* मैड नगर मथुरापुरी, डण्डोतां का ढेर।
कथा बांच पूरी करी , आटो आयो न सेर ।।
* बेटा हुया स्याणा अर दाळद हुया पुराणा
कथा बांच पूरी करी , आटो आयो न सेर ।।
* बेटा हुया स्याणा अर दाळद हुया पुराणा
(सन्तान के योग्य हो जाने पर घर का दारिद्र्य स्वत: ही समाप्त हो जाया करता है)।
* बीघै भूत अर बिस्वै साँप
* खैडे मैड़ कांकै भरोसै राण्ड मत व्है जाजे ए
(मैड़ के निवासियों के चक्कर में आकर कहीं विधवा मत हो जाना)।
अन्तर्कथा
किसी समय की बात है। मैड़ गाँव का एक व्यक्ति पास ही के एक अन्य गाँव की एक सुन्दर महिला पर आसक्त था……….. (पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
* तेरी नानी का नानेरा मैं ढूंढ घालूं
(किसी का कहना न मानने वाले लड़के या जुताई कर रहे बैलों के अनुशासन में न रहने पर उसके वाहक द्वारा खीझ के साथ उन्हें दी जाने वाली एक प्रकार की गाली)।
* खेती धण्यां सेती
* कर ये माली मालपुआ अर बोरो लेगो हुया हुया
(कजऱ् करके गुलछर्रे उडाना)।
* हाथ कमाया कामड़ा अर दई नै दीजे दोष
(मनुष्य स्वयं $गलती करे और उसका दोष भगवान को देना चाहे)।
* गोडा टूट्या कड़ नई अर सिर पर पान चर्या
(बलशाली व्यक्ति की दीन अवस्था में निर्बलों द्वारा उसे प्रताडित करना)।
अन्तर्कथा
जंगल के सभी जानवर अपने राजा शेर से इतने डरते थे कि उसके पास तक आने की उनकी हिम्मत न होती थी ……..(पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
* शिंवाळा मैं सुस्यो द्यूं फेरां मैं द्यूं बूच
कन्यादान मैं लोमड़ी द्यूं जींको लम्बो पूँछ
* मर्यां धणी अर बिक्यां गायक
* तोतूकां की छतरी अर धोधूकां की धूळ
* मारवाड मंसूबो डूब्यो दक्खिण डूब्यो गाबा मैं
* लेट निठारो लाखणी अर लोचू को बास
अमरसर का मसखरा थांको जाओ सत्यानाश
* बळद सींगलो अर मरद मूंछलो
* कसकर बाँधै पागड़ी गरड़ कटावै नख,
ओछी पैरै मोचड़ी यै बिनां लिख्यां का दु:ख
(यदि कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता या क्षमतानुरूप आचरण नहीं करता तो वह सदा दुखी रहेगा)।
* एक पत्नी अपने पति को तम्बाकू पीने से रोकते हुए उससे कहती है-
होठ जळैं छाती जळै जळैं बत्तीसों दँत
हाथ जोड कामण कहै छोड तम्बाकू कंत
उसका पति उसे तम्बाकू के गुण बताते हुए कहता है-
बाय हडै बादी हडै कफ खाँसी ले जाय
इतना गुण हुक्को करै छोड्यो कैसे जाय
* विवाह के अवसर पर वधू पक्ष की औरतों एवं वर द्वारा बोले जाने वाले श्लोक
* छाबडी मैं छाबडी छाबडी मैं जीरो
जान आई चानणी जवाँई म्हारो हीरो
* साळा साळाहेली को राम-सीता सो जोडो
आगै श्लोक जद बोलां जद एक द्यो घोड़ो
हरबोलों की वाणी
हर बोल, बस्ती माता की जय,
पंच पटैलां की जय, जती सती की जय
दान दाता की जय, सेठ साहूकार की जय
हरबोल हरबोल…….
* डाकोतों की फेरी
मकर संक्रान्ति के लगभग पन्द्रह-बीस दिन पूर्व से ही ज्योतिषी लोग प्रात:काल चार-पाँच बजे उठकर गाँव में फेरी लगाया करते जिसमें सामान्यत: दो व्यक्ति धर्म एवं नीति की बातें, कहावतें या उक्तियां पद्य रूप में गाते चलते……
1 हरे कृष्ण जी हरे मुरार हर सुमरे उतरेंगे पार हरे हरे
4 सियावर हडमान जी कष्ट हरीं सबका छीं जी हरे हरे
13 भरी चालणी देवो ल्याय चल पीड़ा पापी कै जाय हरे हरे
17 रूल्या की माँ राँधी दाळ रूल्यो कूदै नौ-नौ ताळ हरे हरे
20 डाकोतां की फेरी या पूरी व्हैगी म्हे चाल्या हरे हरे हरे हरे…….
(पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
* जागा-पोथी
‘जागाÓ एक जाति विशेष का नाम है जिसका मुख्य कार्य सामाजिकों के जन्म-मृत्यु आदि धार्मिक अवसरों पर किये जाने वाले धार्मिक कार्यों का लेखा-जोखा रखना होता है ……….
जागाओं की इस पोथी को ‘जागा पोथीÓ के नाम से जाना जाता है जिसका एक नमूना प्रस्तुत है –
राम प्रताप जी कै दो बेटा हूं…….
दसवीं पीढ़ी पैली दो बेटा
खीर-पूड़ी सूं जिमाया मैड़ कै खेड़ै मैड़ कै खेड़ै
एक मोहर एक घोड़ी दक्षिणा मैं दीनी हूं…….
रामकिशन जी कै तीन बेटा
हरनारायण, दीनदयाल अर रामनारायण हुया हूं…….
चूरमा दाळ बाटी सूं जिमाया बैराठ कै खेड़ै बैराठ कै खेड़ै
एक मोहर एक ऊंट दक्षिणा मैं दीन्यो हूं…….
………………….. और इस प्रकार जागा अपने यजमानों की वंशावली लिखता जाता था।
(पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
मौसमी की कहावतें
* आसोजां का तावडा अर जोगी बण गया जाट
(आसोज मास में जब तेज धूप पड़े तो जाट जैसी परिश्रमी जाति तक के लोग खेतों में डटे रहने का साहस नहीं कर पाते जिसके परिणामस्वरूप उनकी आर्थिक स्थिति बिगडने के कारण उन्हें भी किसी से गुजारे के लिये धन मांगना पड सकता है)।
* बास्योडा की राबडी अर गणगोर्यां का गुणा
सदा मीठी लापसी अर सावण मीठा चणा
फाळियां (पहेलियां)
* अजा सहेली तासु रिपु सा जननी भरतार
ता के सुत के मित्र को भजिये बारम्बार
(विस्तृत विवरण पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
* एक औरत मटका लेकर नदी में से पानी भरने के लिये जा रही थी। उसे रास्ते में एक पण्डित रोटी सेंकता हुआ मिला। औरत ने पण्डित की परीक्षा लेने के उद्येश्य से कहा-
लाम्बी लाम्बी छतरी बणी छोटा छोटा अण्डा
ईं को अर्थ बतार ही रोटी करजे पण्डा
पण्डित भी कम न था अत: पलटवार करते हुए औरत से कहा-
लाम्बी लाम्बी छतरी बणी छोटी छोटी मोरी
ईं को अर्थ बतार ही पाणी भरजे गौरी
उनके इस सवाल-जवाब की प्रक्रिया में औरत और पण्डित दोनों ठगे से खडे थे। न पण्डित रोटी सेंक रहा था और न ही वह औरत पानी भरने के लिये जा रही थी। उन्हें इस अवस्था में देखकर उधर से गुजरते हुए एक राहगीर ने उनसे कहा- वांकै खायां हाथी घूमै वांकी चालै घाणी
तू तो पण्डा रोटी कर लै तू भर ल्यारी पाणी
राहगीर की बात से पण्डित एवं पनिहारिन दोनों सन्तुष्ट होकर अपने-अपने काम में लग गये।
(विस्तृत विवरण पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
* एक स्त्री और एक पुरुष ऊंट पर बैठकर जा रहे थे। पुरुष बूढा था और स्त्री जवान। राहगीर औरतों ने ऊंट पर बैठी स्त्री से पूछा-
ऊंट चढी लजवंती जोय आगडलो थारो कांईं होय?
