मित्रों !
जब घरों मे नल नहीं हुआ करता था उस समय मातयें कुओं से जल लेने जाती थी, तब उनके कॉधे पर रस्सी गोद मे बालक हाथ मे बाल्टी रास्ते पर चलना सिर पर घडा सहेलीयों स़े बातचीत किसी बुजुर्ग के सामने आने पर घूंघट करना ये सब काम एक साथ होता था, फिर भी इतने सारे काम करने के उपरांत भी उस देवी का सारा ध्यान सिर पर रखे घडे की ओर ही होता था । ठीक इसी प्रकार तुम भी सांसारिक कार्यों को करते हुये सिर्फ अपना ध्यान परमात्मा पर लगाए रहो यही भक्ति का सार है, ईश्वर की आराधना के लिये सांसारिक लोगो को अलग से समय लगाने की आवश्यकता नही है, उस समय को आप अपने परिवार के उत्थान मे लगाओ क्यों की परमात्मा को निकम्मे लोग नही अपितु कर्मठ लोग अधिक पसंद है, इसलिए परमात्मा के ज्यादातर अवतार और दर्शन उन लोगों को ज्यादा हुये जो गृहस्थ के कार्यों को करते हुये भी परमात्मा के चिंतन मे लगे रहे, आज भी इन्ही कर्मठ लोगो के कारण ही आध्यात्मिक जगत की गतविधियॉ विधिवत तरीके से सम्पादित होती है। सच पूछो तो परमात्मा को तुम्हारा वक्त नही तुम्हारे ह्रदय मे स्थान चाहिए क्यों की ईश्वर को मंदिर मे नही तुम्हारे ह्रदय मे अधिक अच्छा लगता है, परन्तु तुमने तो ह्रदय का कपाट बन्द कर उनके लिये व्यर्थ के आडम्बर मे उलझे हुये हो, जब तुम किसी काम से परदेश जाते हो तो वहॉ सारे काम करते हुये भी अपने परिवार को भूल नही पाते उन्हें याद करने के लिये तुम आसान आदि लगा कर नही बैठते बल्कि ना चाहते हुये भी हर समय उनकी स्मृति तुम्हें बनी रहती है, इसी प्रकार सांसारिक कार्यों को करते हुये भी परमात्मा का चिन्तन अपने चित्त मे बनाए रखो क्यों की जब तुम्हारे अन्दर परमात्म चिंतन होगा तो तुमसे पाप भी नही होगा और जब पाप नही होगा तो तुम्हारे जीवन मे आनंद ही आनंद रहेगा ।
जब घरों मे नल नहीं हुआ करता था उस समय मातयें कुओं से जल लेने जाती थी, तब उनके कॉधे पर रस्सी गोद मे बालक हाथ मे बाल्टी रास्ते पर चलना सिर पर घडा सहेलीयों स़े बातचीत किसी बुजुर्ग के सामने आने पर घूंघट करना ये सब काम एक साथ होता था, फिर भी इतने सारे काम करने के उपरांत भी उस देवी का सारा ध्यान सिर पर रखे घडे की ओर ही होता था । ठीक इसी प्रकार तुम भी सांसारिक कार्यों को करते हुये सिर्फ अपना ध्यान परमात्मा पर लगाए रहो यही भक्ति का सार है, ईश्वर की आराधना के लिये सांसारिक लोगो को अलग से समय लगाने की आवश्यकता नही है, उस समय को आप अपने परिवार के उत्थान मे लगाओ क्यों की परमात्मा को निकम्मे लोग नही अपितु कर्मठ लोग अधिक पसंद है, इसलिए परमात्मा के ज्यादातर अवतार और दर्शन उन लोगों को ज्यादा हुये जो गृहस्थ के कार्यों को करते हुये भी परमात्मा के चिंतन मे लगे रहे, आज भी इन्ही कर्मठ लोगो के कारण ही आध्यात्मिक जगत की गतविधियॉ विधिवत तरीके से सम्पादित होती है। सच पूछो तो परमात्मा को तुम्हारा वक्त नही तुम्हारे ह्रदय मे स्थान चाहिए क्यों की ईश्वर को मंदिर मे नही तुम्हारे ह्रदय मे अधिक अच्छा लगता है, परन्तु तुमने तो ह्रदय का कपाट बन्द कर उनके लिये व्यर्थ के आडम्बर मे उलझे हुये हो, जब तुम किसी काम से परदेश जाते हो तो वहॉ सारे काम करते हुये भी अपने परिवार को भूल नही पाते उन्हें याद करने के लिये तुम आसान आदि लगा कर नही बैठते बल्कि ना चाहते हुये भी हर समय उनकी स्मृति तुम्हें बनी रहती है, इसी प्रकार सांसारिक कार्यों को करते हुये भी परमात्मा का चिन्तन अपने चित्त मे बनाए रखो क्यों की जब तुम्हारे अन्दर परमात्म चिंतन होगा तो तुमसे पाप भी नही होगा और जब पाप नही होगा तो तुम्हारे जीवन मे आनंद ही आनंद रहेगा ।
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