विचारों में विरोध होना जरुरी है |विरोध से ही नए विचार उत्पन्न होते हैं | इन्ही बनते, बिगड़ते विचारों से ही समाज आगे बदता है | विकास का यही प्रथम सोपान है | विकास को बनाये रखने के लिए कर शासन द्वारा लगाया जाता है ,जो प्रत्यक्छ एवं अप्रत्यक्छकर के रूप में होता है ,जिससे देश का विकास होता है एवं एक सुदृढ़ अर्थ व्यवस्था की नीव पड़ती है |उसी के सामानांतर नपुंसक समाज में माफिया तत्वों द्वारा एक समानांतर अर्थ व्यवस्था धीरे धीरे खड़ी हो जाती है ,जो कालांतर में एक नियमित प्रक्रिया का अंग बन जाती है ,जिसे भर्ष्टाचार अर्थ व्यवस्था कह सकते हैं |इसके भी दो अंग होते हैं |प्रत्यक्छ भर्ष्टाचार एवं अप्रत्यक्छ भर्ष्टाचार |प्रत्यक्छ भर्ष्टाचार में सामान्य रूप से सभी को सुबह सो कर उठने से लेकर रात को सोने तक प्रत्येक छड इसका एहसास होता है |भारतीय जन मानस इस उत्कोच के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गया है |इसमें देने वाले को इस तरह समझाया जाता है कि कुछ दे दिला कर मामला शांत करा लिया जाय |धीरे धीरे यह एक परंपरा बन जाती है |समाज कि यह देने वाली इकाई बहुत कमजोर होती है तथा अकेले लड़ने में सछम नहीं होती ,उसी के सामान अन्य इकाइयाँ यह सोच कर चुप रहती हैं कि दुसरे के फटे में टांग क्या अडाना |बस यहीं से भर्ष्टाचार का चक्र प्रारंभ होता है और धीरे धीरे परंपरा बन जाती है |इससे छोटा बड़ा ,अमीर गरीब सभी प्रभावित होते हैं परन्तु सभी चुप हैं ,हम से क्या मतलब |
इसी प्रकार का व्यवहार जब किसी समूह के साथ होता है तब इसमें जनता सीधे प्रभावित नहीं होती है | भारत के कुछ राज्यों में ट्रकों से माल ढोने के लिए वजन निर्धारित है परन्तु निर्धारित से अधिक वजन ढोया जा रहा है |सड़कों के निर्माण का एक मानक निर्धारित होता है ,परन्तु निर्धारित से अधिक वजन के कारण सड़कें टूट रही हैं गड्ढे हो रहे हैं आवागमन बाधित हो रहा है ,परन्तु दूसरी तरफ सड़कें बन रहीं हैं लोगों को रोजगार मिल रहा है ,सरकारी बजट आ रहा है ,मनरेगा का सदुपयोग हो रहा है |विकास का चक्र चल रहा है | या तो सभी सड़कें एक निश्चित मानक की हों या फिर सडकों को वजन के हिसाब से चिन्हित कर दिया जाय |
इसी प्रकार उच्च शिक्छा के छेत्र में मान्यता देने से लेकर एडमिशन ,फीस ,पदाई तक प्रत्येक स्तर पर क्या कहानी हो रही है यह भुक्त भोगी ही जानता है |संगठित न होने के कारण विरोध नहीं है | प्रत्येक इकाई आगे बदने की होड़ में दूसरे का अधिकार छिनने का प्रयास कर रही है ,परन्तु अंतिम स्थिति यह है कि वह अपना भी अधिकार खोती जा रही है |
