Sunday, October 25, 2015

मेरे देश के नेता

दौलत को गिनने की ताकत खत्म हो जाती है 
जब हमारे नेताओं के घरो में छापेमारी की जाती है 
लाखो घरो में भूखो की थाली में जो रोटी है 
इनके घरो की वो मिटटी धूल भी नहीं होती है 
यहाँ जलसों में ठुमको पर लाखो की बारिश है
उधर मुन्ने की माँ दवाओं के लिये भी  रोती है
घर का मुखिया दो वक़्त भरपेट की जंग से हारा है
देश के पैसो से यहाँ मदिरा की नदियाँ बहती है
हकदारों के सर पर सडको के पुल का सहारा है
जिससे एश हो रही कागजों पर नाम लिखा तुम्हारा है
यहाँ पर तो लाशो के कफ़न भी बेच खाते है
उन पैसो से विदेशो में छुट्टियाँ मना आते है
देश की दवा, छत, स्कूल, खेतो के पैसे कहाँ जाते है ?
सारे दाँव पेच से अपनी दहलीज़ तक खीच लाते है
हाय गरीबी हाय गरीबी माइक पर सब चिल्लाते है
कुर्सियों का असली चेहरा बंद कमरों में दिखाते है
देश की जनता अब फ़रियाद लेकर भी कहाँ जाये
जिनको थमा दो चाभी तो वो ही गिद्ध बन जाते है
खूब लड़ो हिन्दू मुसलमान के झुण्ड बना कर
बस यही कमजोरी इन्हें ताकतवर बनाते है
पीछे से वार कर पहले ये लोग जख्म देते है
कैमेरो के आगे कोरे लफ्जों के मलहम लगाते है
काश के एक बार हम मिलकर ये समझ पाते
एक दूसरे से खिलाफत का ये सिर्फ किरदार निभाते है 


उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में 
दंगाईयो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में 
घर का चुल्हा जलता था जिसके आसरे 
धुए राख का ढेर सजा है आज उन दुकानों में 
फूंक कर बस्तियां अमन की चैन से वो घरो में सों गए
पुश्ते बीतेंगी अब उनके दिए जख्मो को सुखाने में
मंदिर मस्जिद तू जहाँ कहे चल मैं सर झुका दूँ
वो सख्श लौटा दे ,लगा रहता था घर भर को हंसाने में
देखते देखते हिन्दू मुस्लिम में बाँट दिया हाड मांस के लोगो को
इंसानों को नाकामयाब देखा शैतानों को हराने में
जिनकी अगुवाई में निकले दोनों तरफ के लोग झंडे लेकर
खबर नही वो रहनुमा लगे है धंधा अपना चमकाने में
मत फैलने दो नफरतो की धुंध फिजा में
मुद्दते रोती है बिलख बिलख इंसानियत को मनाने में
वक़्त है रोक लो शहर में दंगे की अफवाहों को
ज़माने गुजर जाते है एक दुसरे के आँसुओ को सुखाने में ..
उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में
जलजलो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में ..



तमाम उम्र की कमाई हँसते हँसते लुटा देता है पिता औलादो पर
ऊपर वाले ने अपने लिए रखी सारी खुबसूरती बरसा दी जमी वालो पर ...

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