गुरू किसे कहते है
गुरू कौन है ?
गुरू किसे माने?
गुरू कयों बनाये?
सतगुरू कौन है?
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गुरू कौन है ?
गुरू किसे माने?
गुरू कयों बनाये?
सतगुरू कौन है?
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गुरू किसे कहते है ❓
गु = मल या अन्धकार
रु = नाश करना
जो अविद्या रूपी अन्धकार का नाश कर दे उसे गुरु कहते हैं।
मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद - शतपथ-ब्राह्मण
वस्तुतः जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात् एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य होवे, तभी मनुष्य ज्ञानवान होता है. वह कुल धन्य ! वह सन्तान बड़ा भाग्यवान् !
जिसके माता और पिता धार्मिक विद्वान् हों. जितना माता से सन्तानों को उपदेश और उपकार पहुँचता है, उतना किसी से नहीं. जैसे माता सन्तानों पर प्रेम, उनका हित करना चाहती है, उतना अन्य कोई नहीं करता. --सत्यार्थ-प्रकाश, द्वितीय-समुल्लास
रु = नाश करना
जो अविद्या रूपी अन्धकार का नाश कर दे उसे गुरु कहते हैं।
मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद - शतपथ-ब्राह्मण
वस्तुतः जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात् एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य होवे, तभी मनुष्य ज्ञानवान होता है. वह कुल धन्य ! वह सन्तान बड़ा भाग्यवान् !
जिसके माता और पिता धार्मिक विद्वान् हों. जितना माता से सन्तानों को उपदेश और उपकार पहुँचता है, उतना किसी से नहीं. जैसे माता सन्तानों पर प्रेम, उनका हित करना चाहती है, उतना अन्य कोई नहीं करता. --सत्यार्थ-प्रकाश, द्वितीय-समुल्लास
स पूर्वेषाम अपि गुरु कालेनवच्छेदात् - योगदर्शन पाद-1, सूत्र-26
वह ईश्वर काल के व्यवधान से रहित, पूर्वोत्पन्न हुए गुरुओं का भी गुरु है.
ईश्वर ही सृष्टि के प्रारम्भ में ऋषियों को ज्ञान प्रदान करता है, जो परम्परा से हमें प्राप्त होता है.चूंकि परमात्मा सत्यधर्मप्रतिपादक, सकलविद्यायुक्त वेद का उपदेश कर्ता है इसलिए परमात्मा भी गुरु है.
वह गुरूओ का गुरू होने से जगत गुरू है, सतगुरू भी है.परमात्मा सर्वगुण सम्पन्न है, उनमें किसी भी तरह का दोष नही है, अत: परमात्मा को आदर्श गुरु कह सकते है.
गुरू मानना ❓
किसी के आदर्शो को शिक्षाओ को पाने के लिए भी गुरू माना जाता है,लेकिन किसी को गुरु मान लेने से ही दुःख दूर नहीं हो जाते। दुःख का निवारण तो रज और तम गुणों के अभाव या विवेकख्याति अवस्था
के पश्चात् ही होता है।
गुरू बनाना ❓
किसी भी क्षेत्र में मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु शिक्षक का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । यही सूत्र अध्यात्म के क्षेत्र में भी लागू होता है । ‘अध्यात्म' सूक्ष्म-स्तरीय विषय है, अर्थात् गूढ़ विषय है, इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत मार्गदर्शक आवश्यक है, वेदो के विद्वान को ही गुरू बनाना चाहिए, ईश्वर वेद मे कहते है
"आर्याय ददामि अहम् पृथिव्या म"
ये धरती आर्यो को देता हूँ, जो समस्त पृथिवी को आर्य बनाने मे वेद विद्या का प्रचार करे, न की वेद विरूद आचरण लोगो से करवा देवे. वह केवल प्रवचनकर्ता हो सकता है गुरू नही
वह ईश्वर काल के व्यवधान से रहित, पूर्वोत्पन्न हुए गुरुओं का भी गुरु है.
ईश्वर ही सृष्टि के प्रारम्भ में ऋषियों को ज्ञान प्रदान करता है, जो परम्परा से हमें प्राप्त होता है.चूंकि परमात्मा सत्यधर्मप्रतिपादक, सकलविद्यायुक्त वेद का उपदेश कर्ता है इसलिए परमात्मा भी गुरु है.
वह गुरूओ का गुरू होने से जगत गुरू है, सतगुरू भी है.परमात्मा सर्वगुण सम्पन्न है, उनमें किसी भी तरह का दोष नही है, अत: परमात्मा को आदर्श गुरु कह सकते है.
गुरू मानना ❓
किसी के आदर्शो को शिक्षाओ को पाने के लिए भी गुरू माना जाता है,लेकिन किसी को गुरु मान लेने से ही दुःख दूर नहीं हो जाते। दुःख का निवारण तो रज और तम गुणों के अभाव या विवेकख्याति अवस्था
के पश्चात् ही होता है।
गुरू बनाना ❓
किसी भी क्षेत्र में मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु शिक्षक का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । यही सूत्र अध्यात्म के क्षेत्र में भी लागू होता है । ‘अध्यात्म' सूक्ष्म-स्तरीय विषय है, अर्थात् गूढ़ विषय है, इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत मार्गदर्शक आवश्यक है, वेदो के विद्वान को ही गुरू बनाना चाहिए, ईश्वर वेद मे कहते है
"आर्याय ददामि अहम् पृथिव्या म"
ये धरती आर्यो को देता हूँ, जो समस्त पृथिवी को आर्य बनाने मे वेद विद्या का प्रचार करे, न की वेद विरूद आचरण लोगो से करवा देवे. वह केवल प्रवचनकर्ता हो सकता है गुरू नही
गुरू किसको बनाया जाये ?