यदि आपको कोई अवैध सामान भारत के किसी हिस्से में भेंजना हो तो निश्तिंत होकर भेंजिये मॉल सुरक्छित घर तक पहुंचेगा |द|म चोखा होना चाहिए |मॉल पहुँचाने वाला माफिया हैसियत के हिसाब से व्यवस्था कर देगा |माफिया कानून का पूरा ध्यान रखता है ,जिससे कहीं हो हल्ला न हो |बस आपको पैसे भर देने हैं |आप चाहें तोप का गोला, बन्दुक , कुछ भी माँगा ले सुरक्छित आपको मिल जायेगा ,कहीं आपका नाम भी नहीं होगा |इसमें आपका भला है ,रेलवे का भला है ,काली ,नीली, पिली, खाकी ,लाल सभी का भला है |यदि मॉल व्यवसायिक हुआ तो वह खुले बाजार में आएगा ,वह खुला बाजार ऐसा होगा जिसमें जाँच न हो सके |इस प्रकार व्यापारियों का एक समूह तैयार हो जायेगा ,उस समूह का अपना एक बाजार स्थापित हो जायेगा |इस प्रकार एक सामानांतर अर्थ व्यवस्था विकसित होनी प्रारंभ होकर स्थापित होजाएगी|
राज्य सरकार कहती है रेलवे केंद्र सरकार के अधिकार छेत्र में है ,रेलवे कहता है कि इस पर रोक से आमदनी कम हो जाएगी |कोई नहीं कहता कि बिना पुरे पते के मॉल बुक नहीं होगा ,बिना व्यक्ति के सत्यापन के माल नहीं दिया जायेगा |इस खरबों की चोरी को रोकने को कोई तत्पर नहीं है |हम देखते रहते है ,सोचते रहते है |परन्तु कोई विरोध नहीं क्योंकि यह राज्य के राजस्व का मामला है ,हमसे क्या मतलब |
कानून बनाने वाले जब जनता के हित का कानून न बनावें तो जनता क्या करे |
खनन कार्य में लगी हुई इकाइयों की २० साल पहले की स्थिति का आज की स्थिति से मूल्याङ्कन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि बीच का दौर काफी उथल -पुथल भरा रहा |वर्चस्व की लड़ाई में काफी जाने गईं ,धीरे धीरे स्थिरता आ रही है |और अब गिने चुने छत्रपों द्वारा छेत्रों का बंटवारा कर लिया गया है |यदि देखना है तो कोयला को ही ले ,लाइसेंस लेने ,खरीदने ,लोड करने ,ले आने ,बिक्री करने प्रत्येक स्तर पर बाकायदा दुकान खोले लोग बैठे हैं ,,जो आपकी मदद करेंगे |आप उनका शुल्क अदा करें लाभ में रहेंगे ,अन्यथा पूरी रैक में पत्थर लोड कर दिया जायेगा |इसी प्रकार प्रत्येक खनिज की कहानी है ,जो कि एक सशक्त माफिया की गिरफ्त में आ गया है |जिसकी अपनी एक निजी फौज है ,कारिंदे हैं जो पुरे व्यवसाय को देखते हैं| ,फिर छेत्रिय माफिया को उस छेत्र का कार्य दे देते हैं ,वह स्थानीय स्तर पर सछम स्थानीय माफिया को उस कार्य को दे देता है |अब पूरा व्यवसाय वैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा है |केवल जनता को छोड़ कर बाकि सभी खुश हैं ,विकास हो रहा है |यदि कोई माफिया के कार्य में रूकावट बनता है तो उसे ऊपर से ६इन्च छोटा कर दिया जाता है |
