Friday, April 1, 2016

युवा ऊर्जा महान सृजन कर सकती है

शुरू से ही हमें बताया जाता है की ग्लास अगर आधा भरा है तो उसकी सकारात्मकता को देखो, लें अब समय आ गया है की हम खाली हिस्से को भी देखें; देखें की आधा ग्लास खाली क्यों है।
      निश्चित तौर पर हमारे देश में युवा बढ़े है, और देश की उन्नति भी हुई है। हर क्षेत्र मे युवाओं ने हमारे देश को आगे बढ़ाने मे अहम योगदान दिया है। किसी भी क्षेत्र मे हम यह देख सकते है कि देश का मान युवाओं ने ही बढ़ाया है। भले ही आप क्रिकेट टीम ले लें जिसने हमें विश्वकप दिलाया। या आर्थिक क्षेत्र जिसमे युवा ने हमें मजबूत किया है। शिक्षा के क्षेत्र मे युवाओं की मेहनत से ही हमारे देश के आईआईटी आईआईएम प्रसिद्ध हुए है। हमारी सेना युवा शक्ति पर ही निर्भर करती है।
      लेकिन जिस तरह युवा ऊर्जा महान सृजन कर सकती हैठीक उसी तरह यह महाविनाश भी कर सकती है,और यह युवा शक्ति का एक नकारात्मक पहलू है।
      हम इस तथ्य को नकार नहीं सकते की देश मे युवाओं की संख्या बढ्ने के साथ ही हिंसा और अपराध भी बढ़े है। 10 साल बाद सबसे ज्यादा युवा हमारे देश मे होंगे। एक ओर तो जहां दुनिया के बाकी देशों में काम करने वाले लोगों की कमी होगी वहीं भारत में उनकी भरमार होगी।
      ये सुखद अनुमान सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन अगर हम आज का परिवेश देखें तो जिस तरह युवाओं मे हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है; ये बड़ा ही खरनाक मंजर दिखाई दे रहा है।हमारा युवा जराजरा सी बातों पर हिंसा करने में आगे है।
      युवा की सबसे बड़ी समस्या ही यही है की वह बदलाव लाना चाहता है। और सिर्फ बदलाव लाने के लिए किसी व्यवस्था को बदलना अराजकता होगी। सही परिवर्तन वह है जो भविष्य के मद्देनजर किया गया हो, जिसमे हर परिसतिथी का आकलन किया गया हो, और हर चुनौती से लड़ने की क्षमता हो।
      दूसरी समस्या ये है की युवाओं के पास आदर्श नेत्रत्व की कमी है। यहाँ आदर्शों की कमी नहीं है, लेकिन युवा नैतिकता और चरित्र को इतना महत्व नहीं दे रहे है।
      इसी तरह से युवाओं में संस्कारों की कमी आत्मबल तोड़ रही है। जिस वजह से आत्मसम्मान और स्वाभिमान जैसी भावनाओं का विकास युवाओं में लगभग बंद हो गया है। और परिणाम – वे प्रतिष्ठा  और पुरस्कारों की लालसा में जाने अंजाने –क्या फर्क पड़ता है औ सब चलता है जैसी बातों को अपना चुके है।
      राष्ट्रीयता और देशभक्ति की बातें करने वाले लोग इनके लिए हंसी का पात्र बन गए है। दूसरों को दुख पहुंचा कर उसमें अपनी खुशी ढूँढने की प्रवृत्ति उसमे बढ़ती जा रही है।
      जिस तरह का राजनतिक और सामाजिक माहौल समाज और इस देश में बन रहा है, ऐसे मे युवा अपने आप को बड़ी जटिलताओं मे उलझा हुआ पा रहे है। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है की क्या सही है? और कहाँ तक सही है।
      कई तो आज़ादी के नाम पर कुछ भी करने की छूट चाहते है। आर यहीं पर युवाओं का एक बड़ा वर्ग भटकता नज़र आ रहा है। उन्हें समझना होगा की वास्तविक आज़ादी मर्यादा और अनुशासन साथ लेकर आती है,और आज़ादी वैचारिक स्वतन्त्रता का प्रतीक है, और यह तब ही तक ठीक हैं जब तक आप किसी की आज़ादी न छीनें, क्योंकि इसके बाद यह आज़ादी तानाशाही मे कब बादल जाती है पता भी नहीं चलता ।
