कितनी बार मरी हू
फिर मरकर उठी हू
अपने मन को मारकर
तिल तिल जली हू
क्या कर सकती हू मैं मगर
इससे और ज्यादा
दिन में ख्वाब देखकर
रातों में फिर ढली हू
छोङ जाता कोई मजबूरी में
तो कोई बेच जाता है
कोई उठा लाता कही से
तो किसी पिता से नही पली हू
खत्म हो जाता असतित्व मेंरा
बस यहां आकर
और रह जाती हू एक
बेनाम ठप्पा लगाकर
निकलू भी अगर यहां से
तो भी कौन अपनाये
गिद्ध भरे बैठै है बाहर
घात लगाये सारे
शायद उनसे ज्यादा तो यहां
मैं सुरक्षित भली हू
भले सफेद पोश समाज की
मैं एक गंदी कली हू..
फिर मरकर उठी हू
अपने मन को मारकर
तिल तिल जली हू
क्या कर सकती हू मैं मगर
इससे और ज्यादा
दिन में ख्वाब देखकर
रातों में फिर ढली हू
छोङ जाता कोई मजबूरी में
तो कोई बेच जाता है
कोई उठा लाता कही से
तो किसी पिता से नही पली हू
खत्म हो जाता असतित्व मेंरा
बस यहां आकर
और रह जाती हू एक
बेनाम ठप्पा लगाकर
निकलू भी अगर यहां से
तो भी कौन अपनाये
गिद्ध भरे बैठै है बाहर
घात लगाये सारे
शायद उनसे ज्यादा तो यहां
मैं सुरक्षित भली हू
भले सफेद पोश समाज की
मैं एक गंदी कली हू..
-एकता सारदा
समाज के एक इस भयावह पहलु पर ह्रदय को झकझोर देने वाला aditi gupta का एक कटु लेख..रोक नही पाई इसे share किये बिना..
Aditi Gupta added 5 new photos.
सभ्य समाज का काला सच.....
हमारे समाज में एक जगह ऐसी भी है जहाँ बेटी पैदा होने पर खुशियाँ मनाई जाती है और बेटा पैदा होने पर मुंह सिकुड़ जाता है, ये बदनाम गलियों की दास्ताँ है। दिल्ली के जी बी रोड की अँधेरी जर्जर खिड़कियों में पीली रोशनी से इशारा करती लड़कियों के विषय में जानने की फुर्सत शायद ही किसी के पास हो। भारी व्यावसायिक गतिविधियों और भीड़ भरे इस बाजार में वहां के व्यापारियों के लिए यह कुछ नया नहीं है। शरीफ लोग मुंह उठाकर ऊपर नहीं देखते। महिलाएं तो शायद ही ऐसा करती हों ।
जब हमने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जीबी रोड जाने का रास्ता पूछा तो लोगों के चेहरे पर कई भाव आये और गए। तिरछी मुस्कान से लोग दायें और बाएं जाना बताते रहे। हमारे लिए यह एकदम नया अनुभव था। टूटे -फूटे दुमंजिले मकान की खिड़कियों से अधखुले कंधे दिखाते गाउन पहने इशारा करती महिलाओं को देखकर समझ मे आ गया कि हमारा गंतव्य स्थल आ गया है। परन्तु एक बड़ी समस्या थी की इन महिलाओं (वेश्याओं) से संपर्क किस तरह किया जाय। इसके लिए हमने पहले वहां के दुकानदार से बातचीत करना तय किया। रामशरण (बदला हुआ नाम) इस इलाके में 48 साल से दुकान चला रहे हैं। वो इस विषय पर काफी सहज नजर आए। वो कहते हैं "ना तो ये महिलाएं हमसे बात करती है ना हीं हम हम लोग इनके काम में दखल अंदाजी नहीं करते। यदि इन्हें कभी काम पड़ता है तो किसी बच्चे या नौकर के जरिये कहलवा दिया जाता है। जीबी रोड मेटल और मेवे का बड़ा बाजार है। यहाँ हमेशा चहल पहल रहती है। आगे रामशरण कहते हैं बाजार होने से ये वेश्याएं सुरक्षित महसूस करती हैं। ग्राहक इनके साथ ज्यादती नहीं कर पाते और यहाँ के व्यवसायी भी सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि कोठों की गुंडों की वजह से कोई हमारे साथ गलत हरकत नहीं करता। रामशरण यह भी दावा करते हैं की जिस बाजार में भी वेश्यावृत्ति होती है वह बाजार काफी फलता फूलता है।