मुख्य माफिया को अब क़ानूनी संरक्छान की जरुरत होती है , वह राजनीति की तरफ रुख करता है | तमाम पार्टियाँ मुंह बाये उसके इंतजार में खड़ी रहतीं हैं |जनशक्ति ,दबदबे तथा छेत्रिय एवं स्थानीय माफियाओं की मदद से वह सत्ता की तरफ बदता है | इस प्रकार सत्ता तक पहुँचने कि इच्छा पूरी होती है |ये माफिया एक दुसरे की भर पुर मदद करते हैं | सरकार ने लाइसेंस राज ख़त्म कर निचले स्तर से ले जाकर ऊपर के स्तर पर महिमा मंडित कर दिया |निचले स्तर के भर्ष्टाचार से जनता सीधे प्रभावित थी ,हो हल्ला लाजिमी था ,उच्च स्तर पर होने के कारण जनता सीधे प्रभावित नहीं है ,कोई हो हल्ला नहीं है |शांति पूर्वक सभी कार्य क़ानूनी दायरे में हो रहा है |केवल जनता को छोड़ कर बाकि सभी खुश हैं ,विकास हो रहा है |
चुना प्रतिनिधि प्रत्येक छड यह एहसास करने से नहीं चुकता कि यदि मैं न होता तो हैण्ड पम्प नहीं लगता ,गली का खडंजा नहीं बिछता ,बिजली का खम्भा नहीं लगता ,नाली नहीं बनती ,पुलिया नहीं बनती ——इत्यादि इत्यादि |जैसे यह उनके निजी पैसे से हो रहा है, जनता के ऊपर एहसान किया जा रहा है |नाली न बनवाते तो पानी गली में फैलता ,अब सफाई है |कितना बड़ा एहसान हो रहा है जनता पर और एहसान फरामोस जनता टैक्स में दिए पैसे का हिसाब अपने मालिक से मांग रही है कितना बड़ा कलयुग आ गया है |
माफिया तत्वों द्वारा अर्जित धन विदेशों में रखना एक सुरक्छित उपाय है |सरकार देश के नागरिकों को कुछ समय देकर कह सकती है कि देश के नागरिक विदेशों में जमा धन का व्योरा दे |अब मांग कि जा रही है तो तब तक उसका पता नहीं लगाया जायेगा जब तक बैलेंस शुन्य न हो जाय |फिर वाही आप धापी ,भाषण ,मीटिंग दौरा ,गिरफ्तारी ,मुक़दमा ,पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बाइज्जत बरी ,न्यायालय न चाहते हुए भी कुछ करने में असमर्थ और जनता उसी चक्र में पिसने के लिए बाध्य |
सभ्य समाज में जनता उस देश के नागरिक होते हैं |परन्तु भारतीय समाज में जनता ,जो शासक वर्ग में शामिल न हो ,धन संपत्ति से कमजोर हो , रोज कमाती हो रोज खाती हो ,कल का पता नहीं वह जनता है |कानून बनाने वालों को जनता लाइसेंस देती है (चुनती है )फिर वे जनता को “बनाते” हैं |पहले लाल पगड़ी वाला चौकीदार यदि गाँव में चला जाता था तो पूरा गाँव हिल जाता था ,गाँव वाले अपनी बेइज्जती महसूस करते थे ,अब तो पूरा का पूरा थाना पहुँच जा रहा है ,परन्तु कोई शर्म नहीं ,कोई डर नहीं ,कोई भय नहीं |भ्रष्टाचार की नदी ऊपर से निचे की ओर बहती है ,यदि रोकना है तो उपरी स्रोत को बंद करना होगा |ट्रांसफर ,पोस्टिंग ,नियुक्ति में यदि ऊपर स्तर से भ्रष्टाचार न हो तो प्रत्यक्छ भ्रष्टाचार स्वमेव ही रुक जायेगा | बस आज न्यायपालिका के भरोसे भारत की जनता बची है | यथा राजा तथा प्रजा |
