युवाशक्ति राष्ट्र की अनूठी और अमिट बल हैं ,जिसके बढ़ते सकारात्मक कदम देश को विकास की ओर अग्रसर करते हैं और नकारात्मक कदम विनाश की ओर। इतिहास से लेकर आजतक और भारत से लेकर अमेरिका जैसे अन्य देशो की बात करे तो युवा शक्ति का अनेकों अनूठे उदहारण देखने को मिलेंगे। हाँ ,यह एक अलग बात हैं की हमारा आज का युवा समाज अपने पुरखों की बलिदान को भूल कर तीसरे – दर्जे के राष्ट्रों में शामिल हो गया हैं और अन्य पहले – दर्जे के देश अपने युवाओं व युवा – विचारो के साथ आज हम जैसे देशों के लिए पथप्रदर्शक का काम रहे हैं। यानि कि हमारा आज का समाज अपने विवेकानंद जैसे विवेकों – विचारों को बिसार कर संसाधनों का मोहताज बना हुआ हैं। संसाधनों की कमी से विकास विलम्ब हो सकता हैं परन्तु रूक नहीं सकता क्यूँकि कल तो हमारे पास कुछ भी नहीं था फिर भी हमारे युवा अन्य देशों में जा कर के अपने विचारों से लोहा मनवाए और आज हमारे पास बहुत कुछ होते हुए भी हम लाचार बने फिर रहे हैं। आज का लोकतांत्रिक – भारत अपने ७५ फ़ीसदी युवाओं के साथ भी खुद को आंतरिक – रूप से कमजोर महसूस कर रहा हैं क्यूंकि जिस लोकतंत्र को लेकर हम सबको समानता और आजादी दिए हुए हैं ,उस लोकतंत्र के ऊपर एक राजतंत्र का राज हो गया हैं और हम सब ख़ामोशी का लिबास ओढ़े यह चुपचाप बर्दाश्त कर रहे हैं। इस ख़ामोशी का वजह हैं की हम अपने समाज के प्रति जागरूक नहीं हैं ,स्वार्थ से भरे पड़े हैं और जागरूक लोगों को सहयोग नहीं कर रहे हैं अर्थात हम पथप्रदर्शक होने के बजाय मूकदर्शक बने फिर रहे हैं।
१६वी लोकसभा चुनाव का परिवर्तन भी युवाओं का ही देन हैं परन्तु अब तक कोई ठोस फैसला हमारे – पक्ष में नहीं हुआ हैं और हम हैं की चुपचाप देखे जा रहे हैं। युवाओं का उदहारण देकर जीतने वाले नेता हमलोगो को अब तक कौन – सा स्थान दिए हैं ? ऐसा कहा जाता हैं की युवा हमेशा जोश व जल्दबाजी से काम करते हैं ,जिसके वजह से काम सफल नहीं हो पता हैं लेकिन हम युवाओं ने कभी ऐसा सोंचा हैं की आजादी से लेकर अबतक तो हमारे राष्ट्र का काम काफी अनुभवशील नेताओं के नेतृतव में ही हुआ हैं फिर क्यों हम दाने – दाने को मोहताज हैं ? युवाओं को अपने कर्तव्यों को समझने की जरूरत हैं , ना की बेसमझे हुए कार्यों के पीछे घूमने की। आज जरुरत हैं की सभी युवा अपने चुप्पी को तोड़ कर आगे निकले और मूकदर्शक ना बने और विवेकानंद और भगत के जैसे मार्गदर्शक बने ताकि हम फिर से सुनहले भारत का स्वप्न पूरा कर सके। जब सारा देश सोया हुआ रहता है तब भी देश का युवा बाॅर्डर पर जाग कर हमारी रक्षा करते हैं और दुसरी तरफ वहीं युवा किसी गली – मुहल्ले या घर में दिनों रात मेहनत करते हैं ताकि खुद का व समाज के विकास में योगदान दे सकें. हम युवा-युवा बोलकर बुजुर्गों को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं लेकिन जो सच है उसे देखते हुए ना कहना भी अनुचित है.भारत युवाओं की खान हैं तो युवा भारत की जान हैं और यह इतिहास भी कहता आ रहा हैं कि युवा ही राष्ट्र की शक्ति है और हमारे कुशल – अनुभवी बुजुर्गो के मार्गदर्शन में इस शक्ति का प्रयोग किया जाता है.
