काहे का शिक्षक दिवस
आज हम मनाते है
गुरु शिष्य सा पावन रिश्ता
अब कहां निभाते है
लालच और स्वार्थ ने
आज हर मर्यादा तोङ दी
प्रोलुभता और निजिकरण ने
इसकी दिशा ही मोङ दी
जहां शिक्षक थे पूजनीय
वहां आज दंभ मात्र है
अपनी ही शिष्याओं को
समझते भोग पात्र है
दिखाकर कम अंको का भय
कभी बढने से रोका है
कभी किसी न किसी रुप में
इस पवित्र पद को झौंका है
मैं यह नही कहती सारे शिक्षक
लालच का भक्षण करते है
मगर विधा के मंदिर मेँ
कुछ ऐसे रक्षण करते है
रहा औपचारिक अब ये दिन
कि खानापूर्ति करनी है
शिक्षक दिवस पर अपने गुरु की
नमताऐं भरनी है
आज हम मनाते है
गुरु शिष्य सा पावन रिश्ता
अब कहां निभाते है
लालच और स्वार्थ ने
आज हर मर्यादा तोङ दी
प्रोलुभता और निजिकरण ने
इसकी दिशा ही मोङ दी
जहां शिक्षक थे पूजनीय
वहां आज दंभ मात्र है
अपनी ही शिष्याओं को
समझते भोग पात्र है
दिखाकर कम अंको का भय
कभी बढने से रोका है
कभी किसी न किसी रुप में
इस पवित्र पद को झौंका है
मैं यह नही कहती सारे शिक्षक
लालच का भक्षण करते है
मगर विधा के मंदिर मेँ
कुछ ऐसे रक्षण करते है
रहा औपचारिक अब ये दिन
कि खानापूर्ति करनी है
शिक्षक दिवस पर अपने गुरु की
नमताऐं भरनी है
एकता सारडा
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