ट्रेन का सफर भी बड़ा मजेदार होता है |टिकट कटाने से लेकर चढ़ने तक में ज्ञान की कितनी ब्रद्धि होती है यह भुक्त भोगी ही जानता है |तात्कालिक ज्ञान तो इतना विस्तृत हो जाता है कि मनुष्य पूर्ण मनुष्य बन जाता है |इस पर शोध होना चाहिए ,और आपको भी वो लम्बी लाइन में खड़ा होकर कभी कभार टिकट कटाना चाहिए ,ऐसे ही जैसे रिफ्रेशर कोर्स होते हैं कभी कभी | फिर देखिये कौवा ,बिल्ली ,गिद्ध, स्यार ,शेर, हाथी ,उल्लू ,गर्दभ सभी के मुख्य गुण स्वमेव आप में समाहित हो जायेंगे |किसी पाठशाला कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी | मैंने भी लाइन में खड़ा होकर टिकट कटवाया फिर ट्रेन में चढ़ने का प्रयास करके तीन बार गेट से बाहर हो गया |अब चढ़ने वालों की तकनीक का अध्ययन करके अन्दर घुस गया |चार पांच स्टेशन बिताने के बाद किनारे पर थोड़ी जगह मिली ,तत्काल मैं उसमें समां गया |हाथ पैर सीधा किया |कुछ देर पहले जिन दो सज्जन में चिख-चिख हो रही थी ,दोनों अब बगलगीर थे |तमाम चर्चाएँ हो रही थीं |मैंने भी कान को उनकी ओर लगाने का प्रयास किया |एक सज्जन बोल रहे थे ,वर्मा जी आज का अखबार पढ़ें हैं ,देखिये न देश में क्या क्या हो रहा है |वर्मा जी दार्शनिक मुद्रा में बोले ,यह सब एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़ है एक दुसरे को निचा दीखाने का यज्ञ है |कौन कितनी बड़ी आहुति देता है ,इसी पर बाज़ी निर्भर करेगी | वर्मा जी का दार्शिकाना चेहरा ,गमछे के नीचे कितना सुन्दर लग रहा था | पहले वाले सज्जन ने कहा राजा साहेब काफी दिनों के एकांत वास के बाद आज बोले हैं |चैनल वाले कैसे पीछे पीछे दौड़ रहे थे |वर्मा जी मुखर हुए |
भारतीय समाज अजूबों से भरा है |पहले ज्योतिषी ,नजूमी ,ओझा सोखा हुआ करते थे ,जो भविष्य बताते थे |चोरी हुए सामान का चोर बताते थे ,डाकिनी साकिनी की पहचान करते थे ,जिससे समाज में तमाम विसंगतियां लड़ाई झगड़े मारपीट तक हुए |अब वर्तमान समय में भी कुछ भविष्य वक्ता उत्पन्न हो गए हैं |जो समय समय पर नाग की तरह अपनी जहरीली वाणी का चमत्कार करते रहते हैं | उनमें राजा साहेब अव्वल हैं |किसी भी घटना के बारे में घटना होने के तुरंत बाद अपना ओझा ज्ञान प्रस्तुत करते रहते हैं |हम आप प्रलाप को सुनते रहते हैं ,जैसे पागल को लडके पत्थर मार रहें हो और वह जोर जोर से चिल्ला कर गाली दे रहा हो |सभ्य जनों को उस पर तरस आती है ,बच्चों को रोकता है ,फिर पागल को दुलराता है ,खाने को देता है ,क्यों की वह तो पागल है ,उसकी बात का बुरा क्या मानना !कुछ लोग बच्चों को शह देते हैं,उन्हें सिखाते हैं ,मार कर आना पिटा कर नहीं | बच्चे गली में मारपीट करते हैं ,फिर मोहल्ले में ,फिर —फिर —-| जब वही घर में करते हैं तो मनबढ़ का ख़िताब पाते हैं |यही हाल राजा साहेब का है |जब चाहें जहाँ चाहे इसकी टोपी उसके सर ,उसकी टोपी इसके सर करते रहते हैं |आगे देखिएगा ये अपने घर में भी उठा पटक करेंगे |वर्मा जी एक साँस में बोल गए |उन्होंने आगे जोड़ा कि भईये भारतीय राजनीति का रंग सूर्योदय ,सूर्यास्त के समय बदलते आकाश कि तरह पल -पल बदल रहा है ,परन्तु डर है कि यह लाल पीला, नीला की जगह पर कहीं एकदम काला न हो जाये | फिर उन सज्जन ने कहा ,बात तो आप ठीक कह रहें हैं परन्तु यह तो उनका काम है ,देश के नेता हैं ,वे तो बोलेंगे ही ,नहीं बोलेंगे तो लोग कहेंगे नेता कैसे ,टी.