बात चाहे विवेकानंद की हो या भगत सिंह की सबने मिलकर देश को देश को कम समय में काफी कुछ दिया लेकिन इनके पीछे भी तो परमहंस जैसे मार्गदर्शकों का अहम भूमिका है. चाहे पुराने समय के महात्मा गांधी हो या फिर आज के मिसाइल मेन डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम सबने युवा शक्ति को राष्ट्रशक्ति बताया है. लेकिन धीरे-धीरे हमारे समाज से गाँधी, कलाम, वाजपेयी जैसे नेतृत्वकर्ता विलय हो रहे हैं और अब हमें समय की चेतावनी को समझना ही समझदारी है और जो लोग समय व समाज के खिलाफ बगावत करते हैं उनके साथ भी वही रवैया तथा मापदंड का इस्तेमाल किया जाता है, तब समझ में आता है कि दर्द कितना दर्दनाक होता है. जिस समाज ने हमें जन्म दिया, पहचान दिलाई और रहने की जगह दी, उस समाज के ऊपर अत्याचार करना कितना हद तक सही है? इस तरह के बर्बरता की अनुमति तो प्रकृति भी नहीं बर्दाश्त कर सकती है तो फिर इंसान भला कैसे सहन कर सकता है. हाँ! लेकिन एक बात तो सही है कि इंसानियत के वजह से हम उग्र लोगों को सुधरने का अवसर देते हैं और कभी कभी मौन धारण कर लेते हैं परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि हम हमेशा यूँही हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए रहेंगे.
इतिहास यह बताता है कि जब जब विनाशकारी तत्व समाज पर भारी पड़ने लगा है, तब तब समय ने समाजिक तत्वों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाया है युवा पीढ़ी ने. समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के वजह से ही हम अपने आने वाले गाँधी, कलाम व विवेकानंद जैसे हीरो को खत्म कर रहे हैं. चाहे बात आत्महत्या की हो या फिर अपराध की हर किसी के पीछे भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार हैं और यह तब तक खत्म नहीं होगा जब तक कि हम खुद ही खुद को सुधारने के लिए तत्पर नहीं होंगे. ” मान ले तो हार ,ठान ले तो जीत “इन्हीं बातों को बोलते – सुनते हैं फिर क्यों हम विवश होकर क्षणिक मात्र में अनमोल जीवन को त्याग देते हैं। हर झूठ का हार सम्भव हैं और सत्य की जीत सुनिश्चित होती हैं ,यदि कार्य पूरे आत्मविश्वाश व लगन से किया जाये तब। आत्महत्या कर लेना समस्या का समाधान नहीं बल्कि विवश करने वालों का मनोबल बढ़ता हैं अर्थात हम जिन वयक्तियों के शोषण से तंग आकर ख़ुदकुशी कर लेते हैं तब उनकी शोषण करने की क्षमता तीव्र हो जाती हैं क्यूंकि अब तो कोई सबूत ही नहीं बचा जो की उन्हें सज़ा दिला सके।
आज के युवा संघर्षशील तो हैं पर उनके अंदर आत्मविश्वास ,आत्मबल और सहनशीलता की भारी कमी हैं और साथ ही साथ अन्य प्रतिभागियों के मनोबल को भी मार रहे हैं। जिस तरह से शिक्षित लोग आत्महत्या कर रहे हैं तो सरकार को भी शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए सही अनुपात में रोजगार के सुअवसर प्रदान करने चाहिये ताकि कोई रोजगार के लालच में किसी दलाल से धोखा खाकर आत्महत्या जैसे कदम ना उठायें और साथ – ही – साथ हम मानवों को भी अपनी मानवता की रक्षा के लिए खुद की कुण्ठित व स्वार्थ की मानसिकता व विचारधारा को त्याग कर एक नए आत्मविश्वास के साथ स्वस्थ्य विचारधारा को जगाने की जरुरत हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक को नकारा नहीं जा सकता है इसलिए जरूरी है कि सकारात्मक राजनीति की ताकी चाणक्य के विचारों का अपमान ना हो और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का केंद्र बनी हुई राजनीति का अंत हो. जात – पात – धर्म की राजनीति का शिकार हो रहे युवा वर्ग को यह सोंचने की जरूरत है कि वो सिर्फ मूकदर्शक बन कर तो नहीं रह गए हैं!
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