उस स्त्री ने तो कोई जवाब नहीं दिया परन्तु ऊंट पर बैठे वृद्ध ने उसे ऐसा कहा-
ईंकी सासू मेरी सासू आपस मैं माँ-बेटी
(विस्तृत विवरण पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
मैड़ गाँव के बालकों की दुनिया : खेल, कहावतें एवं उक्तियां
* मदन मदारी, तेल की तगारी
तगारी मैं तोतो मदन मेरो पोतो
बच्चों के खेल
चोर ढूंढना
* चोर चोरी तो करी, जूती जरी की रह्ई
साफा अड्डेदार है, पजामा पट्टेदार है
पकडल्यो ये बादश्याह का वजीर चोर है
बन्द मुट्ठी में क्या
* अक्कड बक्कड लोखी टक्कड ठां ठूं
अतूल बतूल गौरीशंकर पान फूल
* सबसे छोटी कहानी
एक लड़का- एक बकरी छी
सुनने वाला लड़का- हां
कहने वाला लड़का- बात अतरी छी
* मछली का खेल
* राजा राड
* नौकांट्यो
* मियां जी की घोड़ी
* भूत्या की चाँदणी
* मुकड़ी चढाना
* हूस फूस का खेल
* तोते का खेल
* कडकडबेल
यह खेल होली के दिनों में खेला जाता था। इसमें एक बच्चा माली बनता और बाकी सभी बच्चे एक गोला बनाकर ज़मीन पर बैठ जाया करते। माली बना हुआ बच्चा उन बैठे हुए बच्चों के चारों ओर चक्कर लगाते हुए कहता- ……..
ज़बान साफ करने की युक्ति
बच्चे बोली की तुतलाहट या ज़बान की अटक निकालने हेतु निम्न पंक्तियों को धीमे से तीव्र क्रम में अबाध गति से बोलने का अभ्यास किया करते-
धीमी गति टाटी मैं सूं ताकू काढूं तांक ताकू टाटी मैं (3-4 बार)……..
* मैड़ गाँव की प्रसिद्ध चार चीज़ें
मैड़ गाँव में बच्चों द्वारा गाया जाने वाला चतड़ाचोथ का गीत
‘गणेश चतुर्थी’ को ढूंढाड़ में एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मैड़ गाँव के बच्चों की टोली समूहबद्ध होकर हाथों में लकड़ी के डण्डे लिये एवं उन्हें बजाते हुए घर-घर जाकर यह गीत गाया करती है:-
गुरु की चोट विद्या की पोट
(गृहस्वामी का नाम) रामलाल जी थारी पोळ
लाख टका सोना को मोल
चतड़ाचोथ बड़भादवो
लड्डू धर दै मेरी माँ ………..
मैड़ गाँव के प्रसिद्ध मेले
मैड़ गाँव में प्राचीन काल से ही अनेक मेले लगते रहे हैं जिनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
बाणगंगा का मेला
मैड़ गाँव से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर बाणगंगा नदी के तट पर पाण्डवों का एक सरकारी मन्दिर (राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग द्वारा संचालित) है जिसे राधाकान्जी या बड़े मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मन्दिर के पाश्र्व में ही एक छतरी है। ऐसा माना जाता है कि इस छतरी के पास ही शमी नाम का वह वृक्ष था जिस पर पाण्डवों ने अज्ञातवाश में जाने से पूर्व अपने हथियार टांगे थे।……… इस मेले में तरह-तरह की दुकानें लगा करती, सर्कस, गीत-भजन आदि के आयोजन होते तथा बच्चे, नौजवान एवं औरतें डोलर हींदे (आकाशीय झूले) में बैठकर आनन्द लिया करते। कोई कोई मनचला शरबत बेचने वाला जवान औरतों को देखकर लकड़ी के हत्थे पर बँधे घँुघरुओं को बजाते हुए जोर-जोर से गाने लगता-
भाया की भाभू ले लै, या तरी करैगो ले लै
या ठण्डो-मीठो ले लै, तू आ जा भाभी ले लै
देखते ही देखते उसकी दुकान पर औरतों का जमघट लग जाया करता जिसे देखकर एक बारगी तो आने जाने वालों का मन भी ठिठक ही जाया करता।
इस मेले में कोई कोई नवयुवकों का झुण्ड औरतों को देखकर अलीश्ल गीत भी गाने लगता। परन्तु ये गीत भाषा की गूढता, संगीत, लय, आलाप एवं तानों में इस प्रकार निबद्ध होते थे कि सामान्य व्यक्ति को सहज भाव से आनन्दित किया करते परन्तु इनके मर्म को औरतें आसानी से पहचान लिया करतीं और वे तिरछी निगाहों से उन युवकों को देखते हुए विशेष हंसी के साथ बोल पड़ती-
