचंद होता है  | बिना आपकी अनुमति के कोई पत्रकार न तो फोटो ले सकता है ना ही आपका इंटरव्यू रिकार्ड कर सकता है |  
              नागरिक मिडिया को मंच प्रदान करने कई संस्थाएं आज सक्रिय भूमिका निभा रही है |इनमे बीबीसी हिंदी न्यूज पोर्टलhttp://www.merikhabar.com  , मल्हार  मिडिया www.malharmedia.comआदि के आलावा सबसे अच्छा माध्यम फेसबुक ब्लॉग ,ट्यूटर गूगल प्लस आदि है प्रसिद्द पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने तो आपको कहीं से भी कभी भी पत्रकार बनने का ना केवल मौका दिया है बल्कि अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ भी एक मंच प्रदान किया है आप यहाँ http://cgnetswara.org/about.html तथ्य व सबूत के साथ अपनी आवाज में समाचार रिकार्ड का सकतें है 

राष्ट्र की रक्षा के लिए सेना के बाद दूसरा स्थान पत्रकार का आता है. अपनी कलम की ताकत से वह भ्रष्टाचार एवं देश की सुरक्षा पर सेंध लगाने के लिए गिद्ध की तरह नजर गढ़ाए बैठे असामाजिक तत्वों पर अपनी पैनी नजर रख उन्हें उजागर करता है. लेकिन कभी-कभी कलम के सिपाही पत्रकार की खुद की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। सत्य को उजागर करने पर कई लोग उसके जान के दुश्मन बन जाते हैं.
विडंबना यह है कि सेना के पास तो आत्मरक्षा के लिए हथियार है लेकिन पत्रकार के पास केवल कलम जो सत्य उजागर करने के लिए तो एक सशक्त हथियार है लेकिन आत्मरक्षा के लिए नहीं. जब कोई उसकी हत्या के इरादे से उसे निशाना बनाता है तो वह आत्मरक्षा में असमर्थ होता है. पत्रकार को अपना कार्य करते समय यदि कोई मारता है तो मरने के बाद उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं होता जो एक सैनिकों को प्राप्त होता है जबकि दोनों का काम जोखिमपूर्ण और राष्ट्रवाद से ओत प्रोत होता है.
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाले भारत में अभी तक पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई ठोस कानून नहीं है. सत्य की कलम से लिखने वाले पत्रकार पर मौत का साया हरदम मंडराता रहता है. पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित कानून को जब भी लाने की बात की गई तो उस पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया गया. आखिर ऐसा क्या है जो देश की सत्ता पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होने देती क्यों कानून लाने की बात पर वह चुप्पी साध लेती है. भारत के संविधान में जहां सूचना लेने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, वहां इस अधिकार के कई बार हनन के बावजूद सरकार क्यों कुछ नहीं करती क्या यह लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों पर प्रश्न चिन्ह नहीं है.
हाल ही में खोजी पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या ने इन प्रश्नों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है. डे की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों को उजागर करने वाले डे ने तेल माफियाओं के काले धंधे को भी उजागर किया था. वह चंदन की तस्करी का खुलासा भी करना चाहते थे. इतने बड़े स्तर पर हो रही इन गतिविधियों को उजागर करने की कीमत डे को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी. जे डे की हत्या के पीछे कभी तेल माफियाओं तो कभी अंडरवर्ल्ड का हाथ बताया जा रहा है.
लेकिन सबसे शर्मनाक बात है कि मुंबई सरकार इस हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने से मना कर रही है जबकि मुंबई पुलिस से अभी तक यह मामला सुलझ नहीं सका। ज्यादा समय बीतने पर हत्या के आरोपी सभी सबूत मिटाने में सफल हो जाएंगे। आखिर ऐसा क्या है जो सरकार इस मामले की सीबीआई जांच कराने से कतरा रही है. इससे पहले पाकिस्तान के पत्रकार सलीम शहजाद को भी मार दिया गया था। उन्होंने अलकायदा और पाकिस्तानी सेना के बीच संबंधों को उजागर किया था।
पत्रकारिता की नींव राष्ट्रवाद समाज के सही दिशा निर्माण और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए रखी गई थी। पत्रकारों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की धारा 19,1 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसी के तहत वह
निर्भीकतापूर्वक अपनी बात को देश के सामने रखता है। लेकिन पत्रकारों की इस स्वतंत्रता को चोट पहुंचाई जा रही है और उसकी आवाज को दबाने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन तो है ही लोकतंत्र पर भी आघात है। यदि इसी तरह पत्रकारों पर हमलों की घटनाएं होती रही तो बहुत कम पत्रकार निर्भीक छवि वाले बचेंगे। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र का चैथा स्तंभ भी लड़खड़ा जाएगा। आज पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और इससे सम्बन्धित उपयोगी कानून लाने की जरूरत है जिससे पत्रकार निर्भीकतापूर्वक अपने विचार व्यक्त कर सकें।

3 comments:

  1. ​आपका ब्ळॉग पढ़ा रोचक ज्ञानवर्धक हैं | ​

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  2. अलग हटके और सच मालूम पड़ा धन्यवाद आपको "!!

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  3. पत्रकारों को आज भी उसकी जरूरत है और उस पर कानून बनाने की आवश्यकता है। समय रहते इस पर बहस होनी चाहिए।

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