अभी कल ही उ.प्र. में समाजवादी पार्टी बहुमत से जीत कर आई है . ये प्रदेश में सरकार बनायेंगे .सरकार किसी व्यक्ति विशेष , किसी पार्टी विशेष ,किसी जाति /धर्म विशेष की नहीं होती वरन यह पूरी जनता की होती है , भले ही चुनते समय किसी ने उन्हें वोट दिया हो या न दिया हो .वह प्रतिनिधित्व पूरे प्रान्त का करती है .नियम कानून पूरे प्रान्त के लोगों के लिए बनाती है .परन्तु चुनाव जीतते ही जैसी कानून की धज्जियाँ उड़ाई गई और उड़ाई जा रही हैं उससे प्रदेश की जनता सहम गई है , लोग तेल देख रहे हैं तेल की धार देख रहे हैं .कयास लगाया जा रहा है कि जिसका आगाज़ ऐसा है उसका अंजाम कैसा होगा ?एक बार इसी मद ने उनसे सत्ता छिनी थी .सिपहसालारों ने अलग -अलग क्षेत्रों में अपना अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था . इतने दिन तक अलाद्दीन के जिन्न की तरह ये बोतल में बंद थे . अब ढक्कन खुलने का समय आ गया है .लोग बाग़ हवा और हवा का रुख देख रहे हैं . व्यापारी वर्ग सहमा हुआ है . प्रदेश में जो कुछ भी किसी तरह बचा हुआ है आज वह , यदि यही हालत रही तो , पलायन की मुद्रा में होगा .
यह चुनाव आयोग की कृपा है ,उसकी दृढ इच्छा शक्ति है कि चुनाव सकुशल संपन्न हो गया . इसके लिए सभी पार्टियों को चुनाव आयोग का आभारी होना चाहिए ,धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए तथा जनता का भी आभारी होना चाहिए कि चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया . यह शांतिपूर्वक सत्ता परिवर्तन का एक बेहतरीन नमूना है .पूरा विश्व हमारे प्रजातंत्र को निहार रहा है .कितना भव्य परिवर्तन है .कुछ अति उत्साही , मद में चूर प्रजातंत्र को होली का हुड़दंग समझ बैठे हैं . जो मन आये कह दिया , कर दिया फिर बुरा न मानो होली है . बात ख़त्म .
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हर क्षेत्र में माफिया तत्त्व रक्त- बीज की तरह तैयार हो रहा है .इनकी न कोई जाति होती है ,न कोई विचार होता है , न कोई धर्म होता है .इनका तो धर्म केवल पैसा है .किसी भी तरह से , कैसे भी प्राप्त करना इनका उद्देश्य है . इनसे किसी पार्टी ,किसी विचार , किसी सिद्धांत , किसी समाज से कोई लेना देना नहीं होता है .ये सत्ता के चुम्बक में आश्चर्य जनक रूप से लिपट जाते हैं यह सत्ता दल के ऊपर है कि वह जानबूझ कर या मजबूरीवश इनका सहयोगी बने . आज की तारीख में उ.प्र. में सता दल की इनके साथ जाने की मजबूरी नहीं है , फिर भी यदि ये पनपते हैं तो यह इच्छा शक्ति की कमी का परिणाम होगा .कुछ दिनों से जो कृत्य सामने आ रहे हैं ,वे किस छिपी मानसिकता को उद्घाटित कर रहे हैं . महाभारत में पांडवों की विजय के पश्चात कैसे विजेता लोगों का नाश हुआ था , यह कथा सर्व विदित है , कहीं वही स्थिति तो नहीं उत्पन्न हो रही है ?जीत की खुमारी या कहें अप्रत्याशित जीत के समय बहुत संयम की जरुरत होती है . यह सही है कि यह विरलों में होती है , परन्तु वक्त सब सिखा देता है .पूरा उ.प्र. देख रहा है . यह लोगों को याद रखना होगा कि पहले जनता के मुख में जबान नहीं थी , लोग देख रहे थे ,बर्दाश्त कर रहे थे . अब हालात बदल रहे हैं . बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे ने प्रतिरोध कि शक्ति दे दी है . पूर्ण बहुमत ही अब पाँच साल की गारंटी नहीं है .पैमाना बदल चुका है . पूर्ण सुशाशन ही अब पांच साल कि गारंटी होगा .