जब हमने उनसे पूछा कि आपको कभी कुछ असहज लगता है तो उनका जवाब था कि वो अपना काम करती है बस अजीब यह लगता है कि कल जो छोटी सी बच्ची फ्रॉक पहने यहाँ टॉफी बिस्किट खरीदती थी वो आज खिड़की के पीछे से ग्राहकों की बाट जोहती है, इशारे करती है। वो वेश्यावृत्ति में लग जाती है। इन्ही के माध्यम से हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। रामशरण धर्मेन्द्र (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यक्ति को हमारे साथ कर देते हैं जो हमें आगे का रास्ता दिखाता है। घनी दुकानों के बीच कोठे पर जाने के रास्ते का अनुमान लगाना काफी कठिन था। धर्मेन्द्र आगे चला और दुकानों के बीच से एक संकरी और अँधेरी सीढियों से ऊपर ले गया। ऊपर एक अलग ही दुनिया थी। एक बड़े से हालनुमा कमरे में मुजरे की एक बड़ी तस्वीर लगी थी और सामने एक दलाल बैठा था।18 से 30 साल की लड़कियां इधर से उधर घूम रही थी। शाम के करीब 5 बजे थे उनके लिए यह सुबह का समय था। सभी लड़कियां नींद से जागी थी और दिनचर्या शुरू ही की थी। नाईटी और गाउन में लड़कियां साबुन ब्रश लिए बार-बार उस कमरे से गुजरती जिस कमरे में हम बैठे थे और हम पर नजर डालती। लेकिन बात करने के लिए कोई तैयार नहीं होती थी।
सीढियों से अन्दर घुसते ही पहले वो खूबसरत कमरा था जिसमे ऊपर फानूस लटक रहा था। नीचे बिछे गद्दे पर बड़े गोल तकिये लगे थे। इसी खूबसूरती के पीछे छुपी थी काली असलियत। संजीव दलाल (बदला हुआ नाम) जो सभी लड़कियों की निगरानी कर रहा था और हमसे बात भी कर रहा था, उसने बताया कि एक बिल्डिंग में कई कोठे हैं और सबके मालिक अलग अलग होते हैं। इसी बीच वहां पर कुछ ग्राहक भी आ गए जिनको दलाल ने उस वक्त डांट कर भगा दिया। जब हमने लड़कियों के रहन सहन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक कमरे में आठ से दस लड़कियां रहती है। उसने दिल्ली के कई पाश इलाके के नाम बताए जहाँ पर खुले आम वेश्यावृत्ति होती है। उसने बताया कि पहड्गंज, लक्ष्मी नगर, पटेल नगर के अलावा और भी कई अच्छे इलाको मे यह करोबार यहा से ज्यादा चलता है।
बातचीत के दौरान ही हम हॉलनुमा कमरे के सामने दिख रही अँधेरी गली से अन्दर जाने में सफल रहे, जहाँ इन महिलाओं के रहने के लिए कोठरीनुमा कमरे बने हुए थे। वहां पर बेहद छोटी जगह में बनी रसोई में बैठी माला देवी से बात हुई। 