भ्रष्टाचार…… यह एक आम शब्द है जो दुनिया के हर कोने में, जीवन के सभी क्षेत्रों में और दुनिया के सभी लोगों में चर्चा का विषय बन गया है. यह एक ऐसी विश्व व्यापक घटना है, जो हमारे अपने देश में उच्च पदों के कुछ लोगों से लेकर तो निम्न स्तर पर काम कर रहे कई व्यक्तियों तक इसका नासूर फ़ैल चूका है. यह एक ऐसा संक्रामक रोग है, जो दूसरो में देखकर ही लोगों के मन में संक्रमित होने के भाव पैदा कर देता है. वही से मनुष्य सोचने लगता है, कि “यदि वह भ्रष्ट होते हुए भी, सुख और शांति का जीवन व्यतीत कर सकता है तो, मै क्यों न करू, और जीवन के हर सुख सुविधा के साधन प्राप्त करू.” बस यही से ये “भ्रष्टाचार” के दौड़ शुरू हो जाती है.
भ्रष्टाचार आम क्यों हो गया है? किन प्रमुख कारकों की वजह भ्रष्टाचार अंकुरित होता है…….? दरअसल, व्यक्ति समाज का प्रतिबिम्ब है, वहाँ रहने वाले नागरिक, अपने आस-पास भ्रष्टाचार देखकर, स्वयं भ्रष्टाचारी होने लगते है. जिस प्रकार एक पशु… मानव समाज में रहते हुए अपना पशुत्व त्यागने लगता है और मनुष्य जंगले में रहते – रहते मानवता त्याग कर पशुत्व धारण करने लगता है , ठीक उसी प्रकार भ्रष्टाचारी समाज में रहकर सदाचारी व्यक्ति भी कही न कही भ्रष्टाचार करने पर मजबूर होने लगता है . उसके ह्रदय में पैसे व् रुतबे के प्रति लालच जागने लगता है. देखे हुए सभी स्वर्ण-स्वप्नों को पूरा करने के लिए, भ्रष्टाचार एक सरल रास्ता जान पड़ता है. ऐसे कुपोषित व अस्वस्थ समाज में रहते-रहते लोगों की बिना मेहनत किये, ज्यादा लाभ उठाने की मानसिकता बनने लगती है. जब आदमी के अन्दर अपनी क्षमता व् स्त्रोत से ज्यादा धनार्जन करने का लोभ आ जाता है, तब आदमी भ्रष्टाचार की दौड़ में शामिल हो जाता है. भ्रष्टाचार एक भ्रष्ट मानसिकता का परिणाम है. यह एक मानसिक बीमारी है. आज हमारे देश की यह सच्चाई है कि, करीब ९५% जनता किसी न किसी स्तर पर भ्रष्टाचार कर रही है. चाहे वह एक आम सब्जी बेचने वाला हो, सरकारी कर्मचारी हो, राजनेता हो, या बड़ा व्यवसायी हो.
ऊपर से हमारी कानून व्यवस्था के वाह !!!!!! क्या कहने. “जब हमारे किये गुनाहों पर पर्दा डालने हेतु, हम भ्रष्टाचारियों को पैसे देकर पर्दा डाल सकते है तो किसी का काम करने हेतु, पैसे ले क्यों नहीं सकते…” यही मानसिकता तो हमें भ्रष्टाचारी बना रही है. कई बार ज़िम्मेदार कर्मचारी हमें भ्रष्टाचार बनने पर मजबूर कर देते है. हमारे कामों में विघ्न डालकर, उन्हें गैरकानूनी तरीके से करने पर दबाव डालते है, मजबूरन हमें करना पड़ता है. मगर याद रहे !!!! घूंस लेने या देने वाला, दोनों ही भ्रष्ट है.
