मानव जीवन और इतिहास के गर्भ से निकले कुछ सार ........................?
१}इतिहास और अर्थशास्त्र दोनों अपने आप को एक सर्पिल में दोहराते हैं.इस समय वही हो रहा है,जो सन १९३० -१९४६ के बीच मंदी का दौर जिसके कारण जनसंघर्ष और एक महा युद्ध हुआ था,और उसके बाद आया था एक नया दौर शांति और विकास का फिर वही होगा ,ना ना करते .
२}विकास और विनाश दोनों समान ही रूप से प्रकृति के नियम हैं,विकास के गर्भ में विनाश के कारण छुपे होते हैं,तो विनाश की छाती पर फिर विकास होता है.
३}अशांति व् आतंक के दौर में ही समाज व् मानव को शांति की जरूरत होती है,जो कुछ लोग पूजा पाठों से हासिल कर लेना चाहते हैं,लेकिन ये सम्भव नही होता .एक बार अशांति पैदा होने के बाद भयंकर युद्धों और जनसंघर्ष के बाद ही शांति सम्भव हैं.क्यों ?
४}क्योंकि असमान विकास परिवारों और राष्टों के बीच संघर्षों और युद्धों को जन्म देता है.प्रगति वह लुभावनी और सुनहरी देव मूर्ति है,जो अन्याय अत्याचार ,शोषण और आतंक बेरोजगारी व शोषकों के लिए शोषितों पर दमन को अपरिहार्य बना देती है
५ }जो समस्याएं पैदा होती हैं,वो इतनी कठोर होती हैं,की उनका समाधान कानून बनाकर सरकारें लाख चाहकर भी नही कर सकती फौजों के बल पर भी आखिर में इनका समाधान जब जनता खुद मैदान में उतरती है,तब जाकर होता है,इतिहास इसका गवाह है.
६ }अबकी बार तो खुद प्रकृति एक विराट परिवर्तन के लिए छटपटा रही है,जिसका एक कारण मानव द्वारा किया गया विकास भी है.
७ }अब समस्या चाहे छोटी हो या मोटी,उसका समाधान ही एक नयी व मोटी समस्या बनकर सामने आने लगी है,इसलिय शांति वार्ताये तो सिर्फ युद्धों के लिए रणनीति बनाने और मोर्चा बंदी करने के लिए समय लेने के लिए हो रही हैं,बाकि आखिरी फैसला तो ताकत के बल पर ही होगा ,क्यों?
८}क्योंकि हालत के तकाजे ये हैं-जो जहां खड़ा है,उससे पीछे नही हट सकता ,पीछे हटने का मतलब अब आत्महत्या है,चाहे वो अमेरिका हो या चीन,या फिर कांग्रेस ,वामपंथी और r.s.s hi क्यों न हो सब व सारी दुनिया एक ही भावना से ग्रस्त है,"अभी नही तो कभी नही "
९}ये संक्रमण काल है,देव और दानवों के बीच समुद्र मंथन जारी है.मथते मथते ही घी और छाछ अलग अलग होंगे -इसलिए अपना अपना पक्ष तय करलो -शांति वार्ताओं के भ्रम में मत रह जाना =रामेश्वर
१}इतिहास और अर्थशास्त्र दोनों अपने आप को एक सर्पिल में दोहराते हैं.इस समय वही हो रहा है,जो सन १९३० -१९४६ के बीच मंदी का दौर जिसके कारण जनसंघर्ष और एक महा युद्ध हुआ था,और उसके बाद आया था एक नया दौर शांति और विकास का फिर वही होगा ,ना ना करते .
२}विकास और विनाश दोनों समान ही रूप से प्रकृति के नियम हैं,विकास के गर्भ में विनाश के कारण छुपे होते हैं,तो विनाश की छाती पर फिर विकास होता है.
३}अशांति व् आतंक के दौर में ही समाज व् मानव को शांति की जरूरत होती है,जो कुछ लोग पूजा पाठों से हासिल कर लेना चाहते हैं,लेकिन ये सम्भव नही होता .एक बार अशांति पैदा होने के बाद भयंकर युद्धों और जनसंघर्ष के बाद ही शांति सम्भव हैं.क्यों ?
४}क्योंकि असमान विकास परिवारों और राष्टों के बीच संघर्षों और युद्धों को जन्म देता है.प्रगति वह लुभावनी और सुनहरी देव मूर्ति है,जो अन्याय अत्याचार ,शोषण और आतंक बेरोजगारी व शोषकों के लिए शोषितों पर दमन को अपरिहार्य बना देती है
५ }जो समस्याएं पैदा होती हैं,वो इतनी कठोर होती हैं,की उनका समाधान कानून बनाकर सरकारें लाख चाहकर भी नही कर सकती फौजों के बल पर भी आखिर में इनका समाधान जब जनता खुद मैदान में उतरती है,तब जाकर होता है,इतिहास इसका गवाह है.
६ }अबकी बार तो खुद प्रकृति एक विराट परिवर्तन के लिए छटपटा रही है,जिसका एक कारण मानव द्वारा किया गया विकास भी है.
७ }अब समस्या चाहे छोटी हो या मोटी,उसका समाधान ही एक नयी व मोटी समस्या बनकर सामने आने लगी है,इसलिय शांति वार्ताये तो सिर्फ युद्धों के लिए रणनीति बनाने और मोर्चा बंदी करने के लिए समय लेने के लिए हो रही हैं,बाकि आखिरी फैसला तो ताकत के बल पर ही होगा ,क्यों?
८}क्योंकि हालत के तकाजे ये हैं-जो जहां खड़ा है,उससे पीछे नही हट सकता ,पीछे हटने का मतलब अब आत्महत्या है,चाहे वो अमेरिका हो या चीन,या फिर कांग्रेस ,वामपंथी और r.s.s hi क्यों न हो सब व सारी दुनिया एक ही भावना से ग्रस्त है,"अभी नही तो कभी नही "
९}ये संक्रमण काल है,देव और दानवों के बीच समुद्र मंथन जारी है.मथते मथते ही घी और छाछ अलग अलग होंगे -इसलिए अपना अपना पक्ष तय करलो -शांति वार्ताओं के भ्रम में मत रह जाना =रामेश्वर
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