एकता ही बल है
जिस परिवार, समाज, प्रान्त और देश में एकता का आदर होता है, जहाँ के लोग इसकी अहमियत समझते हैं वहां के लोग उन्नतिकरते हैं। जो जाति इसका उचित सम्मान करती है वह जाति उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है और जिस समाज में एकता का अभाव है वहां घोर अशांति का साम्राज्य कायम हो जाता है। जिस समाज के अन्दर एकता की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है, वहां नाना प्रकार की कुप्रथाएं,घिनौनी कुरीतियाँ तथा भद्दे कुसंस्कार जन्म ले लेते हैं। एक हाथ से ताली नहीं बजती, एक पहिये के बिना गाड़ी नहीं चलती, उसी प्रकार एकता के बिना समाज सुगठित नहीं हो सकता है। चीटियाँ जो एक क्षुद्र जीव है, लेकिन वह एक्ताव्द्ध होकर निरंतर काम करती रहती है। एक-एक फूल के पिरोने से माला बनती है, एक-एक ईंट जोड़ने से ईमारत खड़ी हो जाती है, अक्षरों के मेल से शब्द और शब्दों के मेल से बड़े-बड़े ग्रंथों का निर्माण होता है, नालियों से बड़े नाले, नालों से नदियाँ, और कई नदियों के मिलने से सागर बनता है, उसी प्रकार जबतक परिवार में, समाज में एकता वद्ध जीवन का संचार नहीं होगा तबतक उस समाज की उन्नति असंभव है। एकता का ही परिणाम था कि सात समुन्दर पार से अंग्रेज भारत में व्यापार करने आया था और यंहा के आपसी फूट का फायदा उठाकर पुरे देश में शासन कायम कर लिया और 200 वर्षों तक इस देश पर शासन किया। अतएव हम सबों को आपसी वैमनष्यता, इर्ष्या- द्वेष, आदि का परित्याग कर एकता पर ध्यान देने की जरूरत है। हमारे बीच भले ही कितने मतभेद हों, पर यदि कोई बाहरी संकट आये तो सबको एकजुट होकर उसका मुकाबला करना चाहिए।
एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में हम सभी स्वीकार कर लेते हैं। एकता का मतलब ही होता है, सब के भिन्न-भिन्न विचार होते हुए भी हम आपसी प्रेम, प्यार और भाईचारे के साथ एकजुट एक साथ खड़े रहना । एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है। एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। समाज की एकता के साथ आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। इसलिए परिवार की परिभाषा को विस्तृत बनाये और आपसी मतभेद को मनभेद में तब्दील होने से पूर्व ही उसका उचित समाधान निकाल कर एक माला और उसके मानकों की भांति परिवार को एक मजबूत इकाई का स्वरूप प्रदान करें I संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है।
संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का आधार है। संगठन के बिना समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, किन्तु विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है। विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित करके एक रस्सी बना ली जाए तो वह हाथी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांधा जा सकता है। किन्तु यदि वे धागे अलग-अलग रहें तो उससे एक तिनके को भी नहीं बांधा जा सकता हैं। संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस घर में संगठन होता है उस घर में सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है।
बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी कमजोर कर देगा।
बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज ज्यादा श्रेष्ठ है। इसलिए मेरे प्रिय युवा साथिओं, यदि आप अपने समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ। जब समाज संगठित, शिक्षित व समृद्ध होगा तो हम सब भी शिक्षित व समृद्ध होंगे I
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