      ये बात सही है की दुनिया भर में युवाओं ने अपना परचम फहराया है, लेकिन यदि हम नैतिकता के तौर पर देखें तो अधिकतर युवा इसपर खरे नहीं उतरते। उनकी अधिकतर उपलब्धियां व्यक्तिगत है अगर ऐसा न होता तो आइ आइ टी से निकलने वाले अधिकतर युवा विदेशों मे नौकरियों के लिए क्यों चले जाता है और आईपीएल में उछल उछल कर खेलने वाले हमारे खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया मे शून्य पर आउट न होते।  और इसीलिए समाज को साथ लेकर चलने की क्षमता उनमें खत्म होती जा रही है।
      अतः किसी भी देश की उन्नति युवाओं की संख्या पर नहीं बल्कि इस बात पर निर्भर करती है की देश के प्रति वे कितने समर्पित है।
      लोग ये मानते है की देश की सेवा के लिए राजनीति मे आना आवश्यक है। लेकिन आजकल के युवा को राजनीति से घृणा है। और जो भी युवा राजनीति मे आ रहें है उनमे से अधिकतर परिवारवाद के कारण आगे बढ़ पा रहे है। हमें यह याद रखना चाहिए की चेहरा नया कर देने से विकास नहीं होता। राजनीति मे आने वाले युवा की सोच प्रभावशाली होनी चाहिए, उसमे समर्पण होना चाहिए। अब तक हमारे देश के विकास मे अनुभवी राजनीतिज्ञों का योगदान कहीं ज्यादा रहा है। युवा सिर्फ शक्ति प्रदर्शन मे ही सक्षम है। विवेक का उपयोग तो वह मात्र व्यक्तिगत कारणो से करता है।
      इसीलिए जिन युवाओं की कल्पना यह देश आकर रहा हैउन युवाओं की इस देश में भारी कमी है।  आज के युवाओं पर हम बेशक गर्व कर सकते है, लेकिन किसी नुक्कड़ या चौराहे पर दिखने वाले युवाओं के भयानक और काले चेहरे से भी इंकार करना बड़ी भूल होगी।
      जो युवा कामयाब होते है वे अधिकतर विदेश चले जाते है, कुछ बेईमानी और भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाकर अपनी मंज़िल तक पहुचते है। और जिन्हें कुछ नहीं मिलता वे या तो खुद को नशे आदि में डुबो देते है या फिर अपराध में फंस जाते है। कइयों को तो आत्महत्या ही सबसे सरल मार्ग जान पड़ता है।
      युवा सोच जो आजकल काफी प्रचलन हैउस पर मैं यह यह कहना चाहूँगा की युवा सोच की पहली निशानी यही है की पहले खुद को बदला जायेपहले खुद में सुधार हो और तब फिर पूरी दुनिया की बात की जाये।
      युवा सोच कोई नयी आविष्कारक सोच नहीं है बल्कि यह तो वास्तविकता और सत्य को अपनी असीम ऊर्जा से परखना और आगे बढ़ने के बारे मे है। यही युवा होने की निशानी है।
      युवाओं मे हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति बढ्ने के लिए मात्र युवाओं को दोष देना ठीक नहीं हैइसके और कई कारण है।
      जैसे की- हम जो भी बनते है वह हमारी वैचारिक प्रक्रिया पर निर्भर करता हैऔर विचार से आदत और आदत से हहमारी जीवन शैली जुड़ी हुई है। इस प्रक्रिया की शुरुआत बचपन से ही होती है। इस पीढ़ी के जो नए माता पिता है उनमें से अधिकतर अपनी व्यस्तता के चलते बच्चों में सही समझ उत्पन्न नहीं कर पा रहे है।  काफीहद तक तो माता पिता ही युवाओं के अपराध की ओर बढ्ने के लिए जिम्मेदार है। वे ही अपनी महत्वाकांक्षायेबच्चों पर थोप रहे है। ये बात उन्हें हमेशा ध्यान रखनी चाहिए की बच्चे उनके गुलाम नहीं हैबल्कि उनका अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व और जीवन है।
      इसी प्रकार से साहित्य और सिनेमा भी युवाओं के चरित्र को प्रभावित करता है। साहित्य समाज में बदलावलाता है। और यदि साहित्य गलत दिशा दिखाएगा तो समाज भी दिग्भ्रमित होगाऔर ये बात सही है की सबसे तेज़ी और सरलता से प्रभावित करने वाला साहित्य है-सिनेमा। जो अपरिपक्व मन को गलत दिशा देने के लिए काफी है। लेकिन इससे भी सभी लोग तो प्रभावित नहीं होते । अतः सम्पूर्ण दोष सिनेमा को नहीं दिया जा सकता।

