Monday, March 28, 2016

एक ऐसी जाति का काला सच है, जिसकी दास्तां सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। हालांकि है यह बहुत ही कड़वी हकीकत।

यहां बेटियों के 'जिस्म' से पलता है परिवार..

यह अपनी बेटियों के जिस्म को बेचकर पेट पालने वाली एक ऐसी जाति का काला सच है, जिसकी दास्तां सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। हालांकि है यह बहुत ही कड़वी हकीकत। कई सरकारें आईं और चली गईं मगर कोई भी समाज के इस बदनुमा दाग को नहीं मिटा सकी।

हैरानी इस बात की भी है कि कुप्रथा खत्म होने के बजाय अब हाईप्रोफाइल और हाईटेक होती जा रही है। जिस्म बेचने वाली लड़कियों को बाकायदा स्टाइलिश हेयर कट, कास्ट्यूम, स्मार्टफोन इस्तेमाल कर अपना रहन-सहन बदलने की टिप्स दी जा रही है ताकि उन्हें अच्छे ग्राहक मिल सकें। 
 
मंदसौर-नीमच और रतलाम जिले में रहने वाली बांछडा जाति पंरपरा के नाम पर ऐसी घिनौनी कुप्रथा ढो रही है, जिसे भारतीय समाज कभी स्वीकार नहीं कर सकता। इस इलाके में बरसों से इनके डेरों पर जिस्मफरोशी की जाती रही है। एक लंबा वक्त गुजर जाने के बाद लगता था कि अब ये घिनौना करोबार बंद या कम हो चुका होगा, लेकिन जो देखने को मिला वह वाकई चौंकाने वाला था। 

अब तो जिस्म का ये बाजार बढ़ा ही नहीं है बल्कि नए ट्रेंड्स के साथ पूरे शबाब पर पंहुच चुका है। यहां तक कि इस समाज में लड़कियां पैदा होने की मन्नतें की जाती हैं। लड़की पैदा होते ही उसकी परवरिश बेहद खास तरीके से की जाती है। इस समाज में लड़कियां पैदा होना किसी लॉटरी से कम नहीं माना जाता। महज दस साल की उम्र में इन्हें उन लोगों के सामने परोस दिया जाता है जो हवस के भूखे होते हैं। 

पहली बार धंधे में उतारने के लिए बाकयदा एक रस्म अदा की जाती है। शौकिया धन्ना सेठों या इलाके के अफीम तस्कर इनकी बोली लगाकर इनके साथ पहली रात गुजारते हैं। घर-परिवार को इस रात के बदले मोटी रकम अदा की जाती है। इसे नथ उतारना कहा जाता है। इस दिन से लड़की खिलावड़ी कहलाने लगती है। बडी उम्र की लडकियां इन्हें सिखाती हैं कि ग्राहकों को कैसे संतुष्ट किया जाए और बदले में उनकी जेब कैसे ढीली की जाती है।

राजस्थान से सटे तीनों जिलों में बांछडा समुदाय की करीब दो हजार लड़कियां जिस्मफरोशी के इस धंधे से जुड़ी हुई हैं।  हैरानी की बात ये है कि बांछड़ा समुदाय के पुरुष लड़कियों के जिस्म से मिलने वाली कमाई के भरोसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। गांवों में रहने वाली बांछड़ा जाति के हाईवे पर कई सारे डेरे बने हुए हैं। हाईवे किनारे शाम ढलने और रात के अंधेरे से लगाकर दिन के उजाले तक में जिस्म की मंडी हर दिन सरेबाजार सजती है।

इस हाईवे से हर दिन पुलिस, अफसर, नेता हर कोई यहां से गुजरता है मगर मजाल कि कोई इस धंधे पर अंकुश लगा सके। कई सामाजिक संगठन और सरकारें इन्हें मुख्यधारा में शामिल कराने और यह काम बंद कराने के नाम पर प्रोजेक्ट और शोध कर बेहिसाब रुपया खर्च कर गईं मगर नतीजा आज भी जस का तस यानी ढाक के तीन पात ही है।