अरै मरो बापकणाओ।
* गूदडी
बाणगंगा के इस मेले के दूसरे दिन से ही यहां के सभी दुकानदार ग्राम मैड़ के छतरी के बाजार में जाकर अपनी दुकानें लगाया करते………
* गणगोर्यों का मेला
* दशहरे का मेला
(उपरोक्त सभी का विस्तृत विवरण पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
सियावर हनुमान जी का मेला
श्री सियावरजी के मन्दिर के महन्त श्री गणेशदास महाराज ने इस मन्दिर के प्रांगण में हनुमान जी महाराज की मूर्ति की स्थापना की एवं अपने आराध्य देव की श्रद्धा में एक मेले का आयोजन कराना प्रारम्भ किया जिसे ‘हनुमान जी का मेलाÓ कहा जाता था। यह मेला बाणगंगा के मेले से छोटा होता जिसमें अन्य कई बातें तो वैसी ही होती परन्तु एक बात नई होती और वह यह कि इस मेले में महन्त महाराज लोक कलाकारों को भी अपनी-अपनी कलाओं के प्रदर्शन का अवसर दिया करते। इन कलाओं में स्वांग, ख्याल, संगीत के दंगल आदि प्रमुख होते। कीरों की ढाणी का कोई कलाकार जब रूपविन्यास कर शीशे में मुँह देख-देखकर बन्दर की नकल करता तो देखने वालों के पेट में हँसते-हँसते बल पड जाया करते और महन्त महाराज हर ऐसे कलाकार को रूपये ईनाम में दिया करते।
इस मेले में कुश्ती का दंगल हर साल हुआ करता जिसमें दूर-दूर के पहलवान आकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया करते। जो पहलवान कुश्ती में जीतता वह रूपये बँधी बैरंग ले जाया करता और उसके नाम की जय जयकार से आकाश गुंजायमान हो जाया करता। आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व के मेलों में इस कुश्ती का विजेता प्राय: पीपळोद गाँव का गूजरों के सुरज्या पहलवान हुआ करता।
महन्त श्री गणेश दास महाराज के सभी शिष्यगण इस मेले में अवश्य आया करते तथा इस अवसर पर वे अपने बच्चों का जडूला भी उतरवाया करते। महाराज श्री के लिये यह दिन विशेष होता और इसी दिन वे ऊपरी बीमारियों से ग्रस्त रोगियों का इलाज़ भी किया करते। इस मेले का आनन्द डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा के निर्देशन में जारी त्रिवेणी कैसेट-सी.डी. के गीत जडूला में लिया जा सकता है जिसका प्रयोग उनके द्वारा लिखित एवं 5 फरवरी 2011 को प्रसारित नाटक मेरी लाडो पढ़ेगी में पाश्र्व से किया गया है।
29 मार्च 1980 को महन्त महाराज स्वर्ग सिधारे जिसके कुछ वर्षो पश्चात् तक यह मेला लगता रहा परन्तु महाराजश्री के उत्तराधिकारियों की अनदेखी से लगभग नब्बे के दशक से यह मेला लगना बन्द हो गया।
* भजन
महन्त श्री गणेश दास महाराज की दिनचर्या, सेवा-पूजा एवं उनके द्वारा असाध्य रोग से पीडि़त रोगियों के रोग का निदान करने सम्बन्धी क्रिया कलापों का वर्णन ग्राम मैड़ के विद्वान श्री विश्वनाथ शर्मा उर्फ श्री सुवा लाल महन्त ने एक भजन के रूप में लिपिबद्घ किया है। यह भजन ग्राम मैड़ के आस पास के गाँवों में आयोजित सत्संग एवं जागरणों में आज से लगभग पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व तक बड़ी श्रद्घापूर्वक गाया जाता था।
इस पुस्तक के लेखक को बाल्यकाल से ही जागरणों एवं सत्संगों में इस भजन को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । वर्ष 2000 में इस भजन के रचयिता श्री विश्वनाथ शर्मा ने इसके मंचीय प्रस्तुतीकरण एवं प्रकाशन हेतु इस लेखक को अपनी हस्तलिपि में लिखकर भेंट किया था। लेखक ने उनकी इस अमर कृति को जन-जन तक पहुंचाने के उद्येश्य से उसे इस पुस्तक में सम्मिलित किया है।
भजन
कहो धन्य गणपति दास नै.. हनुमत नै.. ध्यावै.. छै.. ,
