Tuesday, May 10, 2016

पृथ्वी बनने के साथ नर और मादा की संरचना हुई .समय- काल, परिस्थिति केअनुसार समाज की रचना हुई .समाज की मुख्य धुरी नर और ,मादा रहे हैं इनके जीवन स्तर को व्यवस्थित रखने हेतु नियम, कायदे, कानून की जरुरत महसूस हुई . बदलाव होते रहे , होते रहे जिसका परिणाम आज के नियम कानून हैं .इनमें भी कमियाँ हैं . समाज बदलाव हेतु करवट बदल रहा है बदलाव होना स्थिति जन्य है , अनिवार्य है . ऐसे ही बदलावों से आज समाज वर्त्तमान स्वरूप को प्राप्त हुआ है . निकट भविष्य में , वर्त्तमान परिस्थिति को देखते हुए ,इसमें और भी बदलाव सन्निकट हैं . बदलते स्वरूप के परिप्रेक्ष्य में बदलाव अपरिहार्य है .नर -नारी जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए बराबर के हिस्सेदार हैं . साथ -साथ चलते हुए कुछ “हूँ -तूँ ” होती रही है , आगे भी होती रहेगी . यही जीवन की मिठास है . साथ -साथ रहने की अनिवार्य शर्त है , एक दुसरे का सम्मान . सम्मान बनाए रखने के लिए जरुरी है एक दुसरे का सहयोग , वह भी बिना किसी भेद भाव के . जैसे परिवार में साहचर्य बनाए रखने के लिए एक दुसरे का सम्मान, सहयोग जरुरी है , उसी प्रकार समाज में भी यह निहायत जरुरी है . परिवार , समाज का ही एक छोटा प्रतिरूप है .कई परिवारों की टूटन एक दिन समाज की टूटन बन जाती है .
इसी तरह एक टी.वी.चैनल ने “स्टिंग आपरेशन ” किया जिसमें विभिन्न शहरों में सड़क पर अकेली लड़की को पाकर लोग फब्तियां कस रहे थे , इशारे कर रहे थे , विभिन्न भंगिमाएं बना रहे थे . यह सब देख कर लड़की का बाप होना दुर्भाग्य पूर्ण लगता है . कन्या भ्रूण ह्त्या पर कानून बनाए जा रहे हैं , बनाना भी चाहिए , यह अनैतिक भी है . परन्तु वही कन्या जब लड़की बनती है तो उसकी अस्मत से खेलने वाले गली कुचे से लेकर सार्वजनिक स्थानों तक में मिल जायेंगे . लड़की कहीं भी सुरक्षित नहीं है . लड़कियों की चीत्कार सुन कर कलेजा मुंह को आता है .ये लडके छेड़ने वाले , लूटने वाले कौन हैं ? ये भी हमारे समाज के ही अंग हैं , हममे से ही एक हैं .क्या इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है ?इनकी उच्छ्रिन्खालता एवं अनैतिक कार्यों के लिए क्या ये ही जिम्मेदार हैं ?क्या इनके माँ- बाप ,या समाज जिम्मेदार नहीं है ?

विचारों में विरोध होना , समाज के सुदृढ़ एवं जागरुक होने की एक निशानी है .इसी से समाज आगे बढ़ता है . नई नई पद्धतियाँ , नए नए विचार सामने आते रहते हैं .सामाजिक संरचना में सतत बदलाव की प्रक्रिया आगे बढ़ती रहती है . सामाजिक बदहाली को चिन्हित किया जा सकता है .परिवर्तन की बयार बहती ही रहती है .ऐसे समाज को एक जागरुक समाज की संज्ञा दी जा सकती है .विरोध, विरोध की तरह हो तो यह समाज के लिए फलदायी हो सकता है .परन्तु विरोध के लिए विरोध हो तो यह सामाजिक विघटन का कारक बनता है .यहीं से संघर्ष का सूत्र पात होता है .समाज में नाना प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न होती है और विकास की जगह विकास चक्र उलटी गति से घूमना प्रारम्भ हो जाता है .