भारत के इस प्रदेश में 100-100 रुपए में बिकती हैं लड़कियां

लड़कियों के देह व्यपार का धंधा कई देशों में क़ानूनी मान्यता पाने के बाद बड़ी आसानी से फल फुल रहा है। लेकिन कई देशो में आज भी इस पर कानून द्वारा मान्यता नही मिला है। लेकिन फिर भी देह व्यपार का धंधा अमूमन हर जगह चलता है। इन्ही देशों में एक नाम है भारत का। जहां पर लड़कियां अपने देह की नीलामी महज 134 रूपये में कर देती हैं। आप भी जानिए कहां होता है ऐसा गंदा काम। 
एक हिंदी वेबसाइट की खबर के अनुसार पश्चिम बंगाल का सोनागाछी पूरे एशिया में यह रेडलाइट जगह सबसे के नाम से जाना जाता है। यहां साल में सैकड़ों विदेशी सैलानी घूमने आते हैं क्योकि इसे एशिया का सबसे बड़ा देह व्यपार का गढ़ माना जाता है। जहां करीब 11 हजार वेश्याएं देह व्यापार में लिप्त हैं। 
यह पूरा इलाका एक झुग्गी में तब्दील है। यहाँ पर 12 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं। यहां इन्हें मर्दों से संबंध बनाने के बदले 2 डॉलर यानि 134 रुपए मिलते हैं। यहां पर लड़कियां अपने आप को बेचने का काम अपनी मां को देख के सीखती हैं।    देश में तमाम एनजीओ ऐसे हैं जो इनकी बेहतरी के लिए काम कर रही हैं। उनके अनुसार तो यहां लड़कियां 100 रुपए या उससे भी कम में अपना जिस्म बेचने को मजबूर हैं। 

डंडा लेकर 'संस्कृति' सिखाने वाले बतायेंगे जहाँ गाय और भारत माता है वहां औरत वेश्या क्यों?

वसीम अकरम त्यागी 
भारत में डेढ करोड़ वैश्याऐं हैं यह संख्या कई देशों की की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। इस देश में गंगा (नदी) माता है, गाय (जानवर) माता है, धरती माता है। मगर औरत (इंसान) वैश्या है और वैश्या भी एक या दो हजार नहीं बल्कि डेढ करोड़ हैं। 14 फरवरी को देश पार्कों में जाकर डंडे लाठी से देश के प्रेमी युगल को ‘संस्कृती’ सिखाने वालों को एक बार कोठे पर भी जाना चाहिये। ताकि अपने हाथो से तैयार की गई वैश्या संस्कृति का बदसूरत चेहरा देख सकें। भारत माता है अथवा पिता है इस बहस के बीच यह सवाल जोर से उठ जाना चाहिये कि भारत माता हो या पिता मगर उसकी डेढ करोड़ संतान वैश्या क्यों है ?
संविधान क्या कहता है ? गांधी जी क्या कहते थे ? बुद्ध क्या कहते थे ? अल्लाह के 99 नाम हैं ? प्लास्टिक सर्जरी भारत में हजारों साल से रही है गणेश जी की नाक प्लास्टिक सर्जरी से लगवाई गई थी। मेरी मत राष्ट्रपति की सुनो ? इन सब बातों को सुनकर भक्त भले ही हर हर मोदी करके छाती पीटते हों मगर इस देश का एक बहुत बड़ा तबका है जो इतने भर से संतुष्ट नहीं है। वह तबका जानना चाहता है कि जिन साहित्यकारों ने आवार्ड लौटाये हैं उनके बारे में मोदी क्या कहते है ? वह तबका सुनना चाहता है कि अखलाक के हत्यारों के बारे में मोदी क्या कहते है ? वह तबका सुनना चाहता है कि थोक में बांटे जा रहे देशभक्ती की सर्टिफिकेट के बारे में मोदी क्या कहते है ? 
भारत माता की जय के नाम पर इंसानों की मां को दी जा रहीं गालियों के बारे में मोदी क्या कहते है ? अपनी सरकार का सिर्फ एक ही मज्हब इंडिया फर्स्ट बताने वाले मोदी हिंदुत्व के नाम पर (गौ रक्षा) की जा रही हत्याओं के बारे में क्या कहते हैं ? सवालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और ये सवाल उस तबके हैं जो किसी भी सरकार अथवा व्यक्ति विशेष का भक्त नहीं है बावजूद इसके उस तबके को मोदी भक्त हिंदु विरोधी या देशविरोधी कहकर संबोधित करते हैं। मोदी उपदेश देने के लिये प्रधानमंत्री नहीं बने हैं बल्कि परिवर्तन लाने के लिये प्रधानमंत्री बने हैं। मगर जैसा परिवर्तन उनके पाले हुऐ गुंडे इस देश में करना चाहते हैं वैसा परिवर्तन इस देश को हरगिज नहीं चाहिये।

