Sunday, May 15, 2016

कैसे बनाये अपनी पहचान ?

“जब आपकी पहचान आपके काम से ना होकर काम की पहचान आप से होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके पेशे/काम में आपकी एक अलग से पहचान है,
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जब आपके फैन / दोस्त आपका नाम फेसबुक पर ना ढूंढ़कर गूगल पर ढूंढने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके दोस्तों में आपकी एक अलग से पहचान है,
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जब आपकी पहचान आपके माँ-बाप से ना होकर उनकी पहचान आप से होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके परिवार में आपकी एक अलग से पहचान है,
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जब आपके किसी अच्छे काम के कारण आपके शहर / देश का नाम रोशन होने लग जाये,
तो ये समझिये कि आपके शहर और देश में आपकी एक अलग से पहचान है,
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और जब कभी इंसानियत की बात निकले और उनमें भी आपका जिक्र आने लग जाये,
तो ये समझिये कि ऊपर वाले के पास भी आपकी एक अलग से पहचान है।“
आज ज्यादातर लोग चाहते है कि उनकी एक अलग से पहचान हो, अपने ख़ास अंदाज या कार्य विशेष से वे लोगो में काफी लोकप्रिय हो और सब उन्हें अन्य लोगो की अपेक्षा ज्यादा आदर सत्कार देकर व्यवहार करें। लेकिन सवाल ये है कि ये पहचान वे किस तरह से बना सकते है। तो आज हम इस लेख द्वारा जानेंगे कि किस तरह से हम ज्यादा से ज्यादा अपनी एक अलग और अच्छी पहचान बना सकते है।
“महान मनुष्य की पहली पहचान उसकी नम्रता है|” आदमी को अपनी पहचान बनाने के लिए अपने अंदर कुछ गुणों को होना जरूरी है जिससे वो जल्द ही अपने मिलने वालों में प्रसिद्ध हो जाता है, किसी किसी में ये गुण जन्मजात होते है पर ज्यादातर हमें इन गुणों को विकसित करना पड़ता है या ये कह सकते है कि विद्यमान गुणों को हमें थोड़ा और चमकाना पड़ता है, जिससे हम अलग से अपनी एक पहचान बना सकें। । कहते है “अपनी पहचान बनाने के लिए अपनी प्रसिद्धी ना करके केवल अच्छे कार्य करना शुरू कीजिये, आपकी पहचान अपने आप बन जायेगी।” ये बात हमारे जीवन में काफी हद तक सही साबित होती है। अच्छे कार्यों के लिए अपनी पहचान बनाने के लिए ये अतिआवश्यक है कि हम हमेशा अच्छे कार्य करें, किसी अध्यापक ने एक छात्र से पूछा कि “बेटे, बड़े होकर क्या बनोगे”, तो उस ने सीधे और सरल शब्दों में जवाब दिया कि “एक अच्छा आदमी”, और वो तभी संभव है जब “आप कोई भी कार्य करते है उसे आप पूरी ईमानदारी से निभाएं।”
बहुत समय पहले की बात है एक शहर में भगवान् शिव का एक बहुत बड़ा मंदिर बनने जा रहा था। उसी शहर में रामलाल नामक एक बड़े दिल वाला राईस भी रहता था। मंदिर बनाने वाले उसके पास मंदिर के लिए चन्दा मांगने गए। उन्होंने उसे बताया कि “मंदिर के लिए ५०००/- रुपैये देने पर आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में मंदिर के एक थम्बे पर दानकर्ताओं के और नामों के साथ लिखा जाएगा,१०,०००/- रुपैये देने पर भगवान् की प्रतिमा के ऊपर लिखे जाने वाले मात्र ३ नामों में आपका नाम लिखा जाएगा पर २०,०००/- रुपैये देने पर तो मंदिर के नाम के नीचे केवल मात्र आपका नाम ही लिखा जाएगा। अब आपको दिल से जितना ज्यादा से ज्यादा दान देना चाहे उतना दे सकते है।
