बन्धुओं सामाजिक गतिविधियों में अभिरुचि शुरु से ही रही, साथ ही जो बात गलत लगी उसका विरोध भी शुरु से ही किया जिसका पारितोष ये रहा कि आज मुझको आलोचक कहते है। सन् 2001 में दिल्ली प्रान्तीय रैगर पँचायत में सदस्य कार्यकारिणी रहा उस वक्त पँचायत के प्रधान व महामन्त्री ने पँचायत के अन्तर्गत चलनेवाली सामुहिक विवाह समिति को पँचायत से पृथक करके अपने निजि हाथों में ले गये समाज के लोग मूक रहे लेकिन हमने विरोधाभास जताया, इसी तरह कई बार बहुत सी घटनाएँ हुई जिनका विरोध करता रहा।
बहुत ही विडम्बना का विषय है कि समाज के लोग सब कुछ जानते हुए समाज विरोधी गतिविधियों का मूक रहकर समर्थन करते है। फिर कहते है कि समाज बिकास कैसे होगा। अगर हमने विरोध किया तो हमें आलोचक कहते है। पदलोलुपता व स्वार्थपूर्ति के लिए ही अधिकतर लोग अग्रिम पँक्ति में आना चाहते है, और ऐसे ही लोगों का बहुत मान सम्मान भी किया जाता है। महासभा के पदाधिकारियों की हठधर्मी भी दिल्ली के पदलोलुपों की देन रही। महासभा को कमजोर करने के लिए महासभा के समानान्तर जो नवनिर्माण समिति बनी उसके दिल्ली अध्यक्ष को लोग मान सम्मान दे रहे थे व पँचायत के प्रधान को नजर अन्दाज किया जा रहा था हमने विरोध किया तो हमसे कहा गया कि हम कार्यक्रम खराब करने आए है।
हमें क्या करना चाहिए मूकदर्शक बनकर बैठे रहे। लोग सराहना भी करते है लेकिन सामने आकर स्वयं विरोध नही करते। क्या होगा हमारे समाज का। कुछ बच्चे नौजवान लडके खुश होते है जो कहते है कि आप विरोध किया करो आपकी बातों में तर्क भी होता है। जो मेरा होसला बढा देते है। लेकिन मैं भी अकेला कब तक विरोध करूँ, क्यों ? इससे मेरी व्यक्तिगत छवि आलोचकों की जैसी बन गयी क्योंकि अधिकतर लोग मुझको गलत समझते है। बहुत से लोग दबी जबान में कहते है कि मन्दिर प्रबन्धक कमेटी का आडिट एक ही व्यक्ति से बार बार क्यों करवाया जाता है मुझको पता है वो चाहते है कि मैं ही ये बात फैलाऊँ लेकिन स्वयं आगे नही आते। पगडियाँ बन्धवाने आगे आ जायेंगे ।
ये सब इसलिए लिख रहा हूँ कि जो मुझे आलोचक समझते है उनसे यही कहूँगा कि आज के बाद मैं भी अन्य मूकबन्धुओं की तरह मूक दर्शक बना रहूँगा। लेकिन नजर रखूँगा कि हमारे समाज में कितना घुन और लगेगा। जिस समाज का राजनैतिक पतन हो गया उस समाज का अन्धकार में जाना तय है, जिसका कारण समाज के अग्रिम पँक्ति में बैठनेवाले वही पदलोलुप लोग है। जो समाज के नाम पर सिर्फ अपनी रोजी रोटी चलाते है जिनको समाज के उत्थान पतन से कुछ लेना देना नही है।
बहुत ही विडम्बना का विषय है कि समाज के लोग सब कुछ जानते हुए समाज विरोधी गतिविधियों का मूक रहकर समर्थन करते है। फिर कहते है कि समाज बिकास कैसे होगा। अगर हमने विरोध किया तो हमें आलोचक कहते है। पदलोलुपता व स्वार्थपूर्ति के लिए ही अधिकतर लोग अग्रिम पँक्ति में आना चाहते है, और ऐसे ही लोगों का बहुत मान सम्मान भी किया जाता है। महासभा के पदाधिकारियों की हठधर्मी भी दिल्ली के पदलोलुपों की देन रही। महासभा को कमजोर करने के लिए महासभा के समानान्तर जो नवनिर्माण समिति बनी उसके दिल्ली अध्यक्ष को लोग मान सम्मान दे रहे थे व पँचायत के प्रधान को नजर अन्दाज किया जा रहा था हमने विरोध किया तो हमसे कहा गया कि हम कार्यक्रम खराब करने आए है।
हमें क्या करना चाहिए मूकदर्शक बनकर बैठे रहे। लोग सराहना भी करते है लेकिन सामने आकर स्वयं विरोध नही करते। क्या होगा हमारे समाज का। कुछ बच्चे नौजवान लडके खुश होते है जो कहते है कि आप विरोध किया करो आपकी बातों में तर्क भी होता है। जो मेरा होसला बढा देते है। लेकिन मैं भी अकेला कब तक विरोध करूँ, क्यों ? इससे मेरी व्यक्तिगत छवि आलोचकों की जैसी बन गयी क्योंकि अधिकतर लोग मुझको गलत समझते है। बहुत से लोग दबी जबान में कहते है कि मन्दिर प्रबन्धक कमेटी का आडिट एक ही व्यक्ति से बार बार क्यों करवाया जाता है मुझको पता है वो चाहते है कि मैं ही ये बात फैलाऊँ लेकिन स्वयं आगे नही आते। पगडियाँ बन्धवाने आगे आ जायेंगे ।
ये सब इसलिए लिख रहा हूँ कि जो मुझे आलोचक समझते है उनसे यही कहूँगा कि आज के बाद मैं भी अन्य मूकबन्धुओं की तरह मूक दर्शक बना रहूँगा। लेकिन नजर रखूँगा कि हमारे समाज में कितना घुन और लगेगा। जिस समाज का राजनैतिक पतन हो गया उस समाज का अन्धकार में जाना तय है, जिसका कारण समाज के अग्रिम पँक्ति में बैठनेवाले वही पदलोलुप लोग है। जो समाज के नाम पर सिर्फ अपनी रोजी रोटी चलाते है जिनको समाज के उत्थान पतन से कुछ लेना देना नही है।
Ashok Kumar जी
सर्वप्रथम तो यह कि मुझको बीमारी का बहाना बनाने की जरूरत क्या?