हनुमत नै.. ध्याव.. छै.. वो बजरंग नै ध्यावै.. छै.. ॥ टेर॥
ध्यान देके सुनो जरा, दास का सुनाऊं हाल,
भक्ति में भरपूर कहिए , धर्म को सके ना टाल,
कहां कैसा काम किया, सबको बताऊं हाल।
जयपुर जिला बीच एक, मैड़ नामक ग्राम कहिए ,
मैड़ से पश्चिम की ओर, बाणगंगा धाम कहिए ,
बाणगंगा ऊपर वन में, सियावर स्थान कहिए ,
सियावर के पास मित्रों, हनुमत का दरबार कहिए।
हो गये प्रेम में लीन, बन गये भक्ति के शौकीन,
करी जब उन्नत की तरकीब,
प्रेम से हनुमत ल्यावै छै….।
कहो धन्य गणपति दास नै.. हनुमत नै.. ध्यावै.. छै.. ,
हनुमत नै.. ध्याव.. छै.. वो बजरंग नै ध्यावै.. छै.. ॥ टेर॥
वर्तमान बड़ के नीचे, पहले भी स्थान था,
सादा से पत्थर के रूप, छोटा सा हनुमान था,
छोटी सी गुमटी थी यहां, और ना मकान था,
जा के देखी मूरती, फिट पाँच का अंदाज था,
कीमत पूरी पाँच सौ, और पाँच का विकास था,
इससे ज्यादा गाड़ी भाड़ा, बैल खर्चा और था,
किवाड़ों की जोड़ी, चूना, पट्टïी- भाटा और था।
कर दिया खर्च कुछ और,
जिमाकर विप्रों को उस ठौर,
हो गये राजी नन्द किशोर,
हो गये राजी नन्द किशोर,
रकम शुभ काम लगावै छै..।
कहो धन्य गणपति दास नै.. हनुमत नै.. ध्यावै.. छै.. ,
हनुमत नै.. ध्याव.. छै.. वो बजरंग नै ध्यावै.. छै.. ॥ टेर॥
ध्यान देके सुनो जरा, पूजा का बताऊं नेम,
जायफल का भोग लागे, पूजा होवे तीनूं टेम,
बिना तोल घी का देख्या, करता देख्या हमने होम,
धूप की महकार देखी, और देख्या भारी प्रेम,
छोटे-छोटे बाल बच्चे, रोग में हुए थे जाम,
उनके खाली झाड़ा देवें, औषधि का ले ना नाम,
झाड़ा से ही ब्हाल होवे, ऐसा देख्या हनुमान।
सुनो तुम, नाम गणेश ही दास,
करत है हनुमत की अरदास,
करेंगे हनुमत बेड़ा पार,
करेंगे हनुमत बेड़ा पार,
भजन विश्वनाथ बणावै छै..।
कहो धन्य गणपति दास नै.. हनुमत नै.. ध्यावै.. छै.. ,
हनुमत नै.. ध्याव.. छै.. वो बजरंग नै ध्यावै.. छै.. ॥ टेर॥
इस भजन के रचयिता श्री विश्वनाथ शर्मा दीर्घावधि तक महन्त श्री गणेश दास महाराज के निकट सम्पर्क में रहे थे।
इस पुस्तक के लेखक की नाट्यकृति च् तुक्के का बादशाह ज् के नाटक छोटा बेगारी का उन्हीं के निर्देशन में रवीन्द्र मंच, जयपुर पर अनेक बार मंचन किया गया और इसके एक दृश्य में डॉ. कैलाश चन्द्र शर्मा एवं डॉ. योजना शर्मा के निर्देशन में इस भजन को नाटक के पात्रों द्वारा गाया गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस नाटक के पात्र च् पुजारी जी ज् और कोई नहीं अपितु कमोबेश रूप में महन्त श्री गणेश दास जी महाराज ही हैं।
मैड़ गाँव का पौराणिक, राजनैतिक एवं धार्मिक महत्व अपने आप में अद्वितीय है। यहां की पवित्र बाणगंगा नदी में तो श्रद्धापूर्वक अस्थियां विसर्जित कर मृतात्माओं के मोक्ष की कामना की जाती है।
पढाई जोशी की जाणो मैड़ की
क कक्को केवळियो
च चडा चडा की चंच्या
ट टीटा टिपोळी
त तत्तो तमोळी ताँबो
प पा पा पाटकड़ी
य यायो सायो पेटळो
श शस्सो सोळंकी
ह: हा हा हिंदोली खिलै फिरावै दो बिंदोली
जोशी की वर्णमाला की नैतिक शिक्षा
वर्णमालाक्षर बोल सीख
क कक्को केवळियो पहले कमाना सीखो
…………………………………………………………………………
ह: हा हा हिंदोली अन्त में जब मरोगे तो हा हा होगी परन्तु पीछे आपके खिलै फिरावै दो बिंदोली नाम के साथ यश की दो बिंदोली रहेंगी।
जोशी की बारहखड़ी
क बड कै नांव ‘कÓ
का कन्ने ‘काÓ
कि पिच्छ्यूं ‘किÓ
बारहखडी सीखने का गीत
जोशी की पढाई में छोटे-छोटे बच्चों को बारहखड़ी याद करना सिखाने के लिये इस प्रकार से संगीतमय गान कराया जाता था:- क का कि की कु कू बढाम …………….
