Thursday, May 5, 2016

सन्देश

8 अगस्त 1992 को गाजियाबाद में प्रथम विवाह योग्य युवक-युवती सम्मलेन आयोजित किया गया| इसमें केवल 200-250 प्रत्याशियों ने ही भाग लिया और यह उत्तर प्रदेश का प्रथम वैवाहिक वैश्य सम्मलेन था| इससे पूर्व परिचय सम्मलेन के नाम से कोई परिचित भी नहीं था| इस परिचय सम्मलेन की सफलता से उत्साहित होकर समिति ने प्रत्येक वर्ष परिचय सम्मलेन आयोजित करने का बीड़ा उठाया| प्रारंभ में थोड़ी असुविधाएं होने के बाबजूद भी शहर के प्रतिष्ठित लोग परिचय सम्मलेन में जुड़ते चले गए और समाज के अन्य वर्गों ने भी वैश्य समाज के परिचय सम्मलेन को सफल होते देख अपने-२ समाजों का परिचय सम्मलेन आयोजित करने शुरू कर दिए| वर्तमान में गाजियाबाद में कोई ऐसा समाज शेष नहीं है जिसने अपने समाज का स्वतंत्र रूप से परिचय सम्मलेन आयोजित न किया हो| उदहारण के तौर पर ब्रह्मण समाज, त्यागी समाज, पंजाबी समाज के प्रत्येक वर्ष परिचय सम्मलेन आयोजित हो रहे हैं| 
   इन समाजों द्वारा लगभग 8वर्ष से लगातार निरंतर परिचय सम्मलेन आयोजित किये जा रहे हैं इनके अतिरिक्त यादव समाज, जाट समाज, दलित समाज, सक्सेना समाज, आदि भी परिचय सम्मलेन आयोजित करा चुके हैं| कहने का तात्पर्य यह है कि जो परिचय सम्मलेन आयोजित करने की प्रथा वैश्य समाज ने प्रारम्भ की थी वह सभी समाजों द्वारा उत्साह के साथ अपनायी जा रही है| 
   वैश्य सेवा समिति द्वारा अबतक लगभग 7 हजार से अधिक शादियाँ तय कराई जा चुकीं हैं| सामूहिक विवाह के माध्यम से 400 से अधिक शादियाँ संस्था द्वारा करायी जा चुकी हैं | संस्था के चैयरमैन वी. के. अग्रवाल का दावा है कि उनके द्वारा आयोजित 450 शादियों मैं से किसी एक मैं भी ना तो देश के किसी भी न्यायलय में मुकदमा लंबित है, किसी भी दंपत्ति का ना कोई विवाद है और ना कोई तलक हुआ है | इसका कारण वह समाज के बीच हो रही शादी को देते हुए बताते हैं कि जो शादी समाज के बीच में होती है उसके विरुद्ध कोई भी व्यक्ति/परिवार विवाद पैदा करने में अपने आप को आगे नही ला पाता है क्योंकि समाज की शक्ति सर्वोपरि है| 
सतत मार्गदर्शन का विनम्र आग्रह
बंधुओ, 
       1992 से परिचय-सम्मलेन आयोजित करते-करते यह इतना बड़ा कार्य बहुत सरल-सा लगने लगा है| इसका मुख्य कारण है कि मेरे साथ अत्यंत मजबूत टीम के रूप में मेरे अनन्य सहयोगी सदैव मेरे कंधे से कन्धा मिलाकर चलने हेतु तत्पर रहते हैं| मुझे गर्व है कि मेरे साथ मुरारीलाल गुप्ता जो बीमारी कि परवाह न करके समस्त दौरे, कार्यालय निर्माण कार्य व् भीषण गर्मी में कार्यालय पर बैठकर कार्यालय संचालन का दायित्व बड़ी सहजता से पूर्ण करते हैं| हरीश मोहन गर्ग धन संग्रह करने व् उसका व्यवस्थित हिसाब-किताब रखना तथा मेरे मनोबल को सदैव द्रढ रखने हेतु मेरे परम सहयोगी हैं| इसी तरह अनिल अशीम, डी. सी. बंसल, विनय बंसल, यू. एस. गर्ग, अरुण गुप्ता, रामगोपाल गर्ग, सौरभ जायसवाल, सुनील गुप्ता (पूर्व पार्षद), योगेश गोयल (न्यू वस्त्रलोक), मुकेश गोयल, वी, के. गुप्ता, संदीप गुप्ता, डॉ. नीरज गर्ग, श्रीदत्त शर्मा एवं दुर्गेश शर्मा इसे नाम हैं जिन्होंने मेरे कार्य को अपने कंधों पर लेकर मुझे परिचय-सम्मलेन कि सफलता के प्रति चिंतामुक्त रखा|
   इस वर्ष मैं अति उत्साहित हूँ कि मुझे कुछ नए सहयोगी मिले| जिनमे प्रमुख रूप से मुकेश तायल, गोपाल माहेश्वरी, अनुज मित्तल, आशुतोष गुप्ता (पत्रकार), अभिषेक गर्ग जैसे सहयोगी हैं जिन्होंने तन-मन-धन से सहयोग देकर मेरे उत्साह में उर्जा का संचार किया है | इस वर्ष श्री वैश्य सेवा समिति के नाम से संस्था को पंजीकृत कराना तथा दादरी में संस्था की प्रथम शाखा खोलना एक उपलब्धि रही है | दादरी शाखा के महामंत्री विजय गोयल के साथ युवा व् उत्साही समाजसेवियों ने दादरी से 20 पंजीकरण कराकर अपनी निष्ठाओ का परिचय दिया है |