40 साल की मालादेवी अब धंधा नहीं करती वो नई लड़कियों के लिए खाना बनाने का काम करती है। उसकी माँ भी इसी कोठे का हिस्सा थी। अन्दर की स्थिती काफी अमानुषिक थी। एक मंजिले मकान में नीची छत पाटकर दो मंजिल में विभाजित कर दिया गया था। कमरे से ही लकडी की खड़ी सीढ़ी ऊपर जाने के लिए लगी थी। जिसे ग्राहक के ऊपर जाने के बाद हटा लिया जाता है। ऊपर से कुछ महिलाओं ने हमें झाँक कर देखा। हमारे प्यार से हैलो कहने का जवाब इनके पास नहीं था। यहाँ हमसे कोई भी लड़की बात करने के लिए तैयार नहीं हुई। हम वापस दलाल के पास आए उसने कई तरह के बहाने बनाए कि कोठा मालकिन अभी शादी में गयी है। उसकी आज्ञा के बिना यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिये वेश्याओं से बात करने के लिए हम दूसरी मंजिल पर बने एक अन्य कोठे में गए। यहाँ भी हमें वैसा ही माहौल मिला पहले-पहल कोई भी लड़की बात करने के लिए राजी नहीं हुई लेकिन उन्हें समझाने के बाद कुछ ने अपने दिल के राज खोले। देखने में मासूम और खूबसूरत ये लड़कियां कहीं से भी आम लड़कियों से जुदा नहीं थी। यहाँ पर हम वेश्यावृत्ति करने वाली आरजू से मिले। आरजू जितना खूबसूरत नाम है उतनी ही वो खूबसूरत भी थी। लेकिन उसकी हकीकत कहीं ज्यादा बदसूरत थी। राजस्थान के छोटे से गांव से आई आरजू की शादी हो चुकी है, पति और पारिवार गांव मे ही रहते हैं आरजू वहां तीज त्योहारों पर जाती है। आरजू हंस कर बात कर रही थी उससे जब हमने पूछा कि उनकी दिनचर्या क्या होती है तो उनका कहना था कि "रात भर काम करने के बाद हम सुबह में सो पाती हैं और शाम को जागती हैं। ब्रश करती हैं, नहाने और नाश्ते के बाद हम मुजरे के लिए तैयार होते हैं। इसी बीच इन्हें खाना और व्यक्तिगत काम निबटाने होते। कुछ ज्यादा ना बोल दे इसलिए बीच में प्रिया आ गयी, थोड़े गठीले बदन कि प्रिया इन सबसे ज्यादा तेज दिखी लेकिन किस्मत उसकी भी धीमी थी। पास में ही बैठी बिंदिया के एक लड़का और एक लड़की है। फ़िलहाल दोनों दूर कही पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन बिंदिया को डर है कि उसकी बेटी को भी यहीं न आना पड़े। तीज त्यौहार किस तरह मनाती है पर प्रिया ने बताया कि वो दोस्तों के साथ पार्टी करती हैं। घूमने जाती हैं।
इनकी आँखों में भी सपने थे लेकिन वो सपने थे जो रात को ग्राहक दिखाते हैं और सुबह उनके साथ ही कही गुम हो जाते हैं। इससे ज्यादा ये लड़कियां खुलने को तैयार नहीं हुई। शाम को मुजरे में शामिल होने का वादा भी इन्होने हमसे लिया। हम उसी अँधेरी सीढियों से नीचे आने लगे तो आरजू कि आवाज कानों में पड़ी थी -"नाईस मीटिंग यू" उनके लिये शायद जरूर नाईस मीटिंग होगी लेकिन हम खुद को उन्हीं तंग कोठरियों में घिरा महसूस कर रहे थे। हमें लग रहा था कि वो दीवारे हमारे साथ चली आ रही है। जहाँ सिर्फ अँधेरा है और छलावा देने वाली रोशनी है।
इसके बाद हम जीबी रोड पर बनी पुलिस चौकी पर पहुंचे। वहां पर तीन चार कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल मौजूद थे। जब हमने वहां पर हो रही वेश्यावृत्ति और कोठों के बारे में जानकारी मांगी तो सभी पुलिस वाले बेतहाशा हंसने लगे व मजाकिया लहजे में बात करने लगे। उन्होंने बड़ी शान से कहा जीबी रोड पर 64 नंबर कोठा सबसे शानदार है। वहां पर अच्छे व बड़े घरों के रसूखदार लोग आते हैं। हमने अपनी जिज्ञासा दिखाते हुए कहा कि हम किसी वेश्या से बात करना चाहते हैं तो उन्होने आसान रास्ता बताया कि मेडम अपने किसी