महेंद्र नारायण सिंह यादव।
पत्रकारिता में साक्षात्कार लेना सबसे महत्वपूर्ण और सर्वाधिक इस्तेमाल में आने वाला कार्य है। साक्षात्कार औपचारिक हो सकता है, जो साक्षात्कार के रूप में सीधे ही प्रकाशित या प्रसारित किया जाता है, और अनौपचारिक भी हो सकता है, जिसके जरिए मिलने वाली जानकारी को पत्रकार अपनी खबर या लेख में इस्तेमाल कर सकता है। इस तरह से हम देखते हैं कि पत्रकारिता एक तरह से साक्षात्कार पर ही आधारित है। पत्रकार अपनी रिपोर्टिंग के सिलसिले में तमाम लोगों से मिलता है और उनसे बात करके जानकारी जुटाता है, वह साक्षात्कार ही है। हालाँकि, इस तरह के अनौपचारिक साक्षात्कार में दर्शकों या पाठकों तक पत्रकार और संबंधित व्यक्ति की बातचीत पूरी तरह से सामने नहीं आ पाती, जबकि औपचारिक साक्षात्कार में पत्रकार और संबंधित व्यक्ति की बातचीत एक तरह से हूबहू सामने आ जाती है।
अनौपचारिक साक्षात्कार खबर, रिपोर्ट या लेख के रूप में सामने आती है, इसलिए उसका अध्ययन पत्रकारिता की इन्हीं विधाओं के तहत हो जाता है। यहाँ हम औपचारिक साक्षात्कार की ही चर्चा करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि साक्षात्कार किस तरह से एक कला है। किसी व्यक्ति से बातचीत करके मनचाही जानकारी हासिल करना एक कला नहीं तो और क्या है। अनेक मौके ऐसे होते हैं जब साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति खुद ही आपको सब कुछ बताने लगता है, और कई बार ऐसा होता है कि उस व्यक्ति से कुछ भी कहलवाना तो दूर, उससे समय ले पाना तक मुश्किल होता है।
जानकारी न देने के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे कि-
• संबंधित व्यक्ति गंभीर रूप से घायल या बीमार हो
• संबंधित व्यक्ति अपने कार्य में बहुत व्यस्त हो।
• किसी जानकारी के उजागर होने से उस व्यक्ति का नुकसान हो सकता हो।
• पूर्व में पत्रकारों से बात करने का उसका अनुभव अच्छा न रहा हो।
• पत्रकार पर विश्वास न हो, और उस व्यक्ति को यह लगे कि साक्षात्कार के दौरान कही गई बातों को तोड़-मरोड़कर छापा या प्रसारित किया जा सकता है।
• पत्रकार या उसके संस्थान को महत्वहीन समझे जाने पर भी कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति साक्षात्कार देने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहता और केवल बड़े पत्रकारों को ही साक्षात्कार देना पसंद करता है।
• किसी तरह के मौजूदा या संभावित विवाद से बचने के लिए कोई व्यक्ति साक्षात्कार से मना करने लगता है।
• संबंधित व्यक्ति अपने कार्य में बहुत व्यस्त हो।
• किसी जानकारी के उजागर होने से उस व्यक्ति का नुकसान हो सकता हो।
• पूर्व में पत्रकारों से बात करने का उसका अनुभव अच्छा न रहा हो।
• पत्रकार पर विश्वास न हो, और उस व्यक्ति को यह लगे कि साक्षात्कार के दौरान कही गई बातों को तोड़-मरोड़कर छापा या प्रसारित किया जा सकता है।
• पत्रकार या उसके संस्थान को महत्वहीन समझे जाने पर भी कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति साक्षात्कार देने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहता और केवल बड़े पत्रकारों को ही साक्षात्कार देना पसंद करता है।
• किसी तरह के मौजूदा या संभावित विवाद से बचने के लिए कोई व्यक्ति साक्षात्कार से मना करने लगता है।