वि.से दूर हुए नहीं की राजनीति मरी नहीं |
मेरा स्टेशन आ रहा था | उतरने वाले अपना सामान समेट रहे थे |बैठने वाले अपने सामान की निगरानी कर रहे थे |मै भी उतरने के लिए रास्ता तलाश रहा था |वर्मा जी का साथ छोड़ने का मन नहीं कर रहा था ,ये तो रोज आतेजाते रहते है ,फिर कभी, साथ का इंतजार रहेगा ,फिर आपको भी शामिल करूँगा |नमस्कार |
इसी प्रकार का व्यवहार जब किसी समूह के साथ होता है तब इसमें जनता सीधे प्रभावित नहीं होती है | भारत के कुछ राज्यों में ट्रकों से माल ढोने के लिए वजन निर्धारित है परन्तु निर्धारित से अधिक वजन ढोया जा रहा है |सड़कों के निर्माण का एक मानक निर्धारित होता है ,परन्तु निर्धारित से अधिक वजन के कारण सड़कें टूट रही हैं गड्ढे हो रहे हैं आवागमन बाधित हो रहा है ,परन्तु दूसरी तरफ सड़कें बन रहीं हैं लोगों को रोजगार मिल रहा है ,सरकारी बजट आ रहा है ,मनरेगा का सदुपयोग हो रहा है |विकास का चक्र चल रहा है | या तो सभी सड़कें एक निश्चित मानक की हों या फिर सडकों को वजन के हिसाब से चिन्हित कर दिया जाय |
इसी प्रकार उच्च शिक्छा के छेत्र में मान्यता देने से लेकर एडमिशन ,फीस ,पदाई तक प्रत्येक स्तर पर क्या कहानी हो रही है यह भुक्त भोगी ही जानता है |संगठित न होने के कारण विरोध नहीं है | प्रत्येक इकाई आगे बदने की होड़ में दूसरे का अधिकार छिनने का प्रयास कर रही है ,परन्तु अंतिम स्थिति यह है कि वह अपना भी अधिकार खोती जा रही है |
यदि आपको कोई अवैध सामान भारत के किसी हिस्से में भेंजना हो तो निश्तिंत होकर भेंजिये मॉल सुरक्छित घर तक पहुंचेगा |द|म चोखा होना चाहिए |मॉल पहुँचाने वाला माफिया हैसियत के हिसाब से व्यवस्था कर देगा |माफिया कानून का पूरा ध्यान रखता है ,जिससे कहीं हो हल्ला न हो |बस आपको पैसे भर देने हैं |आप चाहें तोप का गोला, बन्दुक , कुछ भी माँगा ले सुरक्छित आपको मिल जायेगा ,कहीं आपका नाम भी नहीं होगा |इसमें आपका भला है ,रेलवे का भला है ,काली ,नीली, पिली, खाकी ,लाल सभी का भला है |यदि मॉल व्यवसायिक हुआ तो वह खुले बाजार में आएगा ,वह खुला बाजार ऐसा होगा जिसमें जाँच न हो सके |इस प्रकार व्यापारियों का एक समूह तैयार हो जायेगा ,उस समूह का अपना एक बाजार स्थापित हो जायेगा |इस प्रकार एक सामानांतर अर्थ व्यवस्था विकसित होनी प्रारंभ होकर स्थापित होजाएगी|