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अपने एवं अपने लोगों को उपकृत करने के लिए नियमों को तोड़ मरोड़ कर जिस प्रकार ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्ट किया गया , उसका ताज़ा उदाहरण अभी अभी बीता है .कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश में खनन माफिया एक जुट होकर विरोध करने वाले प्रशासन को ही नष्ट करने का उपक्रम कर रहे हैं उ. प्र. में जब कोई बड़ा हादसा होगा तब सरकारें जागेंगी , अभी तो सभी काम नियम कायदे से हो रहा है .सोनभद्र में कई मजदूर दब गए , छोटा सा समाचार आया वह भी चुनाव के शोर में दब कर रह गया .यहाँ की हवा में खनन में बंदरबांट के स्वर तैर रहे हैं . क्या आने वाली सरकार इसकी जांच करा पाएगी या स्वयं उसमें लिप्त हो जाएगी , यह देखना बहुत दिलचस्प होगा .चूँकि माफिया का सीधा सम्बन्ध जनता से नहीं होता . अतः जब रोकने वाली मशीनरी में कोई लोहेदार आता है तो मामला उजागर होता है ,और उसकी गर्दन पर तलवार लटकती रहती है , चाहे वह ट्रांसफर के रूप में हो या माफिया की गोली के रूप में .
ट्रकों में माल ढोने की एक निश्चित सीमा तय है परन्तु यह सभी जानते हैं कि कार्य इसके विपरीत हो रहा है ,तो इसका सीधा अर्थ हुआ कि कोई भी सरकार चाहे वह किसी भी पार्टी की रही हो रोकने में सक्षम नहीं है या फिर बनने वाली सरकारें इन्हीं में लिप्त हो जा रही हैं तो फिर इस नियम का पालन कौन कराएगा ?जिस नियम का पालन सरकार करा नहीं पा रही है तो संविधान की बेइज्जती कराने से अच्छा है कि वह नियम ही समाप्त कर दिया जाय . दिखावे की क्या जरुरत है ?इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है . निर्धारित वजन से दुगुना ,तिगुना माल लेकर जब ट्रकें चलेगीं तब सड़कें टूटेगी ही . उसे बनवाने हेतु टेंडर दिया जाएगा .गिट्टी, बालू ,कोलतार की मांग बढ़ेगी ,व्यापार बढेगा भले ही वह कागज़ पर ही हो .टायर ट्यूब खराब होंगे ,उनकी बिक्री बढ़ेगी .ट्रकें खराब होंगी ,उससे पार्ट्स की बिक्री बढ़ेगी . देखिये तो सही एक सड़क खराब होने से व्यापार किस गति से बढ़ रहा है . वाहन की रफ्तार कम होगी , दुर्घटनाएं कम होगी ,फिर भी लोगों को तकलीफ हो रही है कि सड़कें टूट रही है .
इसी तरह जनता तो टैक्स दे देती है परन्तु वसूलने वाले नहीं देते .फिर टैक्स समाप्त क्यों नहीं कर दिया जाता ?यदि नियम लागू ही करना है तो सख्ती से लागू किया जाय .जनता के दिए पैसों को राजकोष में जमा कराने की जिम्मेदारी सरकार की है .क्या वह इसे कर पाएगी ?यह भविष्य ही बताएगा .इसी तरह और भी बहुत से क्षेत्र हैं जिनमे काम किया जाना जरुरी है .
अभी तो सरकार अधिकारियों को भ्रष्ट कह कर उनका थोक में तबादला करेगी .तबादला उद्योग परवान चढ़ेगा . सरकार यदि स्वच्छ प्रशासन चाहती है तो अच्छी पोस्टिंग कही जाने वाली जगहों पर स्वच्छ छवि के लोगों को पदासीन किया जाना ही उचित होगा .ट्रांसफर पोस्टिंग में नेताओ की सिफारिस को अवैध आचरण घोषित कर दिया जाय .इसी से सरकार की छवि भी अच्छी होगी ,अन्यथा लीक से हट कर काम करने वाले नरेंद्र कुमार जैसे अधिकारी रोज मारे जाते रहेगें .
