शिक्षा मनुष्य जीवन का एक अनिवार्य अंग है । इसके बिना हमारा जीवन अधुरा है । शिक्षा हमें गुरू द्वारा प्राप्त एक अमृत रूपी फल है। जिससे व्यक्ति का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक विकास होता है ।
शिक्षा का एक प्रमुख उद्देष्य बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा करना भी हैं । यह भाव हम बच्चों के जीवन में शुरूआत में ही पैदा कर सकते हैें । इसके बिना षिक्षा का महत्व ही शून्य हो जायेगा । शिक्षा सामाजिक बुराईयों को मिटाने का एक मात्र रास्ता हैं ।
स्कूली ज्ञान ही षिक्षा नहीं हैं । शिक्षा व ज्ञान को सीमित शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता हैं । शिक्षा का मूल उद्देष्य ज्ञान प्राप्ति के लिये समर्पण भाव व निरंतर सीखने की प्रवृत्ति पैदा करना है । जो बच्चों के जीवन में अनुषासन, पारिवारिक सुख-समृद्धि, आर्थिक परिपक्वता, सामाजिकता एवं राष्ट्रीयता की भावना लाती हैं ।
शिक्षा द्वारा प्राप्त ज्ञान से हम जीवन में परिस्थितियों का सामना करने के लायक बनते हैं । हमारे दृष्टिकोण में परिपक्वता आती हैं ।शिक्षित होने से हमारा सामाजिक स्तर ऊॅंचा उठता हैं । हमें व्यवहारिकता, आत्मविष्वास, सकारात्मकता, परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य, मानव धर्म के कत्र्तव्य और उद्देष्यों को समझना व निभाना, आदि का ज्ञान शिक्षा द्वारा ही प्राप्त होता हैं ।
शिक्षा की कमी के कारण व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर, अपने प्रति अविष्वास, समाज, देष व विष्व को समझने में कमजोरी महसुस करता हैं। हम निरक्षता की स्थिति में आत्मविष्वास की कमी के कारण परिस्थिति या समाज में परिवर्तन की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं ।
शिक्षा से हमें हमारे जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता मिलती हैं । लक्ष्य निर्धारण पश्चात् हमारे कर्म, व्यवहार, दृष्टिकोण व आचार-विचार में स्थायी सकारात्मकता प्रदर्षित होने लगती हैं । इसके बिना हमारा जीवन सकारात्मक व स्थिर नहीं रह पाता हैं । ऐसा प्रतीत होता हैं जैसे:- भक्त बिना भगवान, ड्रायवर बिना गाडी, मांझी बिना नाव । क्योंकि लक्ष्य बिना हमारा जीवन अधुरा हैं । अतः शिक्षा हमारे जीवन का अति महत्वपूर्ण अंग हैं । यहीं हमें लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होती हैं ।
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