हालाँकि, सबसे पहले तो यही तय करना होता है कि साक्षात्कार किसका लिया जाए। यह पता करना कि किस व्यक्ति का साक्षात्कार आवश्यक है। ऐसा व्यक्ति राजनेता हो सकता है, फिल्म या टीवी सितारा हो सकता है, खिलाड़ी हो सकता है, अधिकारी हो सकता है, अपराधी अथवा अपराध का आरोपी हो सकता है, या फिर कोई ऐसा साधारण आदमी भी हो सकता है जिसकी तात्कालिक रूप से कुछ खास अहमियत हो रही हो।
इसके बाद बारी आती है, उस व्यक्ति से संपर्क करने की और उससे समय लेने की। इसमें पत्रकार की जान-पहचान काफी काम आती है। इसके अलावा, बात करने की कला का भी काफी महत्व है। जब व्यक्ति साक्षात्कार देने का इच्छुक न हो, तब उसे यह यकीन दिलाना होता है कि साक्षात्कार देने से उसका पक्ष जनता के सामने आएगा तो उसका कुछ हित ही होगा। यह न भी समझाया जा सके, तो कम से कम यह तो यकीन दिलाना ही पड़ता है कि उसका अहित कुछ भी नहीं होगा। ऐसे में वाकचातुर्य का ही इस्तेमाल करना पड़ता है क्योंकि कई बार वाकई ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं कि साक्षात्कार देने के बाद संबंधित व्यक्ति की मुश्किलें बढ़ना तय ही होती हैं।
पत्रकार के रूप में आपका उत्तरदायित्व जनता के प्रति होता है, न कि उस व्यक्ति के प्रति जिसका कि साक्षात्कार आप लेना चाहते हैं। उस व्यक्ति के निजी हितों की सुरक्षा आपके लिए कतई मायने नहीं रखती, लेकिन अगर उसका साक्षात्कार लेना है, और साक्षात्कार में मनमाफिक जानकारी निकलवानी है तो उसे मिथ्या ही सही, यह यकीन दिलाना पड़ जाता है कि आप उसके किसी न किसी रूप में हितैषी हैं।
समझदारी और शिष्टता की सहायता से भी संबंधित व्यक्ति या उस तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ का कार्य कर रहे व्यक्ति को प्रभावित किया जा सकता है। किसी न किसी तरह का कनेक्शन उससे निकालने में सफलता मिल जाए, तो आपका कार्य आसान हो सकता है। ऐसा किसी परिचित का संदर्भ देकर किया जा सकता है। संबंधित व्यक्ति अगर किसी न किसी तरह से उस पत्रकार से जुड़ा महसूस करने लगे, तो बहुत संभव होता है कि वह साक्षात्कार देने को तैयार हो जाए।
अगर उस व्यक्ति से आपको मिलने का समय मिल जाता है, तो अपनी बातचीत के जरिए आप उसकी अनेक शंकाओं का समाधान कर सकते हैं और उसे साक्षात्कार के लिए तैयार कर सकते हैं।
अब बारी आती है साक्षात्कार लेने की। कुशल पत्रकार के लिए साक्षात्कार के पूर्व अच्छी तैयारी करना जरूरी है और यही अच्छे पत्रकार का धर्म भी है। कितने भी अनुभवी पत्रकार क्यों न हो जाएँ, कुछ समय आगामी साक्षात्कार के लिए ज़रूर निकालना चाहिए, और अगर नए पत्रकार हैं तब तो अच्छी तैयारी के अलावा कोई और रास्ता होता भी नहीं।
जिस व्यक्ति का साक्षात्कार लेने जा रहे हों, उससे जुड़ी अधिक से अधिक जानकारी आपके पास होनी चाहिए। उसकी संस्था, विभाग, राजनीतिक दल की भी जानकारी होनी चाहिए। अगर उसकी कुछ विशेष उपलब्धियाँ रहीं हैं तो उनकी जानकारी भी होनी चाहिए और साक्षात्कार के दौरान उचित अवसर पर उनका जिक्र भी कुछ इस तरह से कर देना चाहिए ताकि संबंधित व्यक्ति को इस बात का आभास हो जाए कि उसे वाकई आपके बारे में पहले से कुछ जानकारी है। तैयारी इस हद तक तो हर हाल में होनी ही चाहिए कि उस व्यक्ति या उसके काम से जुड़ी बुनियादी जानकारी आपको उससे न पूछना पड़े।
सबसे अच्छा तरीका यही है कि शुरू में कुछ हल्की फुल्की बातें करके उस व्यक्ति को अधिक से अधिक सहज कर दिया जाए। अपने कार्य और उस साक्षात्कार के प्रति अपनी गंभीरता भी जाहिर करना उचित रहता है।