विरोध सकारात्मक हो तो उसके क्या कहने . नए नए विचार , नई नई बातें सामने आती रहती हैं , समाज बदलता रहता है .अव्यवहारिक बातों का ,सोचों का, कार्य प्रणालियों का खंडन मंडन होता रहता है . विवेक शील समाज उसे धारण कर आगे बढ़ता रहता है , परन्तु शर्त यह है कि विरोध मर्यादा में ,नीतिगत नियमों के अंतर्गत , सामाजिक परिवेश को सुदृढ़ करने हेतु , मानवता के हित में हो . धरातल से जुडा विरोध सदैव से ही हितकारी रहा है और हितकारी रहेगा भी .हम केवल आज का ही देख कर ही कोई भी विरोध करते हैं , परन्तु दीर्घकाल में उसका क्या असर होगा इस तरफ हमारा ध्यान नहीं रहता . शक्ति प्रदर्शन ही अब विरोध का एक मात्र अस्त्र रह गया है . विद्वत जन तो अब मुखर होते ही नहीं .

हर क्षेत्र में माफिया तत्त्व रक्त- बीज की तरह तैयार हो रहा है .इनकी न कोई जाति होती है ,न कोई विचार होता है , न कोई धर्म होता है .इनका तो धर्म केवल पैसा है .किसी भी तरह से , कैसे भी प्राप्त करना इनका उद्देश्य है . इनसे किसी पार्टी ,किसी विचार , किसी सिद्धांत , किसी समाज से कोई लेना देना नहीं होता है .ये सत्ता के चुम्बक में आश्चर्य जनक रूप से लिपट जाते हैं यह सत्ता दल के ऊपर है कि वह जानबूझ कर या मजबूरीवश इनका सहयोगी बने .
अपने एवं अपने लोगों को उपकृत करने के लिए नियमों को तोड़ मरोड़ कर जिस प्रकार ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्ट किया गया , उसका ताज़ा उदाहरण अभी अभी बीता है 
अभी तो सरकार अधिकारियों को भ्रष्ट कह कर उनका थोक में तबादला करेगी .तबादला उद्योग परवान चढ़ेगा . सरकार यदि स्वच्छ प्रशासन चाहती है तो अच्छी पोस्टिंग कही जाने वाली जगहों पर स्वच्छ छवि के लोगों को पदासीन किया जाना ही उचित होगा .ट्रांसफर पोस्टिंग में नेताओ की सिफारिस को अवैध आचरण घोषित कर दिया जाय .इसी से सरकार की छवि भी अच्छी होगी ,अन्यथा लीक से हट कर काम करने वाले नरेंद्र कुमार जैसे अधिकारी रोज मारे जाते रहेगें .

यह आभासी दुनिया भी बड़ी अजीब चीज है . यहाँ कुछ का कुछ दिखाई देता है . हाथी को घोड़े की पूंछ और घोड़े को चूहे की पूंछ लगी होती है .यहाँ न तो कोई बड़ा होता है और नहीं छोटा .सभी अपनी शक्ति- अनुसार , अपनी सोच अनुसार परवाज़ कर रहे होते हैं , फिर भी कुछ अपने को तोपखाना समझते हैं . कवि, लेखक ,कहानी कार , आलोचक ,समीक्षक ,टीकाकार सभी विश्व में शांति की कामना करते हैं , विकास की बात करते हैं , परन्तु जब आभासी दुनिया में शांति हो तो इन्हें खलती है ,कुछ मज़ा नहीं आ रहा है , ऐसी सोच प्रस्फुटित होती रहती है .
कला, साहित्य ,संस्कृति का विकास सदैव उस देश के शांतिकाल में होता है , यही हालत इस आभासी दुनिया की भी है .कितनी अच्छी कवितायेँ , कितने अच्छे लेख , कितनी अच्छी समालोचनाएँ ,लगातार आ रही थीं , पढ़ने का मन करता था ,कुछ कहने का मन करता था .परन्तु दुर्भाग्य देखिये तीन- चार दिन के अंतराल में यहाँ क्या से क्या हो गया .एक लेखक का लेख फीचर्ड नहीं हुआ तो जैसे सुनामी आ गई , उनके चाहने वाले सभी अपना -अपना बोरिया -बिस्तर समेटने की धमकी देने लगे हैं. कहीं इनकी भी हालत बाबा की बकरिया के मनाने जैसी न हो जाय .


