Wednesday, October 28, 2015

TEACHER

काहे का शिक्षक दिवस
आज हम मनाते है
गुरु शिष्य सा पावन रिश्ता
अब कहां निभाते है
लालच और स्वार्थ ने
आज हर मर्यादा तोङ दी
प्रोलुभता और निजिकरण ने
इसकी दिशा ही मोङ दी
जहां शिक्षक थे पूजनीय
वहां आज दंभ मात्र है
अपनी ही शिष्याओं को
समझते भोग पात्र है
दिखाकर कम अंको का भय
कभी बढने से रोका है
कभी किसी न किसी रुप में
इस पवित्र पद को झौंका है
मैं यह नही कहती सारे शिक्षक
लालच का भक्षण करते है
मगर विधा के मंदिर मेँ
कुछ ऐसे रक्षण करते है
रहा औपचारिक अब ये दिन
कि खानापूर्ति करनी है
शिक्षक दिवस पर अपने गुरु की
नमताऐं भरनी है
एकता सारडा
कुछ गलत शिछ्कों की वजह से 
मिटेगा नहीं गुरु और शिष्य का रिश्ता

आधुनिकता की दौड़ भले चले 
पर अमिट रहेगा ये पावन रिश्ता
आज भी अच्छे शिछ्कों की भरमार है
पर करे क्या व्य्वस्था से लाचार है 
मीडिया में आता वही जो बिकता है 
अच्छा शिछक उसकी आड़ में पिसता है
कल मेने सारे टीवी चैनल छान डाले
पर थे सब पर अच्छी खबरों के लाले
एक चैनल शिछ्कों पर दिखा रहा था 
देख कर मेरा दिल भरा जा रहा था 
ऐसे शिछ्कों की कहानी देखी
शिच्छा के लिए उनकी कुर्बानी देखी
शहर छोड़ अपने गाँवों में पढ़ा रहे है
अपने गाँव के बच्चों को आगे बढ़ा रहे है
ऐसे सेंकडो लोगो का संसार है
शिच्छा ही जीवन में उनका सार है
पर वेसे लोगो की कौन सुनता है
यहाँ तो जो दीखता है वही बिकता है

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