रामलाल ने उनकी सारी बातें सूनी और अंदर से २९,९९४/- रुपैये लाकर उन्हें दिए। मंदिर बनाने वाले बहुत खुश हुए लेकिन ३०,०००/- से ६ रुपैये कम का सबब नहीं समझ पाये और फिर उन्होंने रसीद काटने के लिए रामलाल से उसका पूरा नाम पूछा तो उसने बताया कि “मैं और हमारा पूरा परिवार शिव भगवान् का परम भक्त है। इसीलिए मुझे तुम ४,९९९/- की छे रसीदें काटकर दो, जो एक-एक रसीद मेरे माँ-बाप के नाम पर हो, एक रसीद मेरी पत्नी के नाम पर हो, एक रसीद मेरे नाम पर हो और एक-एक रसीद मेरे दोनों बच्चों के नाम पर हो।” ये बात सुनकर मंदिर बनाने वालों ने कहा, “अगर आप सबके लिए एक एक रुपैया ज्यादा दान देंगे तो सबका नाम स्वर्ण अक्षरों में दानकर्तों के साथ लिखा जाएगा।” उस पर रामलाल ने जवाब दिया कि “मैं दान तो खूब करना चाहता हूँ लेकिन उसका नाम करके किये गए दान को और अपने आप को शर्मिन्दा नहीं करना चाहता।”
हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में देखते है जहां कुछ लोग अपने कुछ ख़ास अंदाज या ख़ास कार्य के लिए पहचाने जाते है वहीँ कुछ लोग हमसे काफी बाद में आकर भी जल्द ही अपनी एक पहचान बना लेते है। आज हम वो ही जानने का प्रयास कि ऐसा क्या है जो उनको लोग ज्यादा पसंद करते है और हमें उतना नहीं।
पहचान बनाने का एक सीधा साधा और सरल तरीका है कि हम जल्द से जल्द परिपक्व (Mature) हो। अब कई जानो के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि एक इंसान को कब परिपक्व माना जाए। परिपक्वता के लिए कोई उम्र तय नहीं की जा सकती। कहते है “इंसान तब बड़ा नहीं होता जब वो बड़ी बड़ी बातें करने लग जाए, इंसान तब बड़ा होता है जब वो छोटी से छोटी बात को भी बिना कहे समझ जाए।” या ये कह सकते है कि “इंसान तब परिपक्व होता है जब वो अपने जिम्मेदारी को ना सिर्फ समझने लगे बल्कि उसे अच्छी तरह से निभाना सीख जाए।” आप अगर आपकी जिम्मेदारियां निभाते हुए आगे बढ़ते जाते है तो आपकी पहचान अपने आप बनती जाती है। “आज दुनिया में जितने लोगों ने भी अपनी अलग से एक पहचान बनायी है उसमें अगर एक सार्वजनिक (Common) बात है, तो वो है उनका अपने कार्यों के लिए खुद जवाबदार होना।” इसके अलावा कहते है कि केवल चरित्रवान व्यक्ति की ही पहचान बनती है और “चरित्रवान होने का मतलब है सच्चा, ईमानदार और विश्वासपात्र।”
आज सबसे पहले हम देखते है कि किस तरह से हम अपने कार्य को एक अलग ढ़ंग से करके अपनी अलग पहचान बना सकते है। अपने काम में पहचान बनाने के लिए जरूरी है औरों के मुकाबले हमें अपने काम में थोडा ज्यादा बेहतर होना चाहिए। आपने कई बार देखा होगा कि किसी दूकान पर आने वाले ग्राहक किसी विशेष सेल्समेन से ही ज्यादा प्रभावित होते है और अगली बार भी वो उनसे ही बात करके कोई वास्तु खरीदना चाहते है। मतलब साफ़ है कि उस सेल्समेन की एक पहचान बन चुकी है, ऐसा क्यों होता है, वजह साफ़ है कि वो सेल्समेन किसी ना किसी तरह से ग्राहक से, और सेल्समेनो के मुकाबले थोड़ा ज्यादा ध्यान देता है, जैसे वो उन्हें थोडा ज्यादा समय देता है, ज्यादा वैरायटी दिखाता है, ज्यादा प्रोडक्ट के बारे में जानता है,बात करने में/दिखने में औरों के मुकाबले अच्छा है या उस की कीमत में उन्हें थोड़ा डिस्काउंट दिला सकता है। इस तरह से देखा जाए तो वो औरों के मुकाबले किसी ना किसी वजह से थोडा बेहतर होता है। कहते है “आज क्रेता ही बाज़ार के राजा है”, अगर एक बार वो आपकी दूकान पर आते है तो उन्हें खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए और जहां तक हो सके उन्हें कभी नाराज नहीं करना चाहिए। कहते है अगर “दिल बड़ा रखो, दिमाग ठंडा रखो और वाणी मीठी रखो फिर कोई आपसे नाराज हो तो कहना।”