साथी को भेज दो , पहले कोठा मालकिन को 200-250 फीस देनी पड़ेगी फिर उसको लड्की मिल जायेगी और आप उससे आराम से बात करना। ग्राहक बनने का रास्ता सुझाते हुए तीनों पुलिस वाले ने एक दूसरे को कनखियों से देखा और जोर से हंसने लगे। जब हमने गंभीरता से प्रश्न पूछे तो उन्होने हमारा परिचय जानना चाहा। मीडिया की बात जानकर अब वो पूरी मुस्तैदी से बात करने लगे। उन्होने बताया कि जब लड़कियां यहाँ जबरन लाई जाती है और हमें शिकायत मिलती है तो हम तुंरत कार्रवाई करते हैं, या फिर नाबालिग़ लड़की कि सूचना मिलती है तो रेड करते हैं। अभी हाल ही में एक एनजीओ की शिकायत पर दो तीन लड़कियों को रेस्क्यू करा कर हमने नारी निकेतन भिजवाया है। हम जैसे ही यहाँ से वापसी के लिए आगे बढे एक ग्राहक हमारे पास आकर गिडगिडाने लगा की वह कोठे पर गया था, वहां पर कुछ वेश्याओं ने मिलकर उसके तीन हजार रुपये छीन लिए और मारा पीटा। हमारे लिए यह तस्वीर का दूसरा पहलू था। वेश्यावृत्ति भारत में अपराध की श्रेणी में आती है लेकिन प्रश्न यह है कि फिर क्यों जीबी रोड पर रजिस्टर्ड कोठे स्थित हैं। दरअसल यह कोठे राजा महाराजाओं के ज़माने से यहाँ पर स्थित है। तब इनकी शान और रंगीनियाँ अलग रुतबा रखा करती थी।
यहाँ रहने वाली महिलाएं बाई जी कहलाती थी लेकिन ये लोग देह व्यापार नहीं करती थी। यहाँ पर राजा, महाराजा मनोरंजन के लिए आया करता थे। गाना बजाना हुआ करता था। इनके संगीत और कला को सराहा जाता था। कइ बाईयाँ तो अपनी आवाज़ और शायरी के लिये दूर्-दूर तक मशहूर थी। धीरे-धीरे यहाँ पर कोठों की संख्या भी काफी हो गयी थी। इसके अलावा जीबी रोड के पास ही सदर बाजार खारी बावली और चांदनी चौक जैसे प्रतिष्ठित मंडियां और बाजार स्थित हैं। यहाँ पर बड़े पैमाने पर व्यापार होता था और आज यह व्यापार काफी फल फूल चुका है। पहले दूर दूर से व्यापारी यहाँ आकर रुकते थे। आधुनिक मनोरंजन के साधन नहीं होने के कारण दूर से भी शौकीन लोग यहाँ पर मनोरंजन के लिए आया करते थे। बाजार आज भी वैसा ही है। लेकिन मुजरे के नाम पर देह व्यापार होने लगा है। मुजरे आज भी होते हैं क्योंकि सरकार की ओर से इन कोठों को मुजरा करने के लिए लाइसेंस मिले हुए हैं और यहाँ हर रात 9 से 12 बजे तक मुजरा होता है। पुलिस के अनुसार 12 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति कोठे में नहीं जा सकता। 12 बजते ही पुलिस कोठों को बंद करा देती है।
जब हमने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जीबी रोड जाने का रास्ता पूछा तो लोगों के चेहरे पर कई भाव आये और गए। तिरछी मुस्कान से लोग दायें और बाएं जाना बताते रहे। हमारे लिए यह एकदम नया अनुभव था। टूटे -फूटे दुमंजिले मकान की खिड़कियों से अधखुले कंधे दिखाते गाउन पहने इशारा करती महिलाओं को देखकर समझ मे आ गया कि हमारा गंतव्य स्थल आ गया है। परन्तु एक बड़ी समस्या थी की इन महिलाओं (वेश्याओं) से संपर्क किस तरह किया जाय। इसके लिए हमने पहले वहां के दुकानदार से बातचीत करना तय किया। रामशरण (बदला हुआ नाम) इस