एक सेब मेरे हाथ मैं देकर गुरूजी ने मुझसे पूछा इसमें कितने बीज हें बता सकते हो ?
सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं गुरूजी ।
गुरूजी ने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा
इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ ?
मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़ , एक पेड़ से अनेक सेव अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम!
गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले : बस इसी तरह परमात्मा की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है , बस उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।
सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं गुरूजी ।
गुरूजी ने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा
इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ ?
मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़ , एक पेड़ से अनेक सेव अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम!
गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले : बस इसी तरह परमात्मा की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है , बस उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।
🔹गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हे।
🔹गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे
🔹गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।
🔹गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हे।
🔹गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।
🔹गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे।
🔹गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे।
🔹गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही।
🔹गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।
🔹गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समझ नही पाते।
🔹गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
🔹गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।
🔹गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही।
🔹गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे
🔹गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।
🔹गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हे।
🔹गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।
🔹गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे।
🔹गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे।
🔹गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही।
🔹गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।
🔹गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समझ नही पाते।
🔹गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
🔹गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।
🔹गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही।
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