एक जज्बा था एक हौसला था
एक हिम्मत थी सूरत बदलने की
एक आग थी दिलो में
हवाओं के रुख को पलटने की
हलक में आ कुछ फंसने लगा है
खौलता खून हाय जमने लगा है
मान ले जो जैसा था वैसा ही चलेगा
सब ऐसे थे ऐसा ही रहेगा
अपने हिस्से का लूटेंगे दोनों हाथो से समेटेंगे
मौका मिला तो पूरी ताकत से बटोरेंगे
एक सपना था जो टूटने लगा है
एक आग थी बुझने चली है
आदमी तिल तिल रोज मरने लगा है
रोटी के पीछे पीछे फिर चलने लगा है
मशाल वाले हाथ काटे जाने लगे
अंधेरो के पहरेदार लोगो को सुलाने लगे
भयभीत सब आँख मुंदे पड़े रहे
सियासी खेल अपनी ताकत दिखाने लगे
पराजित की हालत पे मुस्कुराते हुए
हरे भगवा रंगों में गरीबी को भुलाने लगे
अमन की बस्ती जब उजड़ने लगी तो
लोग अपने गुल्लक समेटने लगे
पांच सितारा होटलों में धवल कुरते चमकने लगे
देश में भूखमरी पर विलाप सब करने लगे
लम्बी मेजों पे गरीबो की चिंता होने लगी
कितने प्रतिशत सोते है भूखे
मेवों कि ठुनकी पे मीटिंग में चर्चा उछलने लगी
लुटने वाले अटल मज़बूत स्तम्भ बनने लगे
ईमान के हिमायती धराशायी ढहने लगे
थक हार गए बैठ गए सारे इंकलाबी
हल्लाबोल वाले होठ खामोश सिलने लगे
दूर भगत सिंह, अशफाक उल्लाखां मायूस होने लगे
क्या मेरे देशवासी फिर 200 साल की नींद में सोने लगे
.......................................madhu.
एक हिम्मत थी सूरत बदलने की
एक आग थी दिलो में
हवाओं के रुख को पलटने की
हलक में आ कुछ फंसने लगा है
खौलता खून हाय जमने लगा है
मान ले जो जैसा था वैसा ही चलेगा
सब ऐसे थे ऐसा ही रहेगा
अपने हिस्से का लूटेंगे दोनों हाथो से समेटेंगे
मौका मिला तो पूरी ताकत से बटोरेंगे
एक सपना था जो टूटने लगा है
एक आग थी बुझने चली है
आदमी तिल तिल रोज मरने लगा है
रोटी के पीछे पीछे फिर चलने लगा है
मशाल वाले हाथ काटे जाने लगे
अंधेरो के पहरेदार लोगो को सुलाने लगे
भयभीत सब आँख मुंदे पड़े रहे
सियासी खेल अपनी ताकत दिखाने लगे
पराजित की हालत पे मुस्कुराते हुए
हरे भगवा रंगों में गरीबी को भुलाने लगे
अमन की बस्ती जब उजड़ने लगी तो
लोग अपने गुल्लक समेटने लगे
पांच सितारा होटलों में धवल कुरते चमकने लगे
देश में भूखमरी पर विलाप सब करने लगे
लम्बी मेजों पे गरीबो की चिंता होने लगी
कितने प्रतिशत सोते है भूखे
मेवों कि ठुनकी पे मीटिंग में चर्चा उछलने लगी
लुटने वाले अटल मज़बूत स्तम्भ बनने लगे
ईमान के हिमायती धराशायी ढहने लगे
थक हार गए बैठ गए सारे इंकलाबी
हल्लाबोल वाले होठ खामोश सिलने लगे
दूर भगत सिंह, अशफाक उल्लाखां मायूस होने लगे
क्या मेरे देशवासी फिर 200 साल की नींद में सोने लगे
.......................................madhu.
No comments:
Post a Comment