कोई भी कठिन या मुश्किल प्रश्न एकदम से नहीं करना चाहिए। पहले किसी न किसी तरह से भूमिका बनाते हुए उसे इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि वह मुश्किल प्रश्न का जवाब देने की स्थिति में आ जाए। उस व्यक्ति के मन में अपने प्रति विश्वास जितना ज्यादा आप पैदा कर सकें, उतने ही आसानी से आप मुश्किल सवालों के जवाब आप उससे हासिल कर सकेंगे।
वास्तव में आपके मन में उस साक्षात्कार की पहले से एक रूपरेखा होनी चाहिए। हाँ, यह जरूर है कि वास्तविक साक्षात्कार कई बार उसे रूपरेखा के अनुरूप नहीं भी हो सकता है। इस बात के लिए भी आपको मानसिक रूप से पहले से तैयार होना चाहिए और अगर साक्षात्कार किसी अलग तरह की राह पर चल पड़े तब उसे जबरदस्ती अपनी सोच के अनुरूप ढालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
अगर आप कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न करने जा रहे हैं तो आपके पास ज़रूरी जानकारी लिखित रूप में मौजूद होनी चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर आप उसका इस्तेमाल कर सकें।
जब आप किसी महत्वपूर्ण मसले पर साक्षात्कार ले रहे हों, तो आपके पास उस व्यक्ति द्वारा कही गई बातों का पूरा रिकॉर्ड भी होना चाहिए। आप बातचीत रिकॉर्ड भी कर सकते हैं और लिखित रूप में भी दर्ज कर सकते हैं। कई बार बातचीत के समय का भी हिसाब रखना उचित होता है। अगर संबंधित व्यक्ति ने कोई विवादास्पद बात कही है तो उसे प्रकाशित करने से पहले आपका संपादक उसका पक्का प्रमाण भी माँग सकता है। कई बार वह व्यक्ति आपको कोई जानकारी दे तो देता है या कोई बयान आपके सामने दे तो देता है, लेकिन साक्षात्कार के प्रकाशित या प्रसारित होने पर कई बार इतनी मुश्किल भी पड़ जाती है कि वह इन्कार कर देता है और कह देता है कि ऐसा उसने कहा ही नहीं। ऐसे में आपके पास पुख्ता प्रमाण रहना चाहिए।
कई बार साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति आपको जानकारी देना ही नहीं चाहता बल्कि आपसे कुछ जानकारी हासिल करना भी चाहता है। ऐसे में आपको बहुत सतर्क रहना होगा। उस व्यक्ति को कुछ जानकारी देनी भी होगी, ताकि वह निराश महसूस न करे, साथ ही आपको अपने अन्य स्रोतों की गोपनीयता भी कायम रखनी होगी। बेहतर यही है कि आप उसे वही बातें बताएँ जो आप सार्वजनिक रूप से किसी अन्य को भी सहज रूप से बता सकते हों। आपके बताने का तरीका यह जरूर हो सकता है कि उस व्यक्ति को वह जानकारी विशिष्ट लगे।
जिसका साक्षात्कार आप ले रहे हों, उसकी हर बात ध्यान से सुनना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी कही हर बात सही नहीं हो सकती। वह व्यक्ति आपको गुमराह भी कर सकता है और भ्रामक जानकारी दे सकता है। वैसे भी पत्रकार के अंदर संदेह करने की स्वस्थ भावना होनी भी चाहिए। जहाँ कहीं आपको लगे कि आपको सही जानकारी नहीं दी जा रही है, वहाँ आप विनम्रतापूर्वक कुछ स्पष्टीकरण भी माँग सकते हैं। स्पष्टीकरण वह भले ही न दे, लेकिन कम से कम आप इस बात के लिए आश्वस्त हो सकते हैं कि आपका संदेह सही था। वैसे जब भी आप उसकी दी जानकारी को चुनौती दें तो उसके पक्ष में केवल अपने विचार नहीं, बल्कि तथ्य रखें।
सच्चा इंसान कई बार महत्वपूर्ण तथ्य या छोटे-मोटे तथ्य बताना भूल भी जाता है। ऐसे में भी उससे स्पष्टीकरण लेना ज़रूरी हो जाता है। ध्यानपूर्वक सुनने से भी आपको अनुमान लग सकता है कि वह व्यक्ति सही बोल रहा है या मनगढ़ंत बातें बना रहा है। ऐसे में उससे यह कहना चाहिए कि वह शुरू से और क्रमवार तरीके से जानकारी दे। जहाँ लगे कि जानकारी सही नहीं दी जा रही है, वहाँ कुछ देर बाद एक बार फिर से वही प्रश्न घुमा-फिराकर पूछा जा सकता है। अगर उसकी बात में सच्चाई नहीं होगी तो उसके जवाब में कुछ भिन्नता आ सकती है।
