राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य जिसकी भाषा राजस्थानी आज अपने ही घर में उपेक्षा का शिकार हैं। ऐसा लगता हैं की यह कोई घृणित भाषा हैं। आजकल के युवा वर्ग जो की राजस्थान की माटी में पैदा हुआ हैं उस पर एक अजीब सा भूत सवार हुआ हैं, उसे लगता हैं की अगर उसके मुह से राजस्थानी शब्द टपक गए तो उसका मान कम हो जायेगा, लोग उसे बुद्धिमान नहीं समझेंगे और वह गवारो की श्रेणी में आ जायेगा।
राजस्थानी भाषा हमारी विरासत हैं। जिसका इतिहास भी सेकड़ो वर्ष पुराना हैं। जबसे राजपुताना तब से राजस्थानी हैं। अगर हमारी तरह हमारे पूर्वजो ने भी इस बोली से घृणा की होती तो शायद ये हमें आज विरासत में न मिलती और नहीं आज हम इससे वाकिफ होते।
कितनी मधुर एवं संस्कारी भाषा हैं मारवाड़ी। शायद मेरी जहा तक सोच व ज्ञान हैं इसके समान दुनिया में मृदु व मीठी कोई भाषा नहीं हैं। फिर भी हम इसका गला घोटने में लगे हुए है या फिर इसके साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं की ये खुद ही आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाये। में चकित रह जाता हूँ तब जब राजस्थान की मिट्टी में पले बढे माँ बाप अपने बच्चो से हिंदी या अंग्रेजी में बात करते हैं और अगर भूल वश बच्चे के मुह से मारवाड़ी शब्द निकल जाये तो उसे हेय दृष्टी से देखकर डाटते हैं। उनके अनुसार अगर वो ऐसा करते हैं और उनके बच्चे हिंदी या अंग्रेजी में बात करते हैं तो वे अन्य लोगो की दृष्टी में कई गुना सभ्य बन जायेंगे और उनके बच्चे बुद्धिमान गिने जायेंगे।
किस मानसिकता के शिकार हैं वे लोग?
अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं उन्हें। जिस मिट्टी में खेले जिस बोली में पहला शब्द बोला उसे अपने बच्चो को नहीं देना चाहते हैं। इंग्लॅण्ड में झाड़ू साफ-सफाई करने वाला भारत के एक आई.ऐ.एस से अच्छी अंग्रेजी बोलता हैं तो क्या वो झाड़ू लगाने वाला आई.ऐ.एस. से ज्यादा होशियार हैं, या फिर दिल्ली व यूपी में अनपढ़ लोग भी फरार्टदार हिंदी बोलते तो क्या वे उस महाराष्ट्रियन डॉक्टर से ज्यादा बुद्धिमान हो गए जिसे शायद उस गति से हिंदी न आती हो।
भाषा बोलने भर से बुद्धिमता को नहीं आँका जाता सकता हैं। एक बात और में किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हूँ। पर हाँ मुझे अपनी मातृभाषा से प्यार हैं। राजस्थानी लोगो से कहूँगा की अगर उनमे सामर्थ्य हैं तो दुनिया की हर भाषा सीखे पर हाँ कम से कम घर में तो अपने पूर्वजो की भाषा अपनी मातृभाषा में सवांद करे। अपने बच्चो को राजस्थानी बोलने से हतोत्साहित न करे उन्हें प्रोत्साहित करे। इस भाषा में कई शब्द तो ऐसे हैं जिनका किसी अन्य भाषा में विकल्प भी नहीं हैं फिर भी हम इसके साथ सोतेला व्यवहार करते हैं। राजस्थान का गोरवपूर्ण व समृद्ध इतिहास रहा हैं। इसी धरा पर शायद सबसे ज्यादा वीर पैदा हुए थे। ये मिट्टी वीरो, संतो और भामाशाहो की जन्मभूमि हैं। और मुझे गर्व हैं की वे सभी वीर संत और भामाशाह मेरी मातृभाषा मारवाड़ी में सवांद करते थे।
विश्व के किसी भी व्यक्ति से जब हम उसकी राष्ट्रभाषामें बात करतेे हैं तो वह तुरंत उसके समझ में आ जाती हैं पर अगर वही बात हम उसकी मातृभाषा में करते हैं तो उसको समझ ही नहीं अपितु उसकी दिल की गहरायो में भी उतर जाती हैं। ये फर्क हैं राष्टभाषा और मातृभाषा में।
मेरी उन तथाकथित सभ्य अभिभावकों से गुजारिश होगी की वे आने वाली पीढ़ी को मारवाड़ी से अनभिज्ञ न करे। सभ्य बनने का जरिया मात्र हिंदी या अंग्रेजी बोलना नहीं हैं। हमें तो ये प्रयत्न करना चाहिए की पूर्वजो की इस अनूठी विरासत को भारत सरकार सविंधान में जगह दे। राजस्थानी भाषा बकोल पाठ्यकर्म में शामिल हो ।
मारवाड़ी हमारी आन बान शान और पहचान हैं।इस शब्द मात्र ने हमें विश्व में व्यवसायी मधुरभाषी और संयमी कोम की परिभाषा दी हैं। एक व्यक्ति के लिए शायद वह स्थिति मरने समान हैं जब उसे अपनी मातृभाषा का ज्ञान न हो । तो क्या हम आने वाले वर्षो में एसी तस्वीर ही बनाने में लगे हैं। दुनिया की हर कोम को अपनी मातृभाषा से प्यार होता हैं। पर हम मारवाड़ी कब समझेंगे – भगवान सद्ध्बुधि दे।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल॥
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल॥
No comments:
Post a Comment