बहुत लोगों के लिए भाषण देना एक बहुत मुश्किल काम है, स्टेज पर खड़े होते ही पसीना छूट जाता है। हालांकि ये भी सच है कि तीन-चार बार स्टेज से बोलने के बाद आपका ये डर खत्म हो जाता है या कम हो जाता है। वक्ता तो आप बन जाते हैं, लेकिन कुशल वक्ता होना आसान नहीं। कॉरपोरेट हो, पॉलिटिक्स हो, कॉलेज हो, सोसायटी हो या फिर और कोई भी फील्ड, कुशल वक्ताओं की पूछ हर जगह होती है। ऐसा होना मुश्किल जरूर हो लेकिन नामुमकिन नहीं, ड्राइविंग और स्विमिंग की तरह थोड़ी सी प्रेक्टिस और कुछ नियमों को लगातार फॉलो करने से आप अच्छे वक्ता बन सकते हैं, हां पर बिना क्रिएटिव माइंड के राह आसान नहीं। कुछ खास बातों का ध्यान एक अच्छा वक्ता हमेशा रखता है, लेकिन कैसे अपने आप में कुछ सुधार करके यह हासिल कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
आपने मोदी जैसे किसी नेता या अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता को मंच पर आते वक्त देखा होगा कि कैसे वो मंच पर आते ही उत्साह और जोश से भर जाते हैं, उनका ये उत्साह खोखला नहीं होता, उनका ज्ञान और विषय पर पकड़ उनकी आंखों में चमक की असली वजह होती है। तो जाहिर है आपको जिस विषय पर बोलना है, उसकी पहले से तैयारी बहुत जरूरी है। घबराहट एक ऐसी चीज है जो सबको होती है चाहे वो कुशल खिलाड़ी हो या नौसिखिया, सो उसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उतना ही ठीक है। इससे बचने का एक ही तरीका है अभ्यास, क्योंकि तैराकी अगर सीखनी है तो पानी में उतरना ही होगा, किनारे पर बैठकर तैराकी के नुस्खे सीखने से कुछ नहीं होगा।
विषय का ज्ञान और उस पर पकड़ दो अलग-अलग बातें हैं, विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, आपकी उस पर पकड़ भी होनी चाहिए। जितना आप उसे समझेंगे, उतना ही आत्मविश्वास से आप समझा पाएंगे, बोल पाएंगे। सबसे पहले श्रोताओं से कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, उसके लिए प्रभावी वाक्यों, शब्दों का चयन जरूरी है, उसके लिए अच्छे से तैयारी करें, शुरूआत में ही श्रोताओं से अगर आप कनेक्ट हो जाते हैं, तो वो आपकी हर बात को सीरियसली लेते हैं। कभी-कभी आपको मौके पर ही श्रोताओं से कनेक्ट करने की कई बातें मिल जाती हैं, जैसे मोदी की एक हालिया रैली में हुआ, बल्लियों पर चढ़े युवकों को देखते ही मोदी ने कहा, पहले आप उतरिए तब मैं बोलना शुरू करूंगा। सारी जनता को लगा कि मोदी ये क्या कह रहे हैं, क्या कर रहे हैं और वो जुड़ गए। उनसे कनेक्ट करने के लिए कभी-कभी वो उनसे पर्सनल सवाल भी करते हैं कि क्या आपने ऐसा कभी किया है? या फिर आपमें से कितने लोग हैं जिनके घर में कोई सरकारी कर्मचारी है? हाथ उठाइए। इन सब बातों से जहां वक्ता का आत्मविश्वास देखने को मिलता है, वहीं कभी-कभी वो आते ही बताना शुरू कर देते हैं कि जब मैं यहां आ रहा था तो किसी ने मुझसे इस ईवेंट के बारे में ऐसा कहा।
वक्ताओं के लिए स्पीकिंग की ए,बी, सी, डी, ई जरूर याद रखनी चाहिए। ए फॉर एक्शन और एरिया यानी आप जिस सब्जेक्ट एरिया के बारे में आप बोलने आए हैं, आपके पास एक्शन प्लान है कि नहीं, जानकारी है कि नहीं, उस एरिया की समस्या और उसका समाधान है कि नहीं। दूसरा बी यानी बोल्डनेस, ये आपके कॉन्फीडेंस का पैमाना है, मंच पर बोलते वक्त आत्मविश्वास से लबालब होने चाहिए। तीसरा सी यानी क्रिएटिव, क्रिएटिवटी बहुत जरूरी है, कुछ जुमले, कुछ शेर, कुछ कविताएं, कुछ जोक, कुछ प्रेरणा देने वाले वाकए आपके दिमाग की मेमोरी में हमेशा होने चाहिए, और आपकी क्रिएटिवटी इसमें है कि आप मौके की नजाकत को देख कर फौरन मौके पर चौका मार सकें।
