रावण का अंत
बुराई का अंत
हुआ ही कब ??
वो तो आज भी तो जिंदा है
अपने विकराल रुप में
मानव बने
दानव के स्वरुप में
आज भी उसकी पराकाष्ठा
बङी विशाल है
जिसे तोङ पाना असंभव है
किसी राम के लिये...
और राम भी तो कहां मिलेगा
माता पिता का वह आज्ञाकारी पुत्र
आज रह गया है मात्र
अपनी सीता तक सीमित
और आज सीता ने भी तो
अपना असली रंग दिखा रखा है
अपने सास ससुर की सेवा में
अपमान और लाचारी जता के
वृद्धाआश्रम और भटकने का
रास्ता दिखा के...
वही सास भी तो अपना अभिनय
दिखा रही है बखूबी
कैकयी को पीछे छोङकर
उसने तो
देश निकाला दिया था
और ये पुत्रवधु जलाकर
अपने पुत्र का ही जीवन
स्वाहा कर रही है
अब बताओ रावण ने कहां
अपना अस्तित्व छोङा
मरकर भी अमर है
आज हर प्राणी में
अपना वर्चस्व
कायम रख गया
हर मनुष्य में
अभिमान,अमानवीय गुण
छोङ ही गया
युग युगों तक
खुद को अमर करके..
मगर राम हो या सीता
लक्ष्मण हो या भरत
या कोई भी सात्विक व्यक्तित्व
आज नही है जिंदा
किसी भी रुप में
सोचने की बात तो ये है कि
बुराई पर अच्छाई की जीत
फिर हुई कैसै ??
शाखो पर फूल महकते थे पंछी दिन रात चहकते थे
मै तो बर्बाद हुआ सो हुआ इनका भी घर बर्बाद हुआ।
जब जब पुरवाई चलती है गुजरे दिन याद दिलाती है
बिन खिले कलियाँ टूट गई इस बात का मुझे मलाल हुआ ।
हिल गयी जो जड़ तूफानो मे वो अब तक ना मज़बूत हुई
हम ज़िद मे खड़े वही पर है पर जीना मेरा मुहाल हुआ।
बुराई का अंत
हुआ ही कब ??
वो तो आज भी तो जिंदा है
अपने विकराल रुप में
मानव बने
दानव के स्वरुप में
आज भी उसकी पराकाष्ठा
बङी विशाल है
जिसे तोङ पाना असंभव है
किसी राम के लिये...
और राम भी तो कहां मिलेगा
माता पिता का वह आज्ञाकारी पुत्र
आज रह गया है मात्र
अपनी सीता तक सीमित
और आज सीता ने भी तो
अपना असली रंग दिखा रखा है
अपने सास ससुर की सेवा में
अपमान और लाचारी जता के
वृद्धाआश्रम और भटकने का
रास्ता दिखा के...
वही सास भी तो अपना अभिनय
दिखा रही है बखूबी
कैकयी को पीछे छोङकर
उसने तो
देश निकाला दिया था
और ये पुत्रवधु जलाकर
अपने पुत्र का ही जीवन
स्वाहा कर रही है
अब बताओ रावण ने कहां
अपना अस्तित्व छोङा
मरकर भी अमर है
आज हर प्राणी में
अपना वर्चस्व
कायम रख गया
हर मनुष्य में
अभिमान,अमानवीय गुण
छोङ ही गया
युग युगों तक
खुद को अमर करके..
मगर राम हो या सीता
लक्ष्मण हो या भरत
या कोई भी सात्विक व्यक्तित्व
आज नही है जिंदा
किसी भी रुप में
सोचने की बात तो ये है कि
बुराई पर अच्छाई की जीत
फिर हुई कैसै ??
शाखो पर फूल महकते थे पंछी दिन रात चहकते थे
मै तो बर्बाद हुआ सो हुआ इनका भी घर बर्बाद हुआ।
जब जब पुरवाई चलती है गुजरे दिन याद दिलाती है
बिन खिले कलियाँ टूट गई इस बात का मुझे मलाल हुआ ।
हिल गयी जो जड़ तूफानो मे वो अब तक ना मज़बूत हुई
हम ज़िद मे खड़े वही पर है पर जीना मेरा मुहाल हुआ।
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