आरंभ में साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को सहज करने के लिए भले ही आप ज्यादा बोल लें, लेकिन बाद में आपको कम से कम बोलना चाहिए और उस व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका देना चाहिए। यह समझना आपके लिए मुश्किल नहीं है कि आपको जानकारी तभी तक मिलेगी, जब तक कि वह व्यक्ति बोल रहा है। जब तक आप बोलते रहेंगे, आपको कोई जानकारी नहीं मिल सकती।
साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति अगर विषय से हटकर भी कुछ बोल रहा हो तो उसे अनावश्यक रूप से मत रोकिए। उसकी बात पूरी होने पर उसे वापस मूल विषय पर ले आइए, लेकिन उसके पहले अगर वह कुछ और बताने लगता है, तो उसे भी सुनते रहिए। कई बार ऐसे में आपको कुछ अनपेक्षित जानकारी भी मिल सकती है, जो आपके काम अलग तरह से आ सकती है।
संबंधित व्यक्ति कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, उसके सामने शिष्टता जरूर रखें लेकिन अपनी मर्यादा और स्तर को भी न गिरने दें। अगर आप सामने वाले के रौब में आ गए और उसके बात करने या उसके साथ बैठने से ही अपने आपको कृतार्थ महसूस करने लगे तो न तो आप मनचाहे प्रश्न पूछ पाएँगे और न ही उसके दिल में अपने या अपने पेशे के लिए कोई सम्मान पैदा कर पाएँगे। बड़े नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों और शक्तिशाली लोगों का साक्षात्कार लेते समय यह बातें ज़रूर मन में रखनी चाहिए। आप उस व्यक्ति से कुछ सहानुभूति ज़रूर दिखाएँ लेकिन इतना भी न हो कि आप एकदम उसका पक्ष लेते दिखने लगें। तटस्थता हर हाल में कायम रखना चाहिए।
साक्षात्कार पूरा हो जाने के बाद अपने नोट्स आदि को भी चेक कर लें। थोड़ा समय निकालकर उन पर एक बार नजर डालना इसलिए भी बेहतर होता है कि कहीं कोई बात या तथ्य स्पष्ट नहीं है तो आप वहीं पर उससे पूछकर स्पष्ट कर सकते हैं। यह बताने में झिझक नहीं होनी चाहिए कि आप अपना ही लिखा ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं।
तथ्यों का क्रम और महत्वपूर्ण जानकारियों पर भी एक नजर डालकर पूरी तरह से आश्वस्त हो जाना चाहिए। याद रखिए, एक बार आप वहाँ से निकल गए, तो इन बातों को क्रॉस चेक कर पाना आपके लिए मुमकिन नहीं होगा।
अगर कोई व्यक्ति कतई बात करने को तैयार नहीं है तो उसके सामने पहले से लिखित प्रश्न भेजने का भी प्रस्ताव रखा जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि वह असुविधाजनक प्रश्नों का जवाब देने से इन्कार कर दे।
महेंद्र नारायण सिंह यादव : महाराजा कॉलेज छतरपुर (म.प्र.) से स्नातक और भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, तथा गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर। विगत 20 वर्षों से रेडियो, टेलीविज़न की पत्रकारिता तथा अनुवाद और संपादन कार्य में संलग्न। विशेष तौर पर रेडियो के लिए साक्षात्कार लेने, परिचर्चाओं व परिसंवादों का संचालन करने का विशिष्ट और विस्तृत अनुभव रहा है। चिल्ड्रंस बुक ट्रस्ट के हिंदी संपादक के रूप में भी कार्य किया। संप्रति दिल्ली में समाचार चैनल ‘समय म.प्र. छत्तीसगढ़’ में पत्रकारिता।
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