चौथा है डी यानी डाटा, आपको अपने विषय के कुछ इंटरेस्टिंग डाटा जरूर तैयार करके बोलने जाना चाहिए, डाटा या आंकड़े देने से आपकी बातों में वजन आता है, जब मोदी बिहार जाते हैं तो बिहार सरकार के क्राइम का वही आंकड़ा लेकर जाते हैं, जो नीतीश सरकार को डाउन कर सके। वहीं नीतीश आते हैं तो एक दूसरे आंकड़े के साथ जो मोदी की बात को हलकी कर सके, जाहिर है डाटा अहम रोल प्ले करता है और ये हर फील्ड में करता है, टीवी के एंकर से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों में होने वाली मीटिंग तक में। पांचवां शब्द है ई, यानी एनर्जी, जब आप बोल रहे हों तो आपके आसपास मंच पर, श्रोताओं के बीच, आयोजकों के बीच एनर्जी लेवल हाई होना चाहिए। अच्छे वक्ता वो होते हैं जो मंच पर आते ही सबसे पहले पूरे ईवेंट की एनर्जी बढ़ा देते हैं, स्लोगंस, गीत या चुटीले वाक्यों से ऐसा किया जा सकता है। हर फील्ड के अच्छे वक्ताओं के वीडियोज यूट्यूब में देखकर आसानी से इसे किया जा सकता है।
जब आप मंच पर हों तो यह विश्वास होना जरूरी है कि ये आपका मंच है, आपकी सत्ता है और इस पर आपकी पूरी पकड़ जरूरी है क्योंकि आप अपने अंदर यह महसूस नहीं करेंगे तो आपकी अपनी बात पर भी पकड़ नहीं रहेगी। नम्र रहिए लेकिन दब्बू नहीं। आंकड़ों और बातों में सच्चाई होनी चाहिए, और विचारों को पूरी मजबूती से रखिए।
एक और बड़ी बात है लय और शैली। वक्ता यदि अपने ज्ञान का प्रदर्शन एक सुर में करता रहे तो शायद आधे से ज्यादा श्रोता सो जाएंगे। इसलिए माहौल बोरिंग ना हो, इसलिए इससे बचना जरूरी है। अपनी बातों में लय, रस और एक दिलचस्प शैली डेवलप करना बहुत जरूरी है। बस अपनी बात को फील करिए, और उसी भावनात्मक अंदाज में पब्लिक के सामने रख दीजिए, देखिएगा श्रोता कैसे बहे चलेगा आपके साथ।
बोलने से पहले ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि सुनने वाले कौन हैं, मेजोरिटी किसकी है। जाहिए है बच्चे सामने बैठे हैं, तो आपको उनके मूड को ध्यान में रखना होगा, महिलाएं हैं तो उनसे जुड़ी बातों को अपने शब्दों में पिरोना होगा। कॉरपोरेट्स हैं तो उनकी डेली लाइफ से जुड़ी बातों, किस्सों को लेना होगा, युवा किसी और तरह के मूड में रहता है और गांव देहात के लोग अलग तरह की बातें सुनना चाहते हैं।
और सबसे बड़ी बात है प्रैक्टिस, जब मौका मिले, जहां मौका मिले, स्कूल की स्टेज पर, मोहल्ले की मीटिंग में, घर के फंक्शन में जिस मुद्दे पर मौका मिले, कुछ ना कुछ जरूर बोलिए। धीरे-धीरे आपकी झिझक और डर मिटने लगेगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आप जिससे सबसे ज्यादा डरते हैं, उसी पर सबसे पहले अटैक करिए, यानी बोलना शुरू करिए। वैसे आजकल तो शुरुआत मोबाइल कैमरे के साथ भी की जा सकती है, तैयारी करिए, अपना मोबाइल ठीक ऊंचाई पर सेट करिए, वीडियो कैमरा ऑन कर दीजिए और कर दीजिए शुरुआत अच्छा वक्ता बनने की। फिर तैयारी करिए, फिर बोलिए, फिर खुद तुलना करिए या खास दोस्त से करवाइए कि पहले से बेहतर हुआ कि नहीं। खुद से ही कम्पटीशन करिए, सच मानिए धीरे-धीरे आप जानेंगे कि अरे, ये तो बहुत ही आसान था।