अगर पहचान बनानी है तो औरों के मुकाबले थोड़ा ज्यादा देना होगा, या थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी तभी आपकी पहचान बनेगी। हाल ही के दिनों में दिल्ली में “आप पार्टी” ने अपनी एक अलग से पहचान बनायी है, ये इसी का उदाहरण है क्योंकि वो औरों से थोड़ा ज्यादा और अलग करने का वादा करती है। लेकिन कहते है असली पहचान वायदों से नहीं कार्यों से बनती है या कह सकते है कि “बोलने में संयमी होना और कार्यों में अगर्णी होना श्रेष्ठ व्यक्तियों की पहचान है।” तो अगर हमेशा के लिए अपनी पहचान बनानी है तो काम ऐसा करो कि पहचान अपने आप बन जाए। पहचान बनाने के लिए ये जरूरी है कि “आप कहें वोही जो आप लिख के दे सकते हो और आप लिखे वोही जिसके नीचे आप अपने हस्ताक्षर कर सकते हो”, मतलब “आपका सोचना, कहना व करना सदा सम्मान होना चाहिए।” इसीलिए जो भी कहे, सोच समझ कर कहें जिससे बाद में आपको पछताना ना पड़े।
“एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ, बाहर शांत हूँ मगर अंदर तूफान रखता हूँ।
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ, दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
मुझे ना डालो हिंदू मुस्लिम के झगड़ों में, बुत पूजता हूँ और मुसल्लम ईमान रखता हूँ।
बंदों से क्या, रब से भी कुछ नहीं माँगा, मैं मुफलिसी में भी नवाबी शान रखता हूँ।
मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर, ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ।
भाषा, कौम, प्रान्तों में बटे इस मुल्क में, मैं फकत इक इंसान की पहचान रखता हूँ।
नफरत काट ना पाएगी मेरे हाथों को, मैं इक में गीता तो इक में कुरान रखता हूँ।”
आज सबसे पहले देखते है कि हम अपने काम में अपनी पहचान कैसे बना सकते है। काम में अपने पहचान बनाने के लिए जैसा मैंने पहले कहा कि “किसी भी क्षेत्र में पहचान बनाने के लिए अपने काम के प्रति जवाबदार होना तो सबसे जरूरी है ही लेकिन उसके बाद काम को थोड़ा और अच्छा / ज्यादा करके या थोड़ा पहले करके अपने मालिक/प्रबंधक की नजर में अपनी पहचान बना सकते है” लेकिन ये ध्यान रहें कि ये सब पहली कुछ दिनों में ही करें नहीं तो आपका मालिक या प्रबंधक अच्छा या जल्द काम करने पर भी विश्वास नहीं करेगा क्योंकि वो आपको जानता है कि साधारणतः आप ऐसा नहीं करते। क्योंकि कहते है “First impression is the last impression”, ये कहावत काफी हद तक सही भी है अपनी पहली छाप को मिटाना बहुत ही मुश्किल होता है इसीलिए जहां तक हो सके पहले दिन से अपनी पहचान बनाने की कोशिश करें, लेकिन अगर आप कुछ समय बाद भी अपने काम में पहचान बनाना चाहते है तो भी आप इन उपायों को अपनाकर कोशिश करें, कुछ समय जरूर लगेगा पर आपकी एक अलग से पहचान जरूर बनेगी।
बहुत पहले की बात है, शहर के एक बहुत बड़े साइकिल बनाने वाले के पास एक लड़का काम करने आया। लड़के का नाम सोनू था। दूकान के मालिक ने कहा कि “हमारे पास पहले से ही काम करने वाले मौजूद है जिसको हम २० रुपैया प्रतिदिन देकर काम करवाते है।” सोनू ने कहा “आप मुझे १० रुपैये दीजीयेगा मैं उनसे भी अच्छा काम करने की कोशिश करूंगा।” पहले तो दुकानदार ने उसे मना कर दिया फिर अपना फायदा देखते हुए और अपना काम बढ़ता हुआ दिखने के कारण उसने १० रुपैये प्रतिदिन पर उसे रख दिया।
