Friday, March 4, 2016

पाखंडी

जब किसी के घर मृत्यु होती है तो उनके घर वाले उनके फूल हरिद्वार लेकर जाते है अपने मृतकों का पिंड दान वगेरा कराने गंगा जाते हैं जिसमें प्रति मृतक कम से कम बीस हजार रुपये खर्चा आता है और औसतन पुरे भारत के तीन हजार जाट रोज जाते है अर्थात् लगभग दो अरब रुपया सरेआम प्रतिवर्ष अंधविश्वास की भेंट चढ़ रहा है लेकिन खुशी है कि कई गांवों के जाट इस कुप्रथा से दूर हैं जिसमे मेरा गांव कतरियासर भी सामिल है हमारे गांव का कोई भी जाट मेघवाल किसी के मरने पर हरिद्वार नहीं जाता इसी प्रकार सम्पूर्ण जाट समाज में प्रतिवर्ष एक लाख से भी अधिक मृत्यु भोज होते हैं अर्थात् जाटों को भी मरे पर खाने की लत लग गई है जिसमें औसतन प्रति भोज पर 1 लाख रुपया खर्च होता है जो लगभग 10 अरब रुपये बनता है यह सारी पैसों की बर्बादी झूठे धर्म और स्वर्ग के नाम पर भेंट चढ़ जाती है जबकि प्रत्येक मरने वाले के नाम से पहले स्वर्गीय लिखा जाता है (चाहे खर्च करो या न करो) तो फिर नरक है ही कहां ? जो कुछ भी है वह इसी धरती पर है । राजस्थान तथा दक्षिण हरयाणा इस कुप्रथा में अग्रणी हैं अभी लगभग 20 वर्ष से केवल राजस्थान हरयाणा में जाट बाहुल्य गांवों में लगभग 30000 मंदिर बन चुके हैं जिन पर कुल लगभग 8 अरब 60 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं । अभी गांवों में मोहल्लावार होड़ लगी है कि कौन कितना ऊंचा मन्दिर बनवाता है ? बाद में इसी मन्दिर में एक पाखंडी को रोजगार दिया जाता है जबकि जाटों के खुद के बच्चे बेरोजगार हैं । यही पाखण्डी गांवों की औरतों को बहकाता व फुसलाता है, अंधविश्वास फैलाता है और पता नहीं क्या कुछ करता होगा? अपने बच्चों को स्कूल में बैठने के लिए टाट नहीं लेकिन मन्दिर का पंडा पंखे नीचे बैठ कर हमारे बच्चों की जन्म-पत्री बना रहा है जबकि स्वयं उनके बच्चे विधवा और विधुर हो रहे हैं लेकिन फिर भी हमारे बच्चों की जन्म-पत्री में हमारा वर्ण शूद्र लिखता है । याद करो हमारे पूर्वज और हम भी आज हर बुराई के लिए बोलते हैं ‘पंडा छोड़ो और छुड़वाओ’ यह पंडा शब्द इसी पाखण्डी के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है जबकि हम इसी पंडे को आज अपने घर लेकर आ रहे हैं और ये भूल जाते हैं कि कृष्ण और कंस की एक ही राशि थी तो ओबामा और ओसामा की भी एक ही राशि थी
यही पाखंडी प्रचार करता है कि ईश्वर बड़ा दयालु है ताकि लोग अधिक से अधिक दान करें लेकिन वही इनका दयालु ईश्वर किसान की 6 महीने की खून पसीने की कमाई पर ओला वृष्टि कर या सूखा या बाढ़ से देखते ही देखते मिट्टी में मिला देता है तो तीर्थयात्रा पर निकले लोग रोजाना दुर्घटनाओं में मर रहे हैं तो फिर ईश्वर दयालु कहां ? फिर ये पाखंडी समाज को डराने लग जाते हैं कि ईश्वर गुस्से में है और निर्दयी हो गया है इसलिए और दान-पुण्य करो । यदि ईश्वर निर्दयी होता तो उसे यह सृष्टि रचने की आवश्यकता क्या थी ? इस प्रकार ये पाखंडी लोग धर्म दान का प्रलोभन देकर ईश्वर को गुलाम बनाने में लगे रहते हैं जबकि ईश्वर का इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है । वह न तो दयालु है और न ही निर्दयी । वह केवल अपना काम करता है सृष्टि को चलाता है और इसके सिस्टम को कंट्रोल करता है । इन पाखंडों से उसका कोई लेना-देना नहीं । क्या ईश्वर हमारी भलाई के लिए इन पंडों को रिश्वत देने की मांग करेगा ? कभी नहीं ! मांगने वाले को भिखारी कहा जाता है । मन्दिरों में बैठ कर दान मांगने वाला भी भिखारी है और मन्दिर में दान के बदले समृद्धि मांगने वाला भी भिखारी है । यह केवल भिखारी से भिखारी का मिलन है।

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