आपने ऊपर लिखा कि मुझको इग्नोर करके समाज सेवा में अपना ध्यान लगाया जाये। तो क्या आप बता सकते हैं कि आज कौन से कारण उत्पन्न हो गए कि आप मेरी इस पोस्ट पर कमेन्ट करने लग गये जो पोस्ट अगस्त 2015 में लिखी है।
अब ये जरुरी तो नहीं कि ज्यादा पढ़ा लिखा और सरकारी नौकरी करनेवाला ही बुद्धिमान होता है और कम पढ़ा लिखा गैर सरकारी काम करनेवाला मुर्ख होता है। मैं आज भी ठीक उसी तरह लिखता हूँ जैसा पहले लिखा करता था आप इसलिए कमेन्ट कर रहे हो क्योंकि आपके एक साथी की खूब छीछालेदर हुई थी आप उसी के प्रत्युतर में भडास निकाल रहे हो।
द्वितीय आप अपने संज्ञान में ले कि मैंने दिल्ली प्रदेश महासभा पर नहीं अखिल भारतीय रैगर महासभा पर केस किया है जिसके संदर्भ में आप विचार विमर्श करने श्री घनश्याम सक्करवाल के साथ आये थे। लेकिन आपने यह नहीं बताया कि हमारी किस विषय पर बात हुई और किस निष्कर्ष पर वार्ता समाप्त हुई। वो मैं बताता हूँ कि साढ़े तीन घंटे जो बात हुई उसके विषय थे 1290 प्रतिनिधियों की बहाली व पंचायत के समानांतर महासभा की इकाई के गठन पर रोक लगे। आप लोगों ने कहा था कि हमारे घोषणा पत्र में है 1290 प्रतिनिधियों को बहाल करेंगे व दिल्ली के हित में दिल्ली के लोग विभाजित न हो इसके लिए महासभा की इकाई का गठन नहीं होगा ये मैं वादा करता हूँ। उस वक़्त कुंदन खटनावालिया प्रदीप चंदोलिया परमानंद जाजोरिया व नरेश सोंकरिया के अतिरिक्त आप स्वयं अशोक जी व श्री घनश्याम सक्करवाल के साथ मैं मौजूद था।
तृतीय यह कि क्या मैंने आपको समय दिया था मिलने के लिए रात को 10:30 बजे ? और मैंने बीमारी का बहाना बना लिया क्या आपने तस्दीक किया था कि मैं बहाना बना रहा हूँ या आपकी सकारात्मकता समाप्त हो गयी थी। क्या आप बता सकते हैं कि आप कौन से दिन आये थे मेरे घर पर या आप या दीपचंद बारोलिया जानता भी है कि मैं रहता कहाँ हूँ। आप किससे मिले थे। और किसने कहा था कि मैं बीमार हूँ और जब आपको बताया गया कि मैं बीमार हूँ तो क्या आपने दोबारा पूछने की जहमत उठाई कि मैं ठीक हूँ या बीमार हूँ। मानवता के नाते ही पूछ लेते।
लेकिन आपने लिखा तो इसलिए है कि आपका एक साथी गश खाकर गिर पड़ा उसको आप सांत्वना दे रहे हो । दुसरे शब्दों में आप कम पढ़े लिखे व्यक्ति को दबाने का निरर्थक प्रयास कर रहे हो।
श्रीमान अशोक कुमार जी किसी का भी आंकलन करो लेकिन अपने आपको बड़ा बताकर सामनेवाले को छोटा बताना छोटी मानसिकता का परिचायक है।
आप मुझसे बड़े हैं पढ़े लिखे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप बहुत बड़े विद्वान हैं और आपको दूसरों की बेइज्जत करने का अधिकार है। आपका जो दायरा है उसी के अंतर्गत रहकर बातें करें।
आपने मेरा कमेंट पढ़ लिया होगा अब आप विश्लेष्ण कर लेना कि मैं कितना पढ़ा लिखा हूँ।
अंत में यह जानना चाहूँगा कि आप मुझे किस विषय पर वार्तालाप के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
आपके जवाब की प्रतीक्षा में
पृथ्वीराज बारोलिया
Prithvi Barolia Raigar Ashok Kumar जी मैं किसी भी प्रकार का धब्बा मिटाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा। आज से 15 वर्ष पहले मैं पंचायत की कार्यकारिणी में था उस वक्त जिन लोगों ने पंचायत की सामूहिक विवाह समिति अपने कब्जे में की थी वो समिति अब लुप्त हो गयी वे लोग आज आपके साथी हैं। जब वो इतने सामाजिक हैं तो आपके बारे में क्या कहूँ।
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