लड़का रोज समय पर आता और दुगने जोशों खरोश से काम करता, और हमेशा सीखने को तत्पर रहता। अगर कोई टायर पंक्चर को ठीक करने दे जाता तो वो पंक्चर को ठीक करके साइकिल धोके साफ़ करके रखता। अगर किसी की ब्रेक ठीक करनी होती तो भी उसको अच्छी तरह से धोता और पहिये में तेल वगैरह लगाकर रखता। पहले-पहले तो और काम करने वाले उस पर हँसते थे और कहते थे कि ग्राहक जिस काम का पैसा देता है तुम उससे ज्यादा काम क्यों करते हो। लेकिन देखते ही देखते सब ग्राहक उससे खुश होने लगे और अपनी साइकिल उसी से ठीक कराने की सिफारिश करने लगे। इस तरह से उस दूकान पर उसकी एक अलग से पहचान बनने लगी। कुछ दिनों बाद सेठ ने भी उसे अपने आप उसकी तनख्वाह बढ़ाकर प्रतिदिन २० रुपैये कर दी क्योंकि वो उसके सब ग्राहकों का चहेता बन गया था। लेकिन फिर भी अपने काम के प्रति उसका जज्बा ज़रा सा भी कम नहीं हुआ।
कहते है “जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है,उसी तरह गुनी ही गुणवान की पहचान कर सकता है।” एक दिन एक ग्राहक उसे अपनी साइकिल का पंक्चर ठीक करने के लिए दे गया और जब लौटकर देखा तो उसने पाया कि उसकी पुरानी साइकिल एक दम से नयी चमचमाती साइकिल लग रही थी क्योंकि उस लकड़े ने उसे अच्छी तरह से धोया था और चलाने पर उसे साइकिल बहुत ही हल्की लगने लगी क्योंकि उसने उसमें जरूरतमंद जगहों पर तेल डाल दिया था। ये देखकर वो बहुत प्रसान हुआ। वो शहर का एक प्रसिद्ध व्यापारी था। उसने सोनू को अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया और प्रतिदिन ४० रुपैया देने को राजी हो गया। सोनू बहुत खुश हुआ और सेठ के साथ काम करने को खुशी खुशी राजी हो गया। उसने उस सेठ के साथ उसी जिज्ञासा और जज्बे से एक लम्बे समय तक काम किया और आगे चलकर अपना व्यापार शुरू किया और उसमें भी वो सफल रहा। और उसके साथ साइकिल की दूकान पर काम करने वाले कुछ लड़के अभी तक उसी साइकिल की दूकान पर काम करते थे और सोनू की देखादेखी और लड़कों ने भी अपना काम करने की सोची लेकिन वो सफल ना हो सके। किसी ने सही ही कहा है कि “जो एक अच्छा सेवक नहीं बन सकता है वो कभी एक अच्छा मालिक भी नहीं बन सकता।” अब एक गरीब लड़का एक सेठ बन गया था और ये सब हुआ था केवल थोड़ा ज्यादा काम करने से।
किसी भी कार्य में पहचान बनाने के लिए ये जरूरी है कि आप उस को दिल से पसंद करते हो। दुनिया में अपने काम में केवल उन्होंने ही पहचान बनायी है जो दिल से वो काम करना चाहते थे, जबर्दस्ती दिए हुए काम में आज तक कोई पहचान नहीं बना पाया। इसीलिए “कोई भी कार्य अपनी पूरी तैयारी और पूरे जोशो खरोश से (अपना मन लगाकर) करें।”
एक बहुत बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी के मालिक को अपनी कंपनी के लिए बहुत आदमियों की जरूरत थी। उन्होंने एक अखबार में उसके लिए विज्ञापन दिया। उसने उस विज्ञापन में साफ़ लिखा था कि किये जाने वाले कार्य में ज्यादा ज्ञान वाले को प्राथिमिकिता दी जायेगी लेकिन उससे भी ज्यादा प्राथिमिकता उसको दी जायेगी जो कम ज्ञान होने के बावजूद भी उस कार्य को अपने पुरे उत्साह (जोशो खरोश) से करने के लिए तैयार है। कहने का सीधा मतलब ये है कि आपके पास ज्ञान चाहे जितना ज्यादा है अगर उत्साह की कमी है तो आप किसी भी कार्य को जल्दी ही पूरा नहीं कर सकते। कहते है “उस काम का चयन कीजिये जिसे आप पसंद करते हों, फिर आप पूरी ज़िन्दगी एक दिन भी काम नहीं करंगे”
एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक साधु गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? साधु ने कहा- हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते- तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा।
साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। साधु ने पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने। चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के रूप में १०० रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है।
साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा- मंदिर। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है। मैं आनंद में हूं। कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं। बीच- बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया।
साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है। कोई काम को बोझ समझ रहा है और पूरा जीवन झुंझलाते और हाय- हाय करते बीत जाता है। लेकिन कोई काम को आनंद समझ कर जीवन का लुत्फ ले रहा है। जैसे कि तुम।
जब कार्य को दिल से किया जाता है तो परिणाम केवल और केवल अच्छा होता है और हमेशा अच्छे परिणाम से पहचान अपने आप बन जाती है।
कहते है अगर पहचान बनानी है तो अपने काम को इस तरह से करो कि वो दिए गए निश्चित समय से पहले ही ख़त्म हो जाए और दूसन के मुकाबले उसका परिणाम भी अच्छा हो।
बहुत समय पहले की बात है, आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर एक किसान रहता था। उसे अपने खेत में काम करने वालों की बड़ी ज़रुरत रहती थी लेकिन ऐसी खतरनाक जगह, जहाँ आये दिन आंधी –तूफ़ान आते रहते हों, कोई काम करने को तैयार नहीं होता था।
किसान ने एक दिन शहर के अखबार में इश्तहार दिया कि उसे खेत में काम करने वाले एक मजदूर की ज़रुरत है। किसान से मिलने कई लोग आये लेकिन जो भी उस जगह के बारे में सुनता, वो काम करने से मन कर देता। अंततः एक सामान्य कद का पतला-दुबला अधेड़ व्यक्ति किसान के पास पहुंचा। जिसका नाम रामेश्वर था जो अपने अच्छे काम के कारण पूरे गाँव में अपनी एक अलग पहचान रखता था।
किसान ने उससे पूछा, “क्या तुम इन परिस्थितयों में काम कर सकते हो ?”
“ह्म्म्म, बस जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ।” रामेश्वर ने उत्तर दिया।
किसान को उसका उत्तर थोडा अजीब लगा लेकिन चूँकि उसे कोई और काम करने वाला नहीं मिल रहा था और उसने लोगो द्वारा की गयी उसके काम की प्रशंसा को ध्यान में रखकर उसने रामेश्वर को काम पर रख लिया।
रामेश्वर अपनी प्रशंसा के अनुरूप मेहनती निकला, वह सुबह से शाम तक खेतों में मेहनत करता, किसान भी उससे काफी संतुष्ट था। कुछ ही दिन बीते थे कि एक रात अचानक ही जोर-जोर से हवा बहने लगी, किसान अपने अनुभव से समझ गया कि अब तूफ़ान आने वाला है। वह तेजी से उठा, हाथ में लालटेन ली और रामेश्वर के झोपड़े की तरफ दौड़ा।
“जल्दी उठो, देखते नहीं तूफ़ान आने वाला है, इससे पहले की सबकुछ तबाह हो जाए कटी फसलों को बाँध कर ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो।” किसान चीखा।