इलाके में 48 साल से दुकान चला रहे हैं। वो इस विषय पर काफी सहज नजर आए। वो कहते हैं "ना तो ये महिलाएं हमसे बात करती है ना हीं हम हम लोग इनके काम में दखल अंदाजी नहीं करते। यदि इन्हें कभी काम पड़ता है तो किसी बच्चे या नौकर के जरिये कहलवा दिया जाता है। जीबी रोड मेटल और मेवे का बड़ा बाजार है। यहाँ हमेशा चहल पहल रहती है। आगे रामशरण कहते हैं बाजार होने से ये वेश्याएं सुरक्षित महसूस करती हैं। ग्राहक इनके साथ ज्यादती नहीं कर पाते और यहाँ के व्यवसायी भी सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि कोठों की गुंडों की वजह से कोई हमारे साथ गलत हरकत नहीं करता। रामशरण यह भी दावा करते हैं की जिस बाजार में भी वेश्यावृत्ति होती है वह बाजार काफी फलता फूलता है।
जब हमने उनसे पूछा कि आपको कभी कुछ असहज लगता है तो उनका जवाब था कि वो अपना काम करती है बस अजीब यह लगता है कि कल जो छोटी सी बच्ची फ्रॉक पहने यहाँ टॉफी बिस्किट खरीदती थी वो आज खिड़की के पीछे से ग्राहकों की बाट जोहती है, इशारे करती है। वो वेश्यावृत्ति में लग जाती है। इन्ही के माध्यम से हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। रामशरण धर्मेन्द्र (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यक्ति को हमारे साथ कर देते हैं जो हमें आगे का रास्ता दिखाता है। घनी दुकानों के बीच कोठे पर जाने के रास्ते का अनुमान लगाना काफी कठिन था। धर्मेन्द्र आगे चला और दुकानों के बीच से एक संकरी और अँधेरी सीढियों से ऊपर ले गया। ऊपर एक अलग ही दुनिया थी। एक बड़े से हालनुमा कमरे में मुजरे की एक बड़ी तस्वीर लगी थी और सामने एक दलाल बैठा था।18 से 30 साल की लड़कियां इधर से उधर घूम रही थी। शाम के करीब 5 बजे थे उनके लिए यह सुबह का समय था। सभी लड़कियां नींद से जागी थी और दिनचर्या शुरू ही की थी। नाईटी और गाउन में लड़कियां साबुन ब्रश लिए बार-बार उस कमरे से गुजरती जिस कमरे में हम बैठे थे और हम पर नजर डालती। लेकिन बात करने के लिए कोई तैयार नहीं होती थी।
सीढियों से अन्दर घुसते ही पहले वो खूबसरत कमरा था जिसमे ऊपर फानूस लटक रहा था। नीचे बिछे गद्दे पर बड़े गोल तकिये लगे थे। इसी खूबसूरती के पीछे छुपी थी काली असलियत। संजीव दलाल (बदला हुआ नाम) जो सभी लड़कियों की निगरानी कर रहा था और हमसे बात भी कर रहा था, उसने बताया कि एक बिल्डिंग में कई कोठे हैं और सबके मालिक अलग अलग होते हैं। इसी बीच वहां पर कुछ ग्राहक भी आ गए जिनको दलाल ने उस वक्त डांट कर भगा दिया। जब हमने लड़कियों के रहन सहन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक कमरे में आठ से दस लड़कियां रहती है। उसने दिल्ली के कई पाश इलाके के नाम बताए जहाँ पर खुले आम वेश्यावृत्ति होती है। उसने बताया कि पहड्गंज, लक्ष्मी नगर, पटेल नगर के अलावा और भी कई अच्छे इलाको मे यह करोबार यहा से ज्यादा चलता है।
