याद रहे, 24 सितम्बर 2015 को पूना पैक्ट 1932 (चमचा युग) की होगी 83वीं वर्षगांठ,
काली पट्टी पहनकर करेंगे विरोध,
मनाएंगे काला दिवस
काली पट्टी पहनकर करेंगे विरोध,
मनाएंगे काला दिवस
प्रिय बहुजन साथियो
उस मंजर को एक बार आँख बंद कर महसूस करके देखिये तो रोना आ जाता है कि, जो आज से 83 वर्ष पूर्व इसी समय महाराष्ट्र में घट रहे थे, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर को मजबूर किया जा रहा था, उन पर दबाव बनाया जा रहा था, इधर गांधी जी का आमरण अनशन चल रहा था और उधर बाबा साहेब को मारने की धमकियों से पूर्ण पत्र भारत के चारो ओर से आ रहे थे , बाबा साहेब हमारे अधिकारों के लिए अकेले ही जूझ रहे थे। ऐसे कौन से अधिकार थे जिसके पीछे इतना हंगामा खड़ा किया जा रहा था। बाबा साहेब वह अधिकार अंग्रेजो द्वारा गोलमेज कोन्फेरेंस लंदन से पृथक निर्वाचन क्षेत्र और दो वोटो का अधिकार हमारे समाज को सशक्त बनाने के लिए लेकर आये थे, लेकिन हमसे यह अधिकार पूना पैक्ट 1932 के माध्यम से छीन लिए गए ।
अब जरूरत है इस बात को अपने बहुजन समाज में पहुँचाने की, इसलिये हमको इसका विरोध करना है, जिस तरीके से मान्यवर साहब ने इसका विरोध किया।
तो हम जहाँ है जैसे है.... घर में है, बाहर हैं, नौकरी में है, दफ्तर में है, दुकान पे है, मॉल में है, गाँव मे है, शहर मे हैं, बस मे हैँ, ट्रैन मे हैं, स्कूल में, कॉलेज में, यूनिवर्सिटी में .....न छुट्टी लेने की जरूरत है न कोई काम रोकने की, जहाँ हैं, जैसे हैं वहीं काली पट्टी सीधे हाथ में पहनकर अपने कार्य करें और विरोध दिखाएं एवं पूना पैक्ट को चर्चा का विषय बनाएं जिससे कि मनुवादियों के अंदर डर बैठ जाये।
तो बांधेंगे न काली पट्टी सीधे हाथ पर, करेंगे न उन लोगो का समर्थन जो अपना समय निकल कर जगह- जगह काला दिवस मना रहे है और 24 सितम्बर 1932 का धिक्कार रहे है।
तो हम जहाँ है जैसे है.... घर में है, बाहर हैं, नौकरी में है, दफ्तर में है, दुकान पे है, मॉल में है, गाँव मे है, शहर मे हैं, बस मे हैँ, ट्रैन मे हैं, स्कूल में, कॉलेज में, यूनिवर्सिटी में .....न छुट्टी लेने की जरूरत है न कोई काम रोकने की, जहाँ हैं, जैसे हैं वहीं काली पट्टी सीधे हाथ में पहनकर अपने कार्य करें और विरोध दिखाएं एवं पूना पैक्ट को चर्चा का विषय बनाएं जिससे कि मनुवादियों के अंदर डर बैठ जाये।
तो बांधेंगे न काली पट्टी सीधे हाथ पर, करेंगे न उन लोगो का समर्थन जो अपना समय निकल कर जगह- जगह काला दिवस मना रहे है और 24 सितम्बर 1932 का धिक्कार रहे है।
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