रामेश्वर बड़े आराम से पलटा और बोला, “नहीं जनाब, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ!!!।”
यह सुन किसान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया, जी में आया कि रामेश्वर को गोली मार दे, पर अभी वो आने वाले तूफ़ान से चीजों को बचाने के लिए भागा।
किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी, फसल की गांठें अच्छे से बंधी हुई थीं और तिरपाल से ढकी भी थी, उसके गाय -बैल सुरक्षित बंधे हुए थे और मुर्गियां भी अपने दडबों में थीं … बाड़े का दरवाज़ा भी मजबूती से बंधा हुआ था। सारी चीजें बिलकुल व्यवस्थित थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी। किसान अब मजदूर की ये बात कि “जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ ”…समझ चुका था, और अब वो भी चैन से सो सकता था।
मित्रों , हमारी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम भी रामेश्वर की तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि मुसीबत आने पर हम भी चैन से सो सकें। जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि। और पहचान बनाने के लिए तो दूरदर्शी होना बहुत ही जरूरी है। तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ।”
पहचान बनाये रखने के लिए अपने काम का मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। हमें हमेशा ये ध्यान रखना चाहिए कि जितना पैसा हमें काम करने का मिल रहा है क्या हम उतना काम भी कर रहे है या नहीं।
एक चौदह पंद्रह साल का लड़का एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक नंबर लगाता है और किसी के साथ बात करता है, बूथ मालिक उस लड़के की बात को ध्यान से सुनता रहता है ;
लड़का : किसी महिला से कहता है कि, मैंने बैंक से कुछ क़र्ज़ लिया है और मुझे उसका क़र्ज़ चुकाना है, इस कारण मुझे पैसों की बहुत जरुरत है, मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की घास काटने की नौकरी दे सकती हैं..? महिला : (दूसरी तरफ से) मेरे पास तो पहले से ही घास काटने वाला माली है..
लड़का : परन्तु मैं वह काम आपके माली से आधी तनख्वाह पर कर दूंगा..
महिला : तनख्वाह की बात ही नहीं है मैं अपने माली के काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ..
लड़का : (और निवेदन करते हुए) घास काटने के साथ साथ मैं आपके घर की साफ़ सफाई भी कर दूंगा वो भी बिना पैसे लिए..
महिला : धन्यवाद और ना करके फोन काट दिया..लड़का चेहरे पर विस्मित भाव लिए फोन रख देता है..
बूथ मालिक जो अब तक लड़के की सारी बातों को सुन चूका होता है, लड़के को अपने पास बुलाता है..
दुकानदार : बेटा मेरे को तेरा स्वभाव बहुत अच्छा लगा, मेरे को तेरा सकारात्मक बात करने का तरीका भी बहुत पसंद आया..अगर मैं तेरे को अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र दूं तो क्या तू मेरे यहाँ काम करेगा..??
लड़का : नहीं, धन्यवाद.
दुकानदार : पर तेरे को नौकरी की सख्त जरुरत है और तू नौकरी खोज भी रहा है.
लड़का : नहीं श्रीमान मुझे नौकरी की जरुरत नहीं है मैं तो नौकरी कर ही रहा हूँ, वो तो मैं अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था..मैं वही माली हूँ जिसकी बात अभी वो महिला फोन पर कर रही थी..!!!
और आज अंत में इतना ही कहना चाहूंगा कि:
“काम ऐसा करो कि पुरे जग में नाम हो जाए या फिर….
