जिज्ञासा, मानव चरित्र की सबसे महत्वपूर्ण विशिष्टता है । आम व्यक्ति के लिए समाचारपत्र पढ़ना एक आवश्यकता बन गई है, इसके माध्यम से वह अपने विचारों को पुष्ट और परिष्कृत करता है ।
शिक्षा के प्रसार के कारण समाचारपत्रों की प्रसार-मात्रा भी बढ़ती जा रही है । परिणामस्वरूप समाचार जगत में नित नए समाचारपत्र, दैनिक, सप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं की वृद्धि होती जा रही है । प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रेस चौथी शक्ति के रूप में प्रसिद्ध है । इन चारों शक्ति-स्तम्भों पर ही शासन टिका है ।
संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका प्रजातंत्र की अन्य शक्तियां है । प्रजातंत्र जनता के लिए जनता द्वारा निर्मित शासन व्यवस्था है । इसमें शासन और सरकार का आधार जनता होती है । शासन के कार्यो पर जनता के सहयोग के सिद्धांत पर प्रजातंत्र आधारित होता है । इस प्रकार प्रजातंत्रीय शासन के चारों शक्ति-स्तम्भ न केवल परस्पर संबद्ध होते हैं, बल्कि प्रजातंत्र की मुख्य शक्ति जनता के प्रति समान रूप से जिम्मेदार भी होते हैं ।
यह प्रजातंत्र की सफलता में प्रेस की सशक्त भूमिका की ओर इंगित करता है । समाचारपत्र का सबसे प्रमुख कार्य विश्व में घटित हो रही प्रत्येक घटना से हमें अवगत कराना है । समाचारपत्र राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक और अन्य धार्मिक और अन्य विभिन्न विषयों पर अपने दृष्टिकोण तथा विचारों को अभिव्यक्त करते है । इसमें कोई आश्चर्य नही है कि लोकमत काफी हद तक समाचारपत्र की गुणवत्ता और उसे चलाने वाले पत्रकारों की कुशलता और एकता पर निर्भर करता है ।
जनमत को तैयार करने के अतिरिक्त प्रेस, सरकार और जनता के बीच की कड़ी के रूप मैं कार्य करता है । सरकार अन्तत: जनता के सामने जवाबदेह होती है । देश में हो रहे दिन-प्रति-दिन के विकास कार्यो, दीर्घ और लघु योजनाओं की जानकारी जनता को देना सरकार का कर्तव्य ही नहीं उसके सत्ता में रहने के लिए आवश्यक भी है । सरकार की सफलता आम जनता के साथ उसके संबंध और संबंधों के कायम रखने के लिए नीतियों कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर आधारित होती है ।
जनता को इन लागू और विचाराधीन योजनाओं, परियोजनाओं कार्यक्रमों, नीतियों की सूचना मिलनी चाहिए । दूसरी ओर, सरकार की विभिन्न नीतियों, कार्यक्रमों आदि पर जनता की प्रतिक्रिया से संबंद्ध विभाग को सूचित करना प्रेस का दायित्व है । कभी-कभी सरकार को जनता की इच्छा के विरुद्ध निर्णय लेने पड़ते हैं । इससे राजनैतिक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
इस प्रकार की विकट स्थिति पर पत्रकार को बढ़ा-चढ़ाकार खबरें नहीं छापनी चाहिए । सुननाको को सन्तुलित और निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करना पत्रकार का प्रमुख दायित्व है । इस प्रकार की गैर-जिम्मेदारी पूर्ण पत्रकारिता से देश में राजनीतिक अस्थिरता का खतरा उत्पन्न हो जाता है । प्रेस ही जनता और सरकार के मध्य सम्पर्क-सूत्र होता है । इसके अतिरिक्त वह स्वतंत्र रूप से भी जनता तक सरकार की गतिविधियों की सूचनाएं पहुँचाने का कार्य निभाता है ।
कभी-कभी सरकार के अनुचित कार्यो के विरूद्ध जनता को जागृत करने का कर्तव्य भी निभाता है । यह समय-समय पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा लिए गए गलत निर्णयों के प्रति जनता को आगाह करता है और निर्णय को सुधारने या वापस लेने के लिए दबाव बनाता है ।
प्रेस लोगों के समीक्षात्मक शक्ति को विकसित करता है । अमरीका में राष्ट्रपति निक्सन पर महाभियोग लगाने में प्रेस की मुख्य भूमिका थी । प्रेस समाज के विभिन्न वर्गो के लोगों के बीच सम्पर्क स्थापित करता है । इसके माध्यम से साम्प्रदायिक तनाव को कम किया जा सकता है और औद्योगिक विवादों का समाधान ढूंढा जा सकता है । प्रेस के माध्यम से दो वर्गो का विश्लेषण और विवाद की आंतरिक जड़ों तक पहुंच कर उसका हल खोजा जा सकता है । इस प्रकार बहुआयामी समस्याओं के समाधान में भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं ।
इन बातों पर विचार करने से यह सिद्ध होता है कि प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिए पत्रकार का दायित्व अत्यंत महत्वपूर्ण है । लेकिन तस्वीर का दूसरा रूख भी है । लोकतंत्र में पत्रकार की भूमिका बहुत आम होती है, लेकिन कुछ पत्रकार निजी स्वार्थवश अथवा दबाव के कारण अपने दायित्वों को ठीक ढंग से पूरा नहीं कर पाते हैं ।
भ्रष्ट पत्रकारों द्वारा सूचना को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने, किसी खबर के विशिष्ट अंश को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करने या महत्वपूर्ण सूचना को दबा देने से जनता में उत्तेजना फैल जाती है । प्रेस तथ्य को कल्पना और कहानी से जोड़ कर अपने कुछ पाठकों की मनोवृत्ति की पुष्टि करता है । इससे पत्रकारिता के स्तर में गिरावट आ रही है ।
जिस देश में सभी अपने स्वार्थो के वशीभूत हैं, और भ्रष्टाचार की संस्कृति पनप रही है, वहाँ पत्रकार भी इन दानवों से भला कैसे बच सकते हैं? पत्रकार छोटे-मोटे झगड़ों को साम्प्रदायिक रंग में रंगकर विभिन्न वर्गो में उत्तेजना फैलाने से लेकर प्रमुख व्यक्तियों और राजनीतिज्ञों को ब्लैकमेल करने जैसे कार्यो को आसानी से कर सकते हैं ।
प्रजातंत्र में पत्रकार के ये असीमित अधिकार एक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न उठाते हैं । क्या प्रेस की शक्ति पर प्रतिबंध आवश्यक है? दूसरे शब्दों में प्रेस द्वारा ‘पीत पत्रकारिता’ को प्रसार के रोकने का अधिकार सरकार को होना चाहिए । इन संबंध में दूसरा प्रश्न यह उठता है कि यदि स्वयं सरकार ही अनैतिक भ्रष्ट लोगों के हाथ में आ जाए और प्रेस उनका समर्थन करे, तो जनकल्याण का क्या हाल होगा? सरकार के कठोर नियंत्रण में प्रेस सरकार का एक अचूक शस्त्र बन जाती है ।
जिससे स्वस्थ विचारों के प्रकाशन में बाधा आएगी । पत्रकारों पर केवल प्रेस परिषद् का ही नियंत्रण होना चाहिए । इससे ही स्वस्थ पत्रकारिता का विकास होगा, जो प्रजातंत्र की अनिवार्य आवश्यकता है ।
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