   परिचय-सम्मलेन-2011 में जहाँ कुछ पुराने सहियोगियों ने इस यज्ञ को महत्वहीन समझते हुए दुरी बनाई वहीँ कुछ ऐसे समाजसेवियों का सानिध्य भी मुझे मिला जिन्होंने इस दुष्कर परिस्थिति में संकटमोचक की भूमिका निभाई| इस हेतु मैं श्री नरेश गर्ग (एन. के. जी. इन्फ्रा.) श्री अरुण गर्ग (कविनगर), श्री वेदप्रकाश गर्ग (महामंत्री गौशाला) श्री विजय जिंदल (सी. एम. डी. एस. वी. पी. ग्रुप), श्री विपिन जी (चैयरमैन गुडलक स्टील) एवं श्री महेश मित्तल (दादरी वाले) जैसे महानुभावों को अपना आभार ज्ञापित करता हूँ |
   श्री नरेश गर्ग (पन्नालाल श्यामलाल) ने वास्तव में अपने पद को सार्थक करते हुए चैयरमैन की भूमिका निभाई है | कई साथियों के किनारा कर लेने पर मुझे कई बार ऐसा लगा कि श्री नरेश गर्ग अगर विशेष सहयोग न देते तो शायद यह कार्यक्रम अपनी पारंपरिक भव्यता के साथ संपन्न नही होता |
   मैं यह पुरे मन से स्वीकार करता हूँ कि अगर इतने सारे सहयोगियों का सहयोग न मिला होता तो मात्र तीन माह की अवधि में परिचय-सम्मलेन का सफल होना किशी भी प्रकार संभव नही था|
   मैं उन सभी सच्चे मित्रों का ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ जो समय-समय पर मेरी आलोचनों करके मुझे संकेत करते रहते हैं और सचेत भी करते हैं कि मैं कोई गलत कार्य न कर बैठूँ| क्योंकि मेरा मानना है कि"निंदक नियरे रखिये, आंगन-कुटी छ्वाये"|
   मैं ऐसे महानुभावों का भी ह्रदय से आभारी हूँ जो एक और तो परिचय-सम्मलेन का महत्वहीन, खर्चीला बताकर हमारी आलोचना करते हैं, तो दूसरी और ऐसे ही आयोजन करते भी हैं तथा करने हेतु प्रयासरत भी रहते हैं| क्योंकि वह भी हमारा ही कार्य कर रहे हैं इस हेतु मेरे विशेष धन्यवाद के पात्र हैं|
   मैं अपने छोटे से परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रति क्षमाप्रार्थी हूँ जिनका समय चुराकर मैं परिचय-सम्मलेन अथवा अन्य सामाजिक कार्यों में लगा रहता हूँ| इस अपराधबोध से ग्रस्त मैं, अपनी पत्नी शशि, पुत्र अंकुर-अंकित के साथ अपनी पुत्रवधू शालिनी जो अभी नवविवाहिता ही है के प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित करता हूँ| निःसंदेह इन सभी ने मुझे मेरे परिवार-प्रमुख होने के सम्मान को महत्व देते हुए मुझे मेरे दायित्वों से मुक्त रखा है| इसी कारण मैं समाजसेवा के स्वप्न को साकार कर पाया हूँ |
   परिचय-सम्मेलनों के आयोजनों से समाज में नया जुडाव आ रहा है| भ्रांतियाँ दूर हो रही हैं| अतः इन कार्यक्रमों की सार्थकता को समझाते हुए मैं आप सभी से यही निवेदन करता हूँ कि प्रतिवर्ष कन्याओं की गिरती हुई संख्या हमारे सामाजिक संतुलन को एक खतरनाक संकेत प्रदान कर रही है| कृपया इस ओर ध्यान दें तथा श्री वैश्य सेवा समिति जैसी संस्थाओं को अपने सहयोग, मार्गदर्शन, एवं उत्साह प्रदान कर हमें प्रेरित करते रहें ताकि हम अतिरिक्त उर्जा के साथ समाज की सेवा कर सकें|
   मुझे आपका सहयोग यथावत मिलता रहा तो मेरे पंखों को परवाज को होसला मिलेगा क्योंकि किसी ने कहा है-
मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके इरादों में जान होती है|
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उडान होती है||

पुनः सहयोग याचना के साथ - 

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