फूट रही बहुसंख्यकवाद की सड़ांध

भारतीय लोकतंत्र में बहुसंख्यकवाद की सड़ांध फूट रही है। यह बहुसंख्यकवाद मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड याकूब मेमन को फांसी देता है, मगर रथ यात्रा के मास्टर माइंड आडवाणी जिसने तमाम देश को दंगों की आग में झोंक दिया था उसे उप प्रधानमंत्री बनाता है। संविधान पर भरौसा करके आत्मसमर्पण करने वाले मेमन को सजा ऐ मौत दी जाती है और उसी संविधान को जूते की नोक पर रखकर समतल जमीन का आह्वान करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से नवाजा जाता है।
हम और हमारा राष्ट्र खौखलेपन से इतरा सकता है कि हम विश्व कै सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन इस बहुसंख्यकवादी लोकतंत्र की लाश कभी हैदराबाद सेंट्रल यूनीवर्सिटी के हाॅस्टल में रोहित वेमुला की शक्ल में झूलती पाई जाती है तो कभी झारखंड में मजलूम अंसारी और इब्राहीम की शक्ल में पेड़ पर झूलती पाई जाती है। जिन लोगों ने रोहित को मारा था वे सत्ता में हैं और जिन लोगों ने अखलाक से लेकर इब्रहीम, मजलूम की लाशें बिछाई हैं उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। मोदी ने दिल्ली में सूफिज्म पर लंबा भाषण दिया है मगर यजीदियत के खिलाफ एक लफ्ज भी न बोल पाये क्योकि भारतीय यजीद उनके ‘अपने’ लोग हैं।
नेशन वांट टू नो (देश जानना चाहता है) मगर तुम बताते नहीं कि उन दो मासूम मजदूरों जिनमें से एक बाल मजदूर था का क्या कसूर था जो उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया गया ? गाय तुम्हारी माता है यह तो समझ आता है मगर भैंस से क्या नाता है यह तो बताओ ? भैंस से नाता इसलिये मालूम किया जा रहा है क्योंकि अखलाक को गाय मांस के आरोप में मारा था मगर ये मासूम तो पशु व्यापारी थे और गाय नहीं बल्कि भैंस लेकर जा रहे थे फिर भी मार दिया गया। वे मीडिया माध्यम खुद को मुख्यधारा का मीडिया बताते हैं वे क्यों ‘झारखंड’ पर शान्त हैं ?
क्या इसलिये कि मरने वाले मुसलमान थे और मारने वाले तथाकथित देशभक्त हैं ? या अल्पसंख्यकों की मौत महज ‘एंटरटेनमेंट’ है सियासी जमातों के लिये भी और मीडिया के लिये भी ? अब प्राईम टाईम में क्यों नहीं कहते कि देश जानना चाहता है कि जानवर की रक्षा के नाम पर इंसानों को जानवर समझना कहां तक जायज है ? जानवरों की कथित रक्षा के नाम पर इंसानों को लाशों में तब्दील करने का अधिकार कौनसे संविधान ने दिया है ? मीडिया खामोश है ‘मन की बात’ करने वाला ‘चौकीदार भी खामोश है। क्या मीडिया इसीलिये खामोश है क्योंकि यह घटना ‘राम राज्य’ में हुई है ? मीडिया की खामोशी यह बताने के लिये काफी है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ पर राम राज्य वालों का कुत्ता मूत गया है।

(वसीम अकरम त्यागी – लेखक जाने माने पत्रकार और समाजसेवी है)

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