राज्य सरकार कहती है रेलवे केंद्र सरकार के अधिकार छेत्र में है ,रेलवे कहता है कि इस पर रोक से आमदनी कम हो जाएगी |कोई नहीं कहता कि बिना पुरे पते के मॉल बुक नहीं होगा ,बिना व्यक्ति के सत्यापन के माल नहीं दिया जायेगा |इस खरबों की चोरी को रोकने को कोई तत्पर नहीं है |हम देखते रहते है ,सोचते रहते है |परन्तु कोई विरोध नहीं क्योंकि यह राज्य के राजस्व का मामला है ,हमसे क्या मतलब |
कानून बनाने वाले जब जनता के हित का कानून न बनावें तो जनता क्या करे |
खनन कार्य में लगी हुई इकाइयों की २० साल पहले की स्थिति का आज की स्थिति से मूल्याङ्कन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि बीच का दौर काफी उथल -पुथल भरा रहा |वर्चस्व की लड़ाई में काफी जाने गईं ,धीरे धीरे स्थिरता आ रही है |और अब गिने चुने छत्रपों द्वारा छेत्रों का बंटवारा कर लिया गया है |यदि देखना है तो कोयला को ही ले ,लाइसेंस लेने ,खरीदने ,लोड करने ,ले आने ,बिक्री करने प्रत्येक स्तर पर बाकायदा दुकान खोले लोग बैठे हैं ,,जो आपकी मदद करेंगे |आप उनका शुल्क अदा करें लाभ में रहेंगे ,अन्यथा पूरी रैक में पत्थर लोड कर दिया जायेगा |इसी प्रकार प्रत्येक खनिज की कहानी है ,जो कि एक सशक्त माफिया की गिरफ्त में आ गया है |जिसकी अपनी एक निजी फौज है ,कारिंदे हैं जो पुरे व्यवसाय को देखते हैं| ,फिर छेत्रिय माफिया को उस छेत्र का कार्य दे देते हैं ,वह स्थानीय स्तर पर सछम स्थानीय माफिया को उस कार्य को दे देता है |अब पूरा व्यवसाय वैज्ञानिक ढंग से किया जा रहा है |केवल जनता को छोड़ कर बाकि सभी खुश हैं ,विकास हो रहा है |यदि कोई माफिया के कार्य में रूकावट बनता है तो उसे ऊपर से ६इन्च छोटा कर दिया जाता है |
मुख्य माफिया को अब क़ानूनी संरक्छान की जरुरत होती है , वह राजनीति की तरफ रुख करता है | तमाम पार्टियाँ मुंह बाये उसके इंतजार में खड़ी रहतीं हैं |जनशक्ति ,दबदबे तथा छेत्रिय एवं स्थानीय माफियाओं की मदद से वह सत्ता की तरफ बदता है | इस प्रकार सत्ता तक पहुँचने कि इच्छा पूरी होती है |ये माफिया एक दुसरे की भर पुर मदद करते हैं | सरकार ने लाइसेंस राज ख़त्म कर निचले स्तर से ले जाकर ऊपर के स्तर पर महिमा मंडित कर दिया |निचले स्तर के भर्ष्टाचार से जनता सीधे प्रभावित थी ,हो हल्ला लाजिमी था ,उच्च स्तर पर होने के कारण जनता सीधे प्रभावित नहीं है ,कोई हो हल्ला नहीं है |शांति पूर्वक सभी कार्य क़ानूनी दायरे में हो रहा है |केवल जनता को छोड़ कर बाकि सभी खुश हैं ,विकास हो रहा है |
