संविधान एक जीवित एवं प्रगतिशील प्रलेख होता है। देश और काल की परिवर्तित होती परिस्थितियों के अनुसार संविधानों में भी परिवर्तन लाना आवश्यक हो जाता है। कई बार उत्पन्न होने वाली विभिन्न नई-नई सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार संविधान में परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि देश का संविधान देश के विकास में बाधक बनता है तो परिवर्तन की आंधी से वह स्वयं ही विनष्ट हो जाता है। विश्व के संविधानों को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- नम्य संविधान तथा अनम्य संविधान। संघीय संविधान अनम्य होते हैं, इसलिए उनके संशोधन की प्रक्रिया जटिल होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और आस्ट्रेलिया के संविधानों की संशोधन प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है।
संविधान का विकास तीन प्रकार से होता है- परम्पराओं द्वारा, न्यायिक व्याख्या द्वारा तथा संविधान में संशोधन की पद्धति द्वारा।
परम्पराएं और प्रथाएं निश्चित तौर पर राजनितिक संस्थाओं के स्वरूप को निर्धारित करती हैं। जहां तक न्यायिक समीक्षा का प्रश्न है, भारत और अमेरिका के उच्चतम न्यायालयों द्वारा समय-समय पर संवैधानिक समस्याओं की व्याख्या भी की गई है किंतु लिखित संविधान के विकास का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत औपचारिक संशोधन ही है। किसी भी देश के संविधान में संशोधन किया जाना प्रमुखतः निम्नलिखित कारणों से आवश्यक हो जाता है-
- संविधान कोई साध्य न होकर साध्य की प्राप्ति हेतु साधन मात्र है। अतः उसे समय एवं राज्य की आवश्यकताओं का प्रतिरूप होना चाहिए। आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्रांतिकारी दौर में कोई भी संविधान अनन्य स्थायित्व का दावा करते हुए कह नहीं सकता कि वह परिवर्तनशील परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता भी रखता है।
- संविधान के अंतर्गत वर्णित आदशों, लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संविधान के उन उपबंधों में संशोधन करना आवश्यक है, जो उनसे मेल नहीं खाते।
- सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की प्राप्ति हेतु परम्परावादी मान्यताओं में शांतिपूर्ण परिवर्तन संविधान संशोधन के माध्यम से ही सम्भव है।
- संविधान संशोधन के माध्यम से उसमें कोई नई बात अथवा किसी नए तथ्य को समाविष्ट किया जाता है।
- संविधान की जन-आकांक्षाओं, इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का प्रतिबिम्ब होना चाहिए। वर्तमान संविधान यदि मौजूदा आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकने में अक्षम है तो उसमें यथोचित परिवर्तन कर देने चाहिए।
भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक विशाल एवं लिखित संविधान है, किन्तु इसकी विशेषता यह है की इसमें नम्यता और अम्नाम्यता दोनों का अद्भुत् मिश्रण है। भारत का संविधान लिखित होते हुए भी अनम्य या कठोर नहीं है।
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