पुराने जमाने में राजा जनता के वास्तविक हालात जानने के लिए भेष बदल कर निकला करते थे . जनता में घुल -मिल कर उनके दुःख -दर्द को जानने का प्रयास करते थे .अब वे हालात नहीं हैं और नहीं वैसा समय ही है .होने वाले मुख्यमंत्री को केवल अपने चाटुकारों और दरबारियों के भरोसे ही नहीं रहना चाहिए . अब संवाद का सबसे अच्छा साधन इलेक्ट्रानिक मीडिया हो गया है .कम से कम प्रत्येक सप्ताह अपनी सरकार की नीतियों , उपलब्धियों का विवरण जे जे जैसे किसी भी मंच पर देना चाहिए , जिससे जनता अपना दुःख -दर्द सीधे उनसे बयान कर सके .उन्हें भी पता चल सके कि उनके प्रतिनिधि जनता के साथ क्या- क्या कर रहे हैं . पिछली सरकार की तरह संवाद हीनता की स्थिति न बनी रहे .
यह चुनाव आयोग की कृपा है ,उसकी दृढ इच्छा शक्ति है कि चुनाव सकुशल संपन्न हो गया . इसके लिए सभी पार्टियों को चुनाव आयोग का आभारी होना चाहिए ,धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए तथा जनता का भी आभारी होना चाहिए कि चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया . यह शांतिपूर्वक सत्ता परिवर्तन का एक बेहतरीन नमूना है .पूरा विश्व हमारे प्रजातंत्र को निहार रहा है .कितना भव्य परिवर्तन है .कुछ अति उत्साही , मद में चूर प्रजातंत्र को होली का हुड़दंग समझ बैठे हैं . जो मन आये कह दिया , कर दिया फिर बुरा न मानो होली है . बात ख़त्म .
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हर क्षेत्र में माफिया तत्त्व रक्त- बीज की तरह तैयार हो रहा है .इनकी न कोई जाति होती है ,न कोई विचार होता है , न कोई धर्म होता है .इनका तो धर्म केवल पैसा है .किसी भी तरह से , कैसे भी प्राप्त करना इनका उद्देश्य है . इनसे किसी पार्टी ,किसी विचार , किसी सिद्धांत , किसी समाज से कोई लेना देना नहीं होता है .ये सत्ता के चुम्बक में आश्चर्य जनक रूप से लिपट जाते हैं यह सत्ता दल के ऊपर है कि वह जानबूझ कर या मजबूरीवश इनका सहयोगी बने . आज की तारीख में उ.प्र. में सता दल की इनके साथ जाने की मजबूरी नहीं है , फिर भी यदि ये पनपते हैं तो यह इच्छा शक्ति की कमी का परिणाम होगा .कुछ दिनों से जो कृत्य सामने आ रहे हैं ,वे किस छिपी मानसिकता को उद्घाटित कर रहे हैं . महाभारत में पांडवों की विजय के पश्चात कैसे विजेता लोगों का नाश हुआ था , यह कथा सर्व विदित है , कहीं वही स्थिति तो नहीं उत्पन्न हो रही है ?जीत की खुमारी या कहें अप्रत्याशित जीत के समय बहुत संयम की जरुरत होती है . यह सही है कि यह विरलों में होती है , परन्तु वक्त सब सिखा देता है .पूरा उ.प्र. देख रहा है . यह लोगों को याद रखना होगा कि पहले जनता के मुख में जबान नहीं थी , लोग देख रहे थे ,बर्दाश्त कर रहे थे . अब हालात बदल रहे हैं . बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे ने प्रतिरोध कि शक्ति दे दी है . पूर्ण बहुमत ही अब पाँच साल की गारंटी नहीं है .पैमाना बदल चुका है . पूर्ण सुशाशन ही अब पांच साल कि गारंटी होगा .
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अपने एवं अपने लोगों को उपकृत करने के लिए नियमों को तोड़ मरोड़ कर जिस प्रकार ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्ट किया गया , उसका ताज़ा उदाहरण अभी अभी बीता है .कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश में खनन माफिया एक जुट होकर विरोध करने वाले प्रशासन को ही नष्ट करने का उपक्रम कर रहे हैं उ. प्र. में जब कोई बड़ा हादसा होगा तब सरकारें जागेंगी , अभी तो सभी काम नियम कायदे से हो रहा है .सोनभद्र में कई मजदूर दब गए , छोटा सा समाचार आया वह भी चुनाव के शोर में दब कर रह गया .यहाँ की हवा में खनन में बंदरबांट के स्वर तैर रहे हैं . क्या आने वाली सरकार इसकी जांच करा पाएगी या स्वयं उसमें लिप्त हो जाएगी , यह देखना बहुत दिलचस्प होगा .चूँकि माफिया का सीधा सम्बन्ध जनता से नहीं होता . अतः जब रोकने वाली मशीनरी में कोई लोहेदार आता है तो मामला उजागर होता है ,और उसकी गर्दन पर तलवार लटकती रहती है , चाहे वह ट्रांसफर के रूप में हो या माफिया की गोली के रूप में .
