Sunday, October 25, 2015

श्राध्द्ध

..... माँ की बूढी आँखों के सामने बेरुखी से गुजर जाते थे कमरे से....
.. ...पास बैठ उस उदास थके काँधे पे बाँहे प्यार से कभी डाला नही....... 
.... . .सूरज को देख जल का पितरो को अर्पण कर रहे है जो आज ........
.... पानी ले ना बैठे करीब, मुँह में प्यार से डाला कभी निवाला नही.........
.. मिलो का सफर कर उनके नाम आये गया में अब पिंड दान करने ........
.. घुमने गए अकेले सदा कभी साथ उनको चलने कोई पूछने वाला नही........
... पंडितो को मनुहार जिद से जो जिमा रहे हो जमाने के आगे आज ...........
.. माँ बाप की सेवा तारती जितना कोई पितृपक्ष या कोई शिवाला नही ......मधु 


श्राध्ध करने से कुछ नही होगा जीन्दा माँ बाप की सेवा करो बस


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