बातचीत के दौरान ही हम हॉलनुमा कमरे के सामने दिख रही अँधेरी गली से अन्दर जाने में सफल रहे, जहाँ इन महिलाओं के रहने के लिए कोठरीनुमा कमरे बने हुए थे। वहां पर बेहद छोटी जगह में बनी रसोई में बैठी माला देवी से बात हुई। 40 साल की मालादेवी अब धंधा नहीं करती वो नई लड़कियों के लिए खाना बनाने का काम करती है। उसकी माँ भी इसी कोठे का हिस्सा थी। अन्दर की स्थिती काफी अमानुषिक थी। एक मंजिले मकान में नीची छत पाटकर दो मंजिल में विभाजित कर दिया गया था। कमरे से ही लकडी की खड़ी सीढ़ी ऊपर जाने के लिए लगी थी। जिसे ग्राहक के ऊपर जाने के बाद हटा लिया जाता है। ऊपर से कुछ महिलाओं ने हमें झाँक कर देखा। हमारे प्यार से हैलो कहने का जवाब इनके पास नहीं था। यहाँ हमसे कोई भी लड़की बात करने के लिए तैयार नहीं हुई। हम वापस दलाल के पास आए उसने कई तरह के बहाने बनाए कि कोठा मालकिन अभी शादी में गयी है। उसकी आज्ञा के बिना यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिये वेश्याओं से बात करने के लिए हम दूसरी मंजिल पर बने एक अन्य कोठे में गए। यहाँ भी हमें वैसा ही माहौल मिला पहले-पहल कोई भी लड़की बात करने के लिए राजी नहीं हुई लेकिन उन्हें समझाने के बाद कुछ ने अपने दिल के राज खोले। देखने में मासूम और खूबसूरत ये लड़कियां कहीं से भी आम लड़कियों से जुदा नहीं थी। यहाँ पर हम वेश्यावृत्ति करने वाली आरजू से मिले। आरजू जितना खूबसूरत नाम है उतनी ही वो खूबसूरत भी थी। लेकिन उसकी हकीकत कहीं ज्यादा बदसूरत थी। राजस्थान के छोटे से गांव से आई आरजू की शादी हो चुकी है, पति और पारिवार गांव मे ही रहते हैं आरजू वहां तीज त्योहारों पर जाती है। आरजू हंस कर बात कर रही थी उससे जब हमने पूछा कि उनकी दिनचर्या क्या होती है तो उनका कहना था कि "रात भर काम करने के बाद हम सुबह में सो पाती हैं और शाम को जागती हैं। ब्रश करती हैं, नहाने और नाश्ते के बाद हम मुजरे के लिए तैयार होते हैं। इसी बीच इन्हें खाना और व्यक्तिगत काम निबटाने होते। कुछ ज्यादा ना बोल दे इसलिए बीच में प्रिया आ गयी, थोड़े गठीले बदन कि प्रिया इन सबसे ज्यादा तेज दिखी लेकिन किस्मत उसकी भी धीमी थी। पास में ही बैठी बिंदिया के एक लड़का और एक लड़की है। फ़िलहाल दोनों दूर कही पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन बिंदिया को डर है कि उसकी बेटी को भी यहीं न आना पड़े। तीज त्यौहार किस तरह मनाती है पर प्रिया ने बताया कि वो दोस्तों के साथ पार्टी करती हैं। घूमने जाती हैं।
इनकी आँखों में भी सपने थे लेकिन वो सपने थे जो रात को ग्राहक दिखाते हैं और सुबह उनके साथ ही कही गुम हो जाते हैं। इससे ज्यादा ये लड़कियां खुलने को तैयार नहीं हुई। शाम को मुजरे में शामिल होने का वादा भी इन्होने हमसे लिया। हम उसी अँधेरी सीढियों से नीचे आने लगे तो आरजू कि आवाज कानों में पड़ी थी -"नाईस मीटिंग यू" उनके लिये शायद जरूर नाईस मीटिंग होगी लेकिन हम खुद को उन्हीं तंग कोठरियों में घिरा महसूस कर रहे थे। हमें लग रहा था कि वो दीवारे हमारे साथ चली आ रही है। जहाँ सिर्फ अँधेरा है और छलावा देने वाली रोशनी है।