वास्तविक गुरू में निम्नलिखित लक्षण होने चाहियें :-
१.वेद और वेदानुकूल ऋषिकृत ग्रंथों के पठन-पाठन को मुक्ति का साधन मानने वाला हो|
२.सत्यमानी,सत्यवादी,सत्यकारी हो|
३.पुत्रैषणा,वित्तैषणा और लोकैषणा का त्यागी हो |
४.ईश्वर,जीव और प्रकृति को पृथक्-पृथक् मानने वाला हो |
५.स्वयं अष्टाङ्गयोग का अनुष्ठान करने वाला हो
६.सकाम कर्मों को छोड़कर निष्काम कर्म करने वाला हो |
७.अपनी उन्नति के तुल्य प्राणिमात्र की उन्नति चाहने वाला हो |
८.पक्षपातरहित न्यायकारी हो |
९.मद्य,मांस,बिड़ी,सीगरेट,भांग,गांजा आदि अभक्ष्य खान पान करने वाला ना हो |
१०.मोक्ष की प्राप्ति करने- करवाने को मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य मानने वाला हो |
११.वेद,दर्शन,उपनिषद् आदि ग्रन्थों में वर्णित योग विद्या का प्रचार प्रसार करने वाला हो|
१२.पशुबलि,पाषाण पूजा,मूर्ति पूजा,अवतार,फलित ज्योतिष आदि अन्धविश्वासों का खण्डन करने वाला हो.
वास्तविक गुरू में निम्नलिखित लक्षण होने चाहियें :-
१.वेद और वेदानुकूल ऋषिकृत ग्रंथों के पठन-पाठन को मुक्ति का साधन मानने वाला हो|
२.सत्यमानी,सत्यवादी,सत्यकारी हो|
३.पुत्रैषणा,वित्तैषणा और लोकैषणा का त्यागी हो |
४.ईश्वर,जीव और प्रकृति को पृथक्-पृथक् मानने वाला हो |
५.स्वयं अष्टाङ्गयोग का अनुष्ठान करने वाला हो
६.सकाम कर्मों को छोड़कर निष्काम कर्म करने वाला हो |
७.अपनी उन्नति के तुल्य प्राणिमात्र की उन्नति चाहने वाला हो |
८.पक्षपातरहित न्यायकारी हो |
९.मद्य,मांस,बिड़ी,सीगरेट,भांग,गांजा आदि अभक्ष्य खान पान करने वाला ना हो |
१०.मोक्ष की प्राप्ति करने- करवाने को मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य मानने वाला हो |
११.वेद,दर्शन,उपनिषद् आदि ग्रन्थों में वर्णित योग विद्या का प्रचार प्रसार करने वाला हो|
१२.पशुबलि,पाषाण पूजा,मूर्ति पूजा,अवतार,फलित ज्योतिष आदि अन्धविश्वासों का खण्डन करने वाला हो.
किसी व्यक्ति में लम्बे काल तक इन गुणों का परिक्षण करना चाहिये |
लम्बे परिक्षण के पश्चात् यदि उस व्यक्ति में उपर्युक्त गुण उपलब्ध हो्ं, तभी उसे गुरू बनाना चाहिये.
गुरू किसे बनाया जाये, क्यों बनाया जाये...अपनी आत्मिक उन्नति के लिये, शंका समाधान के लिये
लम्बे परिक्षण के पश्चात् यदि उस व्यक्ति में उपर्युक्त गुण उपलब्ध हो्ं, तभी उसे गुरू बनाना चाहिये.
गुरू किसे बनाया जाये, क्यों बनाया जाये...अपनी आत्मिक उन्नति के लिये, शंका समाधान के लिये
आदर्श गुरू?
आदर्श गुरु वही है जिसका स्वयं का अविद्या आदि अन्धकार मिट गया हो, जो स्वयं अँधेरे में रहता हो,
वह दुसरे को क्या प्रकाश दिखायेगा ?
आदर्श गुरु वही है जिसका स्वयं का अविद्या आदि अन्धकार मिट गया हो, जो स्वयं अँधेरे में रहता हो,
वह दुसरे को क्या प्रकाश दिखायेगा ?
सन्त कौन है?
सन्त वही है जो मान-अपमान, लाभ-हानि, निंदा-स्तुति, ईर्ष्या, द्वेष से रहित परोपकार करता है,
सन्त - वह होता है जो मन वचन कर्म से समान हो जो मन में वैसा बोले और तदनुसार व्यवहार करें,
तथा अपने मान अपमान का विचार किये बिना ही सत्योपदेश ,सद्व्यवहार करें वही सन्त है
सार:-जो जितेन्द्रिय, परोपकारी, वेदों का विद्वान् है, जो सत्य का ग्रहण करावे और असत्य का त्याग करावे,
वही गुरु है.
धन्यावाद जी!!!
सन्त वही है जो मान-अपमान, लाभ-हानि, निंदा-स्तुति, ईर्ष्या, द्वेष से रहित परोपकार करता है,
सन्त - वह होता है जो मन वचन कर्म से समान हो जो मन में वैसा बोले और तदनुसार व्यवहार करें,
तथा अपने मान अपमान का विचार किये बिना ही सत्योपदेश ,सद्व्यवहार करें वही सन्त है
सार:-जो जितेन्द्रिय, परोपकारी, वेदों का विद्वान् है, जो सत्य का ग्रहण करावे और असत्य का त्याग करावे,
वही गुरु है.
धन्यावाद जी!!!
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