चुना प्रतिनिधि प्रत्येक छड यह एहसास करने से नहीं चुकता कि यदि मैं न होता तो हैण्ड पम्प नहीं लगता ,गली का खडंजा नहीं बिछता ,बिजली का खम्भा नहीं लगता ,नाली नहीं बनती ,पुलिया नहीं बनती ——इत्यादि इत्यादि |जैसे यह उनके निजी पैसे से हो रहा है, जनता के ऊपर एहसान किया जा रहा है |नाली न बनवाते तो पानी गली में फैलता ,अब सफाई है |कितना बड़ा एहसान हो रहा है जनता पर और एहसान फरामोस जनता टैक्स में दिए पैसे का हिसाब अपने मालिक से मांग रही है कितना बड़ा कलयुग आ गया है |
माफिया तत्वों द्वारा अर्जित धन विदेशों में रखना एक सुरक्छित उपाय है |सरकार देश के नागरिकों को कुछ समय देकर कह सकती है कि देश के नागरिक विदेशों में जमा धन का व्योरा दे |अब मांग कि जा रही है तो तब तक उसका पता नहीं लगाया जायेगा जब तक बैलेंस शुन्य न हो जाय |फिर वाही आप धापी ,भाषण ,मीटिंग दौरा ,गिरफ्तारी ,मुक़दमा ,पर्याप्त सबूत न मिलने के कारण बाइज्जत बरी ,न्यायालय न चाहते हुए भी कुछ करने में असमर्थ और जनता उसी चक्र में पिसने के लिए बाध्य |
सभ्य समाज में जनता उस देश के नागरिक होते हैं |परन्तु भारतीय समाज में जनता ,जो शासक वर्ग में शामिल न हो ,धन संपत्ति से कमजोर हो , रोज कमाती हो रोज खाती हो ,कल का पता नहीं वह जनता है |कानून बनाने वालों को जनता लाइसेंस देती है (चुनती है )फिर वे जनता को “बनाते” हैं |पहले लाल पगड़ी वाला चौकीदार यदि गाँव में चला जाता था तो पूरा गाँव हिल जाता था ,गाँव वाले अपनी बेइज्जती महसूस करते थे ,अब तो पूरा का पूरा थाना पहुँच जा रहा है ,परन्तु कोई शर्म नहीं ,कोई डर नहीं ,कोई भय नहीं |भ्रष्टाचार की नदी ऊपर से निचे की ओर बहती है ,यदि रोकना है तो उपरी स्रोत को बंद करना होगा |ट्रांसफर ,पोस्टिंग ,नियुक्ति में यदि ऊपर स्तर से भ्रष्टाचार न हो तो प्रत्यक्छ भ्रष्टाचार स्वमेव ही रुक जायेगा | बस आज न्यायपालिका के भरोसे भारत की जनता बची है | यथा राजा तथा प्रजा |
ट्रेन का सफर भी बड़ा मजेदार होता है |टिकट कटाने से लेकर चढ़ने तक में ज्ञान की कितनी ब्रद्धि होती है यह भुक्त भोगी ही जानता है |तात्कालिक ज्ञान तो इतना विस्तृत हो जाता है कि मनुष्य पूर्ण मनुष्य बन जाता है |इस पर शोध होना चाहिए ,और आपको भी वो लम्बी लाइन में खड़ा होकर कभी कभार टिकट कटाना चाहिए ,ऐसे ही जैसे रिफ्रेशर कोर्स होते हैं कभी कभी | फिर देखिये कौवा ,बिल्ली ,गिद्ध, स्यार ,शेर, हाथी ,उल्लू ,गर्दभ सभी के मुख्य गुण स्वमेव आप में समाहित हो जायेंगे |किसी पाठशाला कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी | मैंने भी लाइन में खड़ा होकर टिकट कटवाया फिर ट्रेन में चढ़ने का प्रयास करके तीन बार गेट से बाहर हो गया |अब चढ़ने वालों की तकनीक का अध्ययन करके अन्दर घुस गया |चार पांच स्टेशन बिताने के बाद किनारे पर थोड़ी जगह मिली ,तत्काल मैं उसमें समां गया |हाथ पैर सीधा किया |कुछ देर पहले जिन दो सज्जन में चिख-चिख हो रही थी ,दोनों अब बगलगीर थे |तमाम चर्चाएँ हो रही थीं |मैंने भी