भाषण व्यक्ति के भीतर छिपी एक ऐसी कला है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान पाता। जबकि आज देश में अनेक ऐसे भी बंदर हैं, जो स्वयं को कुशल वक्ता ही नहीं बल्कि भाषण की मिट्टी पलीद कर यह समझते हैं कि आसमान से तारे तोड़ लाए हों। हां! यह हकीकत है कि भाषण वही प्रभावशाली होता है जिसकी कम से कम एक बात को श्रोता कुछ दिन या ज्यादा दिनों तक गुनगुनाएं। एक अच्छे गीत की तरह। लेकिन बात अच्छी हो कोई घास-कूड़ा नहीं क्योंकि घास-कूड़े वाली बातें करने से आपकी ही छवि खराब होगी।
एक अच्छा वक्ता सदैव भाषण करने से पूर्व उसकी पूरी तैयारी करता है। एक-एक शब्द चुन-चुनकर बोलता है। शब्दों के महत्व को समझते हुए अपने विचार श्रोताओं के सम्मुख रखता है। आइए जानते हैं भाषण करने से पूर्व क्या तैयारियां हमें करनी चाहिए।
विचार संग्रह
जिस विषय पर हम भाषण करने वाले हैं उस संदर्भ में विचार संग्रह करना मूलभूत आवश्यकता है। विचार संग्रहित करने के लिए उस विषय पर पुस्तक, लेख और नवीनतम आंकड़े सभी इकठ्ठे करके उनका अध्ययन करना अति आवश्यक है।
लिखें कागज पर भाषण
भाषण की विचार व्यवस्था करने का सबसे उत्तम और सरल तरीका है भाषण के विचारों को लिखने का। लिखने से व्यवस्था और क्रम ठीक बन जाते हैं। विचारों को एकत्रित कर लिख डालें। बाद में उसे संक्षिप्त वाक्यों में एकत्रित कर लें। इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप जो विचार लिख रहे हैं उनमें एकता, सच्चाई होने के साथ ही तर्कशील भी होने चाहिए। भाषण का प्रारंभ और अंत प्रभावशाली हो।
कैसी हो पोशाक
भाषण के समय हमेशा उचित सहज पोशाक ही पहननी चाहिए। हमेशा चितकबरी पोशाक से बचें। भाषण के समय सोवर पोशाक ही पहनें।
प्रभावशाली भाषण के लिए विचार, उनकी समुचित व्यवस्था, भाषा, कंठ-स्वर, उच्चारण, अंग संचालन इत्यादि अति आवश्यक है।
मंच पर इस तरह जाएं
भाषण देने से पूर्व वक्त अकसर घबरा जाता है, उसके शरीर में कंपन होने लगता है जिसके कारण आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की कमी आ जाती है। इसके लिए वक्ता को यह सोचकर मंच पर जाना चाहिए कि सभी श्रोता मुझसे कमजोर है और मैं उनसे अधिक मेधावी हूं। इससे वक्ता को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास बना रहता है। वक्ता को पाठ मंच या मंच तक गतिमा सहज गति से चलकर जाना चाहिए। यदि मंच पर पाठ-मंच की व्यवस्था है तो उसके पीछे खड़ा होना चाहिए, नहीं है तो तब मंच के किनारे मध्य में खड़ा होना ठीक है। वक्ता को श्रोता की ओर देखने में कतराना नहीं चाहिए। वक्ता अपने श्रोता की तरफ मुखातिब हो, हर वक्त और हर दिशा में।
शुरुआत ऐसे करें
यदि सभा के मंच पर केवल एक अध्यक्ष हो तो केवल अध्यक्ष को और उपस्थित मित्रों को संबोधित करना चाहिए। स्त्रियां, पुरुष दोनों हो तो पहले महिलाओं को फिर बाद सज्जन कहकर पुरुषों को संबोधित करना चाहिए। यदि मंच पर एक अध्यक्ष या वो भी नहीं और कई लोग बैठे हों तो पहले अध्यक्ष को संबोधित कर सभी को यह कहकर कि ‘मंच पर आसीन (विराजमान) विशिष्ट जन या हमारे विशिष्ट जन’ संबोधित करें। मूलमंत्र यह है कि किसी भी सभा में सबसे पहले अध्यक्ष को संबोधित करना चाहिए।
मंच पर इन बातों का रखें विशेष ख्याल
भाषण देने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि श्रोताओं को कौन-सी भाषा रुचिकर लगती है या लगेगी। भाषण में प्रवाह, गति और श्रोताओं तक अपने विचारों को पहुंचाने पर बल देना होता है। श्रोताओं की दिललचस्पी भाषण में बनी रहे, इस दृष्टि से भाषाओं में भावनाओं का मेल और मुहावरों की मीनाकारी का इस्तेमाल ठीक अनुपात में अच्छा रहता है। इसके लिए निम्नलिखित तथ्यों को अमल में लाएं -
