Friday, March 25, 2016

गुलाम मानसिकता

सरदार भगत सिंह के बारे में इतना ही कहना कि
वे गुलाम भारत की असेम्बली में बम फेंकने और सांडर्स को मारने के कारण फांसी चढ़ गए, न्यायपूर्ण नहीं है.
भारत के बच्चे बच्चे को विस्तार से पता होना चाहिए कि
भगत सिंह के सपनों का भारत कैसा था.
भगत एक विचार पुंज थे, जिनके लिए आजादी का अर्थ शोषण से आजादी था.
अगर उनको मालूम होता कि उनके बलिदान के बाद भी ऐसा नालायक कुनबा भारत को संभालेगा जो शोषण नहीं रोक पायेगा तो वे इस पचड़े में नहीं पड़ते ! अगर उनको लगता कि तथाकथित आजादी के बाद भी भारत का किसान-मजदूर व्यवस्था के बोझ तले दबा हुआ रहेगा तो वे चुप रहते. लेकिन भविष्य कौन देख पाता है, उम्मीद बंध ही जाती है.
भगत को लगता था कि उनके बलिदान से देश में लाखों युवा घर से बाहर निकल जायेंगे और देश को शोषण से मुक्त करवा देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तब भी और अंग्रेज के जाने के बाद भी. आज भी यहाँ के अधिकतर युवा सूचना के अधिकार से एक कागज लिखने से भी डरते हैं, शोषण का मुकाबला तो बहुत दूर की बात है. केवल सोशल मीडिया पर किसी की इज्जत खराब करने या किसी की स्तुति करने में अधिकतर युवा उलझे हैं. उनको सिस्टम से शिकयतें हैं पर नए सिस्टम की रचना के लिए उनके पास न समय है और न उनमें इतनी हिम्मत है. न योजना है. हल्ले गुल्ले और प्रदर्शन को वे महान काम समझते हैं.
जाति-सम्प्रदाय के नाम पर जहर उगलते हैं.
ओशो कहते हैं कि भारत की यह गुलाम मानसिकता एक हजार वर्ष में बन गई है और इसे अचानक से विदा करना आसान नहीं है. भगत सिंह इसका अनुमान लगाने में चूके थे. पर फिर भी भगत अपनी भूमिका शानदार ढंग से निभा गए, देश उनके पीछे नहीं चल पाया तो यह कौम की गलती है.
दूसरी तरफ भगत ने नहीं कहा था कि क्रांति का मतलब, इसको मारो, उसको काटो. वे कहते थे कि क्रान्ति का मतलब सभी प्रकार की स्वतंत्रता है और विशेष रूप से शोषण से स्वतंत्रता. वे वैचारिक क्रांति के पक्षधर थे. केवल देशी सत्ता उनका लक्ष्य नहीं था.
वैचारिक बदलाव उनका लक्ष्य था.
अभिनव राजस्थान भगत सिंह और उनके जैसे अनेक विद्वान क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेता है. हम कोशिश करेंगे कि राजस्थान और भारत में एक ऐसा जागरूक-समर्पित नागरिक समूह खड़ा हो जो समाज के सभी वर्गों और व्यक्तियों को अवसर की समानता सुनिश्चित करे और शोषण से मुक्त समाज बनाए. हमारी योजनाओं का एक एक शब्द इसी दिशा में है. रेकोर्ड पर है.
फिर रह रह कर जब सोचता हूँ कि भगत सिंह होने का क्या मतलब है तो अंदरखाने बहुत हलचल होती है ! वे क्या सोचते होंगे, कैसा महसूस करते होंगे, फंसी पर चढ़ने की उनकी जल्दी, उनकी खुशी, सब हिला देती है. अपराध बोध भी हो जाता है. अंदर से कुछ कचोटता है. फिर संभलता हूँ. वही गलती फिर नहीं. यह कौम आज भी क्रान्ति के लिए तैयार नहीं है. आज भी किसी छद्म अवतार को ढूंढती है. सावधानी से आगे बढ़ना है. वैचारिक परिवर्तन के लिए काम करना है. एक बड़ा समूह बन जाये जो समाज को संभाल सके. समाज का विश्वास परिवर्तन में बना सके. डर कम कर सके.

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