      देखियेकिसी भी चीज़ का प्रभाव आपके अंदर मौजूद सकारात्मकता और नकारात्मकता पर निर्भर करता है। हम खुद को जितना ज्यादा कमजोर मानेगेउतनी ही तेज़ी से हम दूसरों से प्रभावित होंगेऔर ऐसे में गलत रास्ते पर जाने की हमारी संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। जैसे की हमें बचपन से सिखाया जाता है की – शेर बनो।तो यहाँ यह साफ है की शेर सा निडर और साहसी बनो न की हिंसककुख्यात और असंवेदनशील। और लगभग यही हर युवा के साथ हो रहा है। और इसीलिए हमें पश्चिमी सभ्यता से सीखना तो चाहिए लेकिन विवेकशीलता के साथ।
      इसी संदर्भ में आचार्य चाणक्य भी कहते है की – देवों के पास पीने के लिए अमृत है तब वे सोमरस पीते है;इसी प्रकार हमारे पास विश्व की महानतम संस्कृति हैतब भी यदि दूसरी संस्कृति से हम कुछ अच्छा सीख पाते है तो इसमें अनुचित क्या है।
      देश के सभी शिक्षक अगर अपना 100% दें तो मुझे लगता है , की हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत अच्छी है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षकों के हाथ में ही है। इसी शिक्षा प्रणाली ने हमे अमेरिका जैसे देश को शिक्षा के क्षेत्र मे चुनौती देते हुये उन्हें भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।
      हमारे यहाँ के युवा परीक्षाओं मे 100% अंक लाने लगे लगे है । हमारे देश मे शिक्षाकर्मी तो बहुत है परंतु सच्चे गुरु नहीं है। ऐसे  गुरु बहुत कम बचे है जिन्हें हृदय प्रणाम करे। इसीलिए यदि युवाओं की सफलता का श्रेय शिक्षक को है तो उसकी दुर्दशा के लिए भी वही जिम्मेदार है। आज के शिक्षकों को अपना स्वार्थ पहले दिखता है। वे कक्षा में पढ़ा देने भर में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है। वे युवा के चरित्र निर्माण के पुनीत एवं महान उत्तरदायित्व को निभाना ही नहीं चाहते।अतः शिक्षको को राष्ट्र निर्माण के अपने दायित्व को निभाना चाहिए।
      एक ओर तो देश का युवा देश की विकास दर एवं सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि में योगदान दे रहा है, वहीँ दूसरी और युवाओं की मानसिकता धीरे धीरे आत्मकेंद्रित होती जा रही है. उसकी इसी आत्मकेंद्रित मानसिकता के कारण उसके लिए अपनी भौतिक सुख सुविधाए ही सब कुछ हो गयी है. साथ ही साथ उसके लिए पारिवारिक संवेदनाएं तथा सामाजिक सरोकार भी बेमानी से हो गए है. उसकी इसी प्रवृत्ति ने उसे असंवेदनशील और असहनशील बना दिया है. इसी प्रकार उसमे धैर्य की भी कमी हो गई है. वह हर मूल्य पर शीघ्रता से सफलता प्राप्त करना चाहता है. एवं यदि कभी जीवन में उसे अध्ययन, रोजगार अथवा व्यवसाय आदि के क्षेत्र में असफलता प्राप्त होती है तो वह हताश हो जाता है और इसी हताशा में जाने – अनजाने वह अपराध के मार्ग पर बढ़ चलता है. तब उसके लिए सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों का कोई महत्व नहीं रह जाता; और तब यदि उसके लिए किसी चीज़ का महत्व रह जाता है तो वह है – धन एकत्र करने का तथा अपनी सुख-सुविधाओं के साधन जुटाने का. इस प्रकार की परिस्तिथिती में घिरे युवा अपराध में लिप्त हो जाते है. मेरा मत है की युवा को इससे बचने के लिए न केवल पारिवारिक मार्गदर्शन की, बल्कि समय समय पर विशेषज्ञों के द्वारा काउंसिलिंग भी दी जानी  चाहिए, ताकि वह युवा अपने जीवन में आने वाली किसी भी समस्या और कठिनाई से पर्याप्त समझदारी के साथ निपट सके.  यहीतरीका युवा को हिंसा और अपराध के मार्ग पर जाने से रोकेगा। 

No comments:

Post a Comment