(क) यदि आपने शब्द को कोई सीमित अर्थ देना हो तो उसकी परिभाषा देना आवश्यक है। उसके पर्यायवाची शब्द का प्रयोग या उसके विपरीत (उल्टा) मतलब समझाकर व्यक्त करना हितकर है।
(ख) अच्छे वक्ता प्राय किसी महान लेखक, कवि, विचारक, संत के उद्धरणों का प्रयोग करते हैं।
(ग) भाषण में सांकेतिक भाषा का उपयोग भी प्रभावशाली होता है। जैसे: किसी की शुरुआत के लिए श्री गणेश का नाम लेना, धनवान बताने के लिए कुबेर का, क्रोधी बताने के लिए दुर्वासा ऋषि, पवित्रता का गंगाजल से, ऊंचाई का हिमालय आदि से।
(घ) भाषण की विषय वस्तु को ध्यान में रखते हुए भाषण-प्रवाह की गति निर्धारित करनी चाहिए। समय की सीमा को ध्यान में रखते हुए, भाषण, विषय और भाषण प्रसंग को ध्यान में रखते हुए, उन्हीं विचारों को व्यवस्थित कर अभिव्यक्त करना चाहिए जिन पर वक्ता को विश्वास हो। एक बार फिर याद दिला दें कि भाषण कला में ईमानदारी का बहुत महत्व है।
भाषण पाठ का भाषण में उपयोग
लिखित भाषण को अच्छे स्वर में उपयुक्त गति से, उपयुक्त विराम चिन्ह के साथ पढ़ना चाहिए। जब कभी स्मरण-शक्ति सहायता न करे तब उन शीर्षकों या उपशीर्षकों की मदद से बोलना चाहिए। यदि फिर भी गाड़ी न चले तो पूरे भाषण का पठन कर दें।
भाषण पाठ को मानस में अंकित करने के कई मनोवैज्ञानिक तरीके हैं, लेकिन इसकी पहली महत्वपूर्ण सीढ़ी है भाषण बिंदुओं को और उनके क्रम को याद करना। हर बिंदु के कई पक्ष हो सकते हैं। भाषण देते समय यदि कुछ शब्द छूट जाएं या कुछ अंश किसी बिंदु के छूट जाएं तो भाषण की संपूर्ण रूपरेखा खराब नहीं होती यहां यह याद रखना ठीक है कि सहन गति स्मरण शक्ति की कमी को अच्छी तरह पूरा कर देती है।
अंग संचालन
अंग संचालन, स्वाभाविक, सहज और सीमित ही होना चाहिए।
श्वास प्रक्रिया
इसे मोटे तरीके से यह समझ लें कि मनुष्य मुंह से ध्वनि कैसे पैदा करता है तो श्वास प्रक्रिया का महत्व आसानी से समझ में आ जाएगा।
कंठ का उपयोग
मनुष्य की गर्दन में एक कंठ होता है जिसमें दो होंठ होते हैं। जो खुलते और बंद होते हैं। जब उनके बीच से हवा या श्वास निकाला जाता है तब ध्वनि उत्पन्न होती है, स्वर बनता है। स्वर की ऊंच-नीच हवा के दबाव के नियंत्रण से होती है, इसलिए श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया का ध्वनि से गाढ़ा रिश्ता है। स्वर यंत्र कुदरत की देन है, लेकिन इसे ठीक और नियंत्रित किया जा सकता है। स्वर-यंत्र कभी तनाव से अवरुद्ध भी हो जाता है। कभी भी और किसी भी कारण यदि तनाव कम करने की आवश्यकता हो तो दीर्घ श्वास की प्रक्रिया हितकर होती है।
श्वास नियंत्रण
श्वास नियंत्रण से ध्वनि में उतार-चढ़ाव ही संभव नहीं, वक्ता को एक और लाभा भी संभव है। लंबे-लंबे वाक्यों में वक्ता विराम ले-ले कर बोलता है, लेकिन यदि वक्ता श्वास-प्रक्रिया मध्यपेट से श्वास लेने की आदत डाले तो उसे हांफन भी नहीं होगी और स्थिर स्वर में वह बोल सकेगा और जब स्वर ऊंचा-नीचा करना पड़ेगा, बल देने के लिए उसमें भी कठिनाई नहीं होगी।
स्वर पर नियंत्रण रखें
अच्छे उच्चारण के साथ-साथ स्वर नियंत्रण भी भाषण में रोचकता पैदा करता है। गायक जिस प्रकार स्वर ऊंचा-नीचा करता है कुशल वक्ता भी इस प्रक्रिया का प्रयोग करता है। स्वर से भाषण की भावप्रवणता का आभास मिलता है। भाषण-कला में स्वर-मान से बहुत सूक्ष्म बात श्रोताओं के समझाने में मिलती है। स्वर-नियंत्रण से व्यंग्य में भी जान आ जाती है। सहज स्वर के साथ-साथ स्वर स्तर को वक्ता अनुशासित करे तो स्वर से बहुत सेवा ली जा सकती है।