यथार्त तो यह है कि हमारे देश की कार्य प्रणाली व् कानून व्यावस्था ही इस बात के लिए ज़िम्मेदार है. सउदाहरण ….यदि एक परिवार में संरक्षण प्रदान करने वाले माँ- पिता दोनों ही व्यभिचारी होंगे , तो वो अपने बच्चे को सदाचारी कैसे बनायेंगे . ठीक उसकी तरह, जब देश के कर्ता-धर्ता व कानून के रक्षक ही, भ्रष्टाचारी होंगे तो समाज में हो रहे भ्रष्टाचार को कैसे रोक पाएंगे . आम नागरिको द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए ही तो कानून बनते है, लेकिन यदि उन कानूनों को लागू करने वाले, लागू ही न करे, या उनका तोड़ निकाल ले, तो देश कैसे इस नासूर का इलाज करेगा.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुरानी व्यवस्था अपने सभी मूल्यों के साथ एक खंडहर में छोड़ दी गयी थी. युद्ध, मंदी, तनाव व तीव्र गति से बढाती जनसँख्या के कारन, लोगो की मानसिकता भ्रष्ट हो गयी और उन्होंने कानूनों का तोड़ निकाल लिया. आज, इस स्वतंत्र भारत में सभी सरकारी विभागों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिकारी सबसे भ्रष्ट व्यवसायियों के बहुत करीब हैं. यह मिलीभगत का दुष्चक्र आग की तरह पूरे समाज को निगल भ्रष्टाचार फैला रहा है. राजनेता व सामाजिक नेता जो देश के संरक्षक है, सभी समाज के अमीर लोगों से जुड़े रहकर उन्ही पर निर्भर होते है. ये सभी समुदाय मिलकर समाज व सरकार को अपने इशारों पर नचाते है. इसके बाद एक आम आदमी सोचता है कि… “जब हमारी सरकार ही भ्रष्ट है… हमारे देश के संरक्षक ही भ्रष्ट है , व अपने लाभ हेतु कार्यरत है , तो हम अपने लाभ के लिए प्रयास क्यों न करे …”परिणामतः … एक आम आदमी भी भ्रष्टाचार से संक्रमित हो जाता है.
इस नासूर को ख़त्म करने करने के लिए एक सुद्रह्द कानून व्यवस्था सर्वोपरि है. जिसके तहत गुनाहगार को कड़ी सजा अनिवार्य होनी चाहिए. व्यवस्थाये पारदर्शी व निष्पक्ष होनी चाहिए.
कानून जितने पुराने होंगे, उनका तोड़ भी समाज में उपस्थित होगा… पुराने कानून, नयी पहेलियों को हल करने में विफल होते है. इसलिए, हमें चाहिए कि, समय-समय पर कानूनों में परवर्तन करके उन्हें मज़बूत व बेतोड़ बनाये.
भ्रष्टाचार के खिलाफ तत्काल फैसला, लोगो के दिलो में कानून के प्रति यह विश्वास दिलाता है, कि व्यवस्थाये सुद्र्ह्द है, और आगे भ्रष्टाचार करने के प्रति डर पैदा करता है.
देश के नागरिक होने के नाते ये हमारा भी कर्तव्य बनता है, कि भ्रष्टाचारियों को हम मनोरंजित नहीं करे व गलत तरीके से अपने कार्यों को सिद्ध न करे.
यही अंतर है हमारे देश व् दुसरे उत्तरी देशों में. भ्रष्टाचार सभी देशों में है, पर उन्हें नियंत्रित करने की नीयत व प्रयास सभी देशों में नहीं है. दुर्भाग्य वश हमारा देश इस प्रयासों से अछूता है.
यह भ्रष्टाचार, मनुष्य के अन्दर पाया जाने वाला जन्मसिद्ध कारक है , जो कमज़ोर व दुर्बल कानून व्यवस्था के कारण उग्र हो जाता है… शायद इसे जड़ से ख़त्म नहीं किया जा सकता (क्योंकि यह मनुष्य के खून में है) पर निश्चित रूप से नियंत्रित ज़रूर किया जा सकता है. अच्छी नियंत्रण व्यवस्था समाज में भ्रष्टाचार को शिथिल कर देती है. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण ही इस समाज को सवस्थ व सुपोषित बना सकता है. “ सफल प्रयास ही कार्यों को अंजाम दे सकते है ….”
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