नाम ऐसा करो कि सुनते ही कोई भी काम हो जाए,
आये हो अगर इस दुनिया में तो करो कुछ ऐसा,
कि आपका नाम ही इंसानियत की पहचान बन जाए।”
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वह समय अब नहीं रहा, जब लड़कियां एक परिवार से दूसरे परिवार तक के सफर के लिए ही अपने आपको तैयार करती थीं। इसका मकसद कुल मिला कर यही रहता था कि क्या वे नए परिवार के अनुरूप खुद को ढालने की योग्यता रखती हैं या नहीं। अब यह दायरा बड़ा हो रहा है।  ऐसे में जरूरी हो जाता है अपनी क्षमताओं को आंक कर बेहतर भविष्य के लिए अपने आपको तैयार करें।
एक परिवार के सुरक्षित वातावरण में बड़ा होना, हमें सीखने के बहुत से मौके देता है। मगर बाहर की दुनिया कुछ अलग होती है। यहां की परिस्थितियां हमें आंकने को हमेशा तत्पर होती हैं। यहां हमारी पहचान हमारे व्यक्तित्व से होती है। जैसे हम हैं, जिस तरह हम अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं और जो कुछ हम करते हैं, उससे हमारी पहचान बनती है और उसी से अपनी जगह भी बनती है। यानी एक ज्यादा परिपक्व व्यक्तित्व हो, जो अपने लिए जीवन को आसान बनाना जानता हो। इसके लिए अपने को खुद जांचना-परखना जरूरी है।
हम आसपास के परिवेश के प्रति कितने सजग हैं, हमारी जानकारी कैसी है, हम विभिन्न विषयों पर क्या सोचते हैं और कितनी गहराई से उन पर बात कर सकते हैं। इसके अलावा यह भी कि हमारा बाहरी व्यक्तित्व कैसा है। हम अपने आपको किस तरह प्रस्तुत करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें कोई नकाब ओढ़ना है। इसका अर्थ यही है कि हम अपने आपको बेहतर व्यक्ति बनाने के लिए निरंतर काम करें।
व्यक्तित्व के विकास के लिएसमाज, राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, संगीत, साहित्य आदि विषयों में अपनी रुचि जगाएं। नियमित समाचार पत्र पढ़ें। खासतौर से संपादकीय पृष्ठ। इससे अपने विचार बनाने में भी मदद मिलेगी। यह भी जानने का मौका मिलेगा कि आपकी दिलचस्पी किस क्षेत्र में ज्यादा है।
अच्छी पुस्तकें पढ़ें। ये संवेदनशीलता विकसित करने में हमारी मदद करती हैं। कॉलेज की लाइब्रेरी के संपर्क में रहें और देखें कि नया क्या हो रहा है। अच्छी फिल्म व साहित्य पर विचार व संवाद के लिए कॉलेज में जो ग्रुप बनते हैं, उनमें हिस्सा लें। 
कंप्यूटर क्षेत्र में कोई डिप्लोमा और अगर शौक हो, तो कोई वाद्य या नृत्य-संगीत का कोई कोर्स, योग या स्वास्थ्य संबंधी या न्यूट्रिशन आदि का कोई कोर्स भी कर सकती हैं। कोई नई भाषा सीखने का प्रयास भी हो सकता है। इससे आपकी दुनिया बड़ी होगी, साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। ये कोर्स आपकी हॉबी भी हो सकते हैं और भविष्य में रोजगार के अवसर भी देते हैं।
बेहद जरूरी है अपनी संवाद क्षमताएं बेहतर करना। लोगों से मेल-जोल और संपर्क बढ़ाएं। संकोच हो, तो और भी जरूरी है कि आप अपनी इस कमी पर काम करें। कई बार तमाम योग्यताएं होते हुए भी हमें इसलिए कोई मौका गंवाना पड़ सकता है कि हम अपनी बात ठीक से नहीं रख पाए। आजकल इसके लिए अलग से कम्युनिकेशन स्किल्स के कोर्स भी हो रहे हैं।
अच्छे मित्र बनाएं, जो आपके इस बदलते जीवन में आपके साथ हों। अपने शहर में हो रही गतिविधियों पर नजर रखें और दिलचस्पी हो, तो उसमें शामिल भी हों।
व्यक्तित्व के बदलाव के लिए काम करने का मकसद कोई रोजगार तलाशना है या नौकरी ढूंढ़ना नहीं, बल्कि यह है कि आप यह  तय कर सकें कि वाकई जिंदगी से आपको चाहिए। और चुनौतियों का सामना करने के लिए आप कितनी तैयार हैं।
बेहतर व्यक्तित्व के लिएअपने विचार ज्यादा मंजी हुई भाषा में अभिव्यक्त करना सीखें। मगर विचारों की अभिव्यक्ति में संतुलन हो। उतनी ही जानकारी दूसरों को दें, जितनी जरूरत हो।
कोई दूसरा जब बात कर रहा हो, तो ध्यान से सुनें और उसकी बातों में दिलचस्पी लें। अपनी बात न शुरू कर दें।
समय के साथ-साथ अभिव्यक्ति के तरीके भी बदलते हैं, उनकी जानकारी भी रखें।
हाव-भाव ऐसे न हों कि हास्यास्पद बन जाएं।
बात करते हुए अपना आत्मविश्वास न खोएं।
गंभीर व नम्र बनें। अपनी गरिमा रखें।

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