ट्रकों में माल ढोने की एक निश्चित सीमा तय है परन्तु यह सभी जानते हैं कि कार्य इसके विपरीत हो रहा है ,तो इसका सीधा अर्थ हुआ कि कोई भी सरकार चाहे वह किसी भी पार्टी की रही हो रोकने में सक्षम नहीं है या फिर बनने वाली सरकारें इन्हीं में लिप्त हो जा रही हैं तो फिर इस नियम का पालन कौन कराएगा ?जिस नियम का पालन सरकार करा नहीं पा रही है तो संविधान की बेइज्जती कराने से अच्छा है कि वह नियम ही समाप्त कर दिया जाय . दिखावे की क्या जरुरत है ?इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है . निर्धारित वजन से दुगुना ,तिगुना माल लेकर जब ट्रकें चलेगीं तब सड़कें टूटेगी ही . उसे बनवाने हेतु टेंडर दिया जाएगा .गिट्टी, बालू ,कोलतार की मांग बढ़ेगी ,व्यापार बढेगा भले ही वह कागज़ पर ही हो .टायर ट्यूब खराब होंगे ,उनकी बिक्री बढ़ेगी .ट्रकें खराब होंगी ,उससे पार्ट्स की बिक्री बढ़ेगी . देखिये तो सही एक सड़क खराब होने से व्यापार किस गति से बढ़ रहा है . वाहन की रफ्तार कम होगी , दुर्घटनाएं कम होगी ,फिर भी लोगों को तकलीफ हो रही है कि सड़कें टूट रही है .
इसी तरह जनता तो टैक्स दे देती है परन्तु वसूलने वाले नहीं देते .फिर टैक्स समाप्त क्यों नहीं कर दिया जाता ?यदि नियम लागू ही करना है तो सख्ती से लागू किया जाय .जनता के दिए पैसों को राजकोष में जमा कराने की जिम्मेदारी सरकार की है .क्या वह इसे कर पाएगी ?यह भविष्य ही बताएगा .इसी तरह और भी बहुत से क्षेत्र हैं जिनमे काम किया जाना जरुरी है .
अभी तो सरकार अधिकारियों को भ्रष्ट कह कर उनका थोक में तबादला करेगी .तबादला उद्योग परवान चढ़ेगा . सरकार यदि स्वच्छ प्रशासन चाहती है तो अच्छी पोस्टिंग कही जाने वाली जगहों पर स्वच्छ छवि के लोगों को पदासीन किया जाना ही उचित होगा .ट्रांसफर पोस्टिंग में नेताओ की सिफारिस को अवैध आचरण घोषित कर दिया जाय .इसी से सरकार की छवि भी अच्छी होगी ,अन्यथा लीक से हट कर काम करने वाले नरेंद्र कुमार जैसे अधिकारी रोज मारे जाते रहेगें .
पुराने जमाने में राजा जनता के वास्तविक हालात जानने के लिए भेष बदल कर निकला करते थे . जनता में घुल -मिल कर उनके दुःख -दर्द को जानने का प्रयास करते थे .अब वे हालात नहीं हैं और नहीं वैसा समय ही है .होने वाले मुख्यमंत्री को केवल अपने चाटुकारों और दरबारियों के भरोसे ही नहीं रहना चाहिए . अब संवाद का सबसे अच्छा साधन इलेक्ट्रानिक मीडिया हो गया है .कम से कम प्रत्येक सप्ताह अपनी सरकार की नीतियों , उपलब्धियों का विवरण जे जे जैसे किसी भी मंच पर देना चाहिए , जिससे जनता अपना दुःख -दर्द सीधे उनसे बयान कर सके .उन्हें भी पता चल सके कि उनके प्रतिनिधि जनता के साथ क्या- क्या कर रहे हैं . पिछली सरकार की तरह संवाद हीनता की स्थिति न बनी रहे .
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