इसके बाद हम जीबी रोड पर बनी पुलिस चौकी पर पहुंचे। वहां पर तीन चार कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल मौजूद थे। जब हमने वहां पर हो रही वेश्यावृत्ति और कोठों के बारे में जानकारी मांगी तो सभी पुलिस वाले बेतहाशा हंसने लगे व मजाकिया लहजे में बात करने लगे। उन्होंने बड़ी शान से कहा जीबी रोड पर 64 नंबर कोठा सबसे शानदार है। वहां पर अच्छे व बड़े घरों के रसूखदार लोग आते हैं। हमने अपनी जिज्ञासा दिखाते हुए कहा कि हम किसी वेश्या से बात करना चाहते हैं तो उन्होने आसान रास्ता बताया कि मेडम अपने किसी साथी को भेज दो , पहले कोठा मालकिन को 200-250 फीस देनी पड़ेगी फिर उसको लड्की मिल जायेगी और आप उससे आराम से बात करना। ग्राहक बनने का रास्ता सुझाते हुए तीनों पुलिस वाले ने एक दूसरे को कनखियों से देखा और जोर से हंसने लगे। जब हमने गंभीरता से प्रश्न पूछे तो उन्होने हमारा परिचय जानना चाहा। मीडिया की बात जानकर अब वो पूरी मुस्तैदी से बात करने लगे। उन्होने बताया कि जब लड़कियां यहाँ जबरन लाई जाती है और हमें शिकायत मिलती है तो हम तुंरत कार्रवाई करते हैं, या फिर नाबालिग़ लड़की कि सूचना मिलती है तो रेड करते हैं। अभी हाल ही में एक एनजीओ की शिकायत पर दो तीन लड़कियों को रेस्क्यू करा कर हमने नारी निकेतन भिजवाया है। हम जैसे ही यहाँ से वापसी के लिए आगे बढे एक ग्राहक हमारे पास आकर गिडगिडाने लगा की वह कोठे पर गया था, वहां पर कुछ वेश्याओं ने मिलकर उसके तीन हजार रुपये छीन लिए और मारा पीटा। हमारे लिए यह तस्वीर का दूसरा पहलू था। वेश्यावृत्ति भारत में अपराध की श्रेणी में आती है लेकिन प्रश्न यह है कि फिर क्यों जीबी रोड पर रजिस्टर्ड कोठे स्थित हैं। दरअसल यह कोठे राजा महाराजाओं के ज़माने से यहाँ पर स्थित है। तब इनकी शान और रंगीनियाँ अलग रुतबा रखा करती थी।
यहाँ रहने वाली महिलाएं बाई जी कहलाती थी लेकिन ये लोग देह व्यापार नहीं करती थी। यहाँ पर राजा, महाराजा मनोरंजन के लिए आया करता थे। गाना बजाना हुआ करता था। इनके संगीत और कला को सराहा जाता था। कइ बाईयाँ तो अपनी आवाज़ और शायरी के लिये दूर्-दूर तक मशहूर थी। धीरे-धीरे यहाँ पर कोठों की संख्या भी काफी हो गयी थी। इसके अलावा जीबी रोड के पास ही सदर बाजार खारी बावली और चांदनी चौक जैसे प्रतिष्ठित मंडियां और बाजार स्थित हैं। यहाँ पर बड़े पैमाने पर व्यापार होता था और आज यह व्यापार काफी फल फूल चुका है। पहले दूर दूर से व्यापारी यहाँ आकर रुकते थे। आधुनिक मनोरंजन के साधन नहीं होने के कारण दूर से भी शौकीन लोग यहाँ पर मनोरंजन के लिए आया करते थे। बाजार आज भी वैसा ही है। लेकिन मुजरे के नाम पर देह व्यापार होने लगा है। मुजरे आज भी होते हैं क्योंकि सरकार की ओर से इन कोठों को मुजरा करने के लिए लाइसेंस मिले हुए हैं और यहाँ हर रात 9 से 12 बजे तक मुजरा होता है। पुलिस के अनुसार 12 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति कोठे में नहीं जा सकता। 12 बजते ही पुलिस कोठों को बंद करा देती है।
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