मैड़-विराट नगर अँचल की रोचक प्रथाएं आदि
* दोगला मेळा
बामणां कै माथै बीजळो पड़ो म्हारा बाबाजी को मेळो दोगलो कर्यो……………..
* वर-वधू का तोरण की रस्म से पूर्व मिलन वर्जित
* चूड़ा एवं नाता प्रथा
पूवा कर्या नै पापड़ी छान कूद बहू आ पड़ी
नुक्ता प्रथा
झाँकड़ी मैं झगड़ो मांच्यो मालपुवां माळै
मरगो मरगो रै पटवारी सौ का लोट कै माळै
पत्तल देना
किसी भी भोज के अवसर पर पत्तल देने की प्रथा प्रचलित है जिसके अन्तर्गत भोज में आये हुए व्यक्तियों को इस भोज के आयोजनकर्ता से उसके सम्बन्ध एवं प्रचलित प्रथा के अनुसार उस भोज विशेष में बने व्यंजनों युक्त एक पत्तों से बनी पत्तल भरकर या एक निर्धारित माप में व्यंजन, घर ले जाने के लिये दिये जाते हैं………इसी के प्रतीकस्वरूप नाई को ‘सोमांसांतÓ की पत्तल दी जाती है।
सामाजिक अवसरों की कुछ रोचक बातेंं
* झाड़-बोजा उढ़ाबो
* घाटा डाट नुक्ता
मैड़-विराट अंचल में सिंचाई के परम्परागत साधन
लाव-चड़स से सिंचाई
कुआँ जोतने पर
जाग खड़ी व्है खुवाण
पाताळ की राणी सेजा की धराणी………….
बाहर आने परकुए में से पानी भरा चडस
आओ खामी राम का नाम
पैला नाम राम का …………….
कुआँ बन्द करने पर
खुवाण माता ‘सियाबरज्यांÓ कै जाज्यो
लड्डू पेड़ा खाज्यो
लाडुवां सैं धाप्योडी माता………….
हल जोतने या फसल निकालते समय
श्री रामजी महाराज,
स्यावड माता, धन्ना भगत की ध्याई…….
भाण्ड कला
गाँव वाले – भाण्ड देवता कैड्या सूं आर्या छो?
भाण्ड – सीधो बैकुण्ठ सूं आर्यो छूं……….
गाँव वाले – भाण्ड देवता आपकी उम्र कितनी?
भाण्ड – अजी म्हांकी उम्र को तो थे ही अंदाजो लगाल्यो। राजा दुर्योधन नै बहुत समझायो अक मानजा मार्यो जायगो। पाँच- सात गाँव देर पाण्डवां नै राजी कर लै। पण कोनै मान्यो। जींको फळ पायो। अर अकबर बादशाह नै म्हे……
(उपरोक्त सभी का विस्तृत विवरण पुस्तक मेरे गीत दिखायें गाँव, डॉ. कैलाशचन्द्र शर्मा, प्रकाशक- त्रिवेणी कला संगम बी-177 नित्यानन्द नगर, जयपुर राजस्थान में पढें )
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