Friday, November 6, 2015

अगर आप उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं तो …?

“अगर उच्च नैतिकता के द्योतक राम सर्वमान्य प्रतीक थे और हैं तो निश्चय ही नैतिकता के मानक सर्वमान्य, निर्विवाद और सार्वभौमिक होना चाहिए, अतः मुझे कुछ भी नहीं कहना. पर अगर आप उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं तो पुरुष होने के नाते मैं इस “मर्यादा पुरुषोत्तम प्रतियोगिता” के बिना उन्हें यह मानद उपाधि तो नहीं दे सकता. वह कौन सी मर्यादाएं थीं वह कौन से मानक थे जिस की कसौटी पर राम “मर्यादा पुरुषोत्तम” थे ? क्या राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” की मानद उपाधि देने वाले विवाहोपरांत बिदा होती अपनी बेटी को आशीर्वाद दे सकेंगे कि –“जाओ बेटी तुम्हारा दाम्पत्य जीवन सीता जैसा हो” ? राम कैसे पिता थे यह लव -कुश के आईने में देखिये. लव -कुश की वेदना की व्याख्या किये बिना आप कौन होते हैं यह बताने बाले ? अपने आधीन महिला के के प्रति राम बनाम रावण आचरण का तुलनात्मक अध्ययन तो कीजिये. राम जी की पत्नी सीता लंका में रावण की बंधक थीं पर पूरी गरिमा के साथ किन्तु सूर्पनखा दंडकारण्य में कि जहां उसके भाईयों का राज्य था घूमती हुयी राम -लक्ष्मण को मिल जाती है तो दोनों भाई उस पर पिल पड़ते हैं और मिल कर उसका नाक कान काट डालते हैं. एक अकेली निहत्थी महिला पर हथियार उठाना …उस पर अंग भंग करने की हिंसा करना वैसे ही है जैसे अक्सर पता चलता है कि किसी लडकी पर किसी ने तेज़ाब फैंक दिया. —यह किस समाज की कौन सी नैतिकता थी ?…कैसे मर्दों की कौन सी मर्यादा थी ? अपनी बहन के प्रति इस घटना से भी उत्तेजित हो कर रावण ने सीता जी के प्रति कोई हिंसा नहीं की— इस कसौटी पर भी महानता का मूल्यांकन करते चलिए. चौदह साल के बनवास के बाद भी और भाई भारत द्वारा चौदह साल सही ढंग से शासन चलाने के बाद भी राम ने भरत को सिंघासन से उतार दिया और खुद उस पर बैठे फिर भी असीम महत्वाकांक्षा ने हिलोरें लीं और राजसूय यज्ञ कर विश्व विजय अभियान चलाया . राजसूय यज्ञ के लिए पत्नी की अनिवार्यता थी और सीता परित्यक्ता थीं तो सोने की सीता बना कर बैठा ली गयीं जैसे सीता उनकी पत्नी नहीं युद्ध की चल वैजन्ती हो. और उदध के मानक क्या गढ़े उस पर भी गौर करें — विभीषण जिसे आज भी राजनीतिक शब्दावली में गाली ही माना जाता है. छिप कर बाली को मारा और पूजा करते में मेघनाद को मारा –यह कौनसी यौद्धिक नैतिकताएं थी ? याद रहे जब कुतुबनुमा गलत होगा तो समाज दिशाहीन होगा और इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब समाज दिशाहीन होता है तो निश्चय ही उसका कुतुबनुमा गलत होता है. चूंकि राम हमारी आस्था के केंद्र हैं उनकी भाग्वाद्ता पर बहस नहीं करना चाहिए किन्तु मैं पुरुष भी हूँ अतः यह सवाल तो मेरे मन में है ही कि राम कैसे पति थे यह सीता से पूछो ? राम कैसे पिता थे –यह लव-कुश से पूछो ? राम कैसे जेठ थे यह उर्मिला (लक्ष्मण की पत्नी ) से पूछो जिसने वियोग झेला ? और प्राकृतिक जीवन का प्रणेता अप्राकृतिक मौत से क्यों मरा ? अपने चारो भाईयों के साथ उन्होंने क्यों जल समाधि ली ? —क्या है कोई उत्तर ? —याद रहे जब कुतुबनुमा गलत होगा तो समाज दिशाहीन होगा.” —— राजीव चतुर्वेदी
http://www.pnews.in/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%86%E0%A4%AA-%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B7/

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