कान को उनकी ओर लगाने का प्रयास किया |एक सज्जन बोल रहे थे ,वर्मा जी आज का अखबार पढ़ें हैं ,देखिये न देश में क्या क्या हो रहा है |वर्मा जी दार्शनिक मुद्रा में बोले ,यह सब एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़ है एक दुसरे को निचा दीखाने का यज्ञ है |कौन कितनी बड़ी आहुति देता है ,इसी पर बाज़ी निर्भर करेगी | वर्मा जी का दार्शिकाना चेहरा ,गमछे के नीचे कितना सुन्दर लग रहा था | पहले वाले सज्जन ने कहा राजा साहेब काफी दिनों के एकांत वास के बाद आज बोले हैं |चैनल वाले कैसे पीछे पीछे दौड़ रहे थे |वर्मा जी मुखर हुए |
भारतीय समाज अजूबों से भरा है |पहले ज्योतिषी ,नजूमी ,ओझा सोखा हुआ करते थे ,जो भविष्य बताते थे |चोरी हुए सामान का चोर बताते थे ,डाकिनी साकिनी की पहचान करते थे ,जिससे समाज में तमाम विसंगतियां लड़ाई झगड़े मारपीट तक हुए |अब वर्तमान समय में भी कुछ भविष्य वक्ता उत्पन्न हो गए हैं |जो समय समय पर नाग की तरह अपनी जहरीली वाणी का चमत्कार करते रहते हैं | उनमें राजा साहेब अव्वल हैं |किसी भी घटना के बारे में घटना होने के तुरंत बाद अपना ओझा ज्ञान प्रस्तुत करते रहते हैं |हम आप प्रलाप को सुनते रहते हैं ,जैसे पागल को लडके पत्थर मार रहें हो और वह जोर जोर से चिल्ला कर गाली दे रहा हो |सभ्य जनों को उस पर तरस आती है ,बच्चों को रोकता है ,फिर पागल को दुलराता है ,खाने को देता है ,क्यों की वह तो पागल है ,उसकी बात का बुरा क्या मानना !कुछ लोग बच्चों को शह देते हैं,उन्हें सिखाते हैं ,मार कर आना पिटा कर नहीं | बच्चे गली में मारपीट करते हैं ,फिर मोहल्ले में ,फिर —फिर —-| जब वही घर में करते हैं तो मनबढ़ का ख़िताब पाते हैं |यही हाल राजा साहेब का है |जब चाहें जहाँ चाहे इसकी टोपी उसके सर ,उसकी टोपी इसके सर करते रहते हैं |आगे देखिएगा ये अपने घर में भी उठा पटक करेंगे |वर्मा जी एक साँस में बोल गए |उन्होंने आगे जोड़ा कि भईये भारतीय राजनीति का रंग सूर्योदय ,सूर्यास्त के समय बदलते आकाश कि तरह पल -पल बदल रहा है ,परन्तु डर है कि यह लाल पीला, नीला की जगह पर कहीं एकदम काला न हो जाये | फिर उन सज्जन ने कहा ,बात तो आप ठीक कह रहें हैं परन्तु यह तो उनका काम है ,देश के नेता हैं ,वे तो बोलेंगे ही ,नहीं बोलेंगे तो लोग कहेंगे नेता कैसे ,टी.वि.से दूर हुए नहीं की राजनीति मरी नहीं |
मेरा स्टेशन आ रहा था | उतरने वाले अपना सामान समेट रहे थे |बैठने वाले अपने सामान की निगरानी कर रहे थे |मै भी उतरने के लिए रास्ता तलाश रहा था |वर्मा जी का साथ छोड़ने का मन नहीं कर रहा था ,ये तो रोज आतेजाते रहते है ,फिर कभी, साथ का इंतजार रहेगा ,फिर आपको भी शामिल करूँगा |नमस्कार |
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