दोपहर को समाचार देख रहा था . पुलिस नौजवानों को घेर कर “वाटर कैनन ” चला रही थी .यह क्रम करीब २० मिनट चला होगा .नौजवान लडके लड़कियां टस से मस नहीं हुई . पुलिस कुछ देर शांत रही .फिर पुलिस ने एक जगह इकट्ठा होना शुरू किया .अब बेंत उठाये ,भांजते लडके -लड़कियों की तरफ पुलिस के “जवान ” दौड़ पड़े , जो अपराधियों को देखते ही गली कोने में दुबक जाते हैं . कुछ लडके लड़कियां घायल हुई .एक अम्बुलेंस से एक घायल को ले जाया जा रहा था .एक लड़की को कुछ लोग उठा कर ले जा रहे थे . अब आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं .लोग पानी से आँख साफ कर रहे हैं . फिर आकर डट जा रहे हैं .ये लोग भाड़े के नहीं हैं ,जो भाग जाय . फिर और फिर और फिर ये घायल होकर आँख धोकर फिर डट जा रहे हैं . सभी २५ से कम उम्र के नज़र आ रहें हैं “वी वांट जस्टिस ” के नारे लगाए जा रहे हैं . न्याय की मांग करना सभी का अधिकार है ,वे भी मांग रहे हैं .फिर पानी की बौछार छोड़ी जा रही है . आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं .
पुलिस का भगाना ,लोगों का फिर वापस आना , यह प्रक्रिया चल रही है . किसी सरकारी प्रतिनिधि द्वारा उपस्थित होकर कोई आश्वाशन नहीं दिया जा रहा है . संसद के सदस्य छुट्टी मनाने जा चुके हैं .क्या आज उत्पन्न हो रही स्थिति को शांत करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना उचित नहीं होगा ?इसका निर्णय कौन करेगा ? क्या राष्ट्र पति को आगे आकर घोषणा नहीं करनी चाहिए ? कानून तो संसद बनाएगी . सांसद तो रजाई ओढ़ कर अपने घर में सो रहे हैं . यहाँ ठंढक में बच्चों के ऊपर “वाटर कैनन ” छोड़ा जा रहा है . ये क्या मांग रहे हैं ? बस इनका तो कहना है ” न्याय चाहिए “, जो इनका अधिकार है . देश में हो रहे अपराधों के विरुद्ध आधी आबादी को न्याय दिलाने के लिए क्या विशेष अदालतों का गठन उचित नहीं है ? कम समय में कार्यवाही पूर्ण कर न्याय की घोषणा की मांग क्या अनुचित है ? समाज में ऐसे वातावरण की मांग जिसमे आधी आबादी शान्ति से , सकून से ,इज्जत से रह सके , क्या अनुचित है ? गुजरात में आधी आबादी ने क्या करिशमा किया , यह सभी जानते हैं , नेताओं को भी सोचना चाहिए . अब समय आ गया है कि इनकी बात को भी गंभीरता से देखा जाय , सोचा जाय . ये बँटी नहीं हैं , अब एक जुट हो रही हैं . मैंने देखा है , एक वीराने में एक महिला को बच्चा होने वाला था , वहां उपस्थित सभी महिलायें एक होकर उसकी सेवा में जुट गईं . वहां न तो कोई अछूत था , न कोई हिन्दू ,न कोई मुसलमान , बस वहां कोई था तो केवल महिलायें . अपने ऊपर हो रहे जुल्म को ख़त्म करने के लिए अब इन्हें ही पहल करनी होगी और ये पहल कर रही हैं आज दिल्ली में हुए प्रदर्शन में महिलाओं -लड़कियों की तादात सबसे ज्यादा थी . यह जागरूकता की निशानी है और शुभ संकेत भी . इन नेताओं को उस स्थिति का अंदाजा भी लगाना चाहिए जब आधी आबादी एक जुट हो जायेगी . समय को पहचानिए ,अन्यथा बहुत देर हो जायेगी !

मानव की सबसे बड़ी बिमारी अहंकार है . अहंकार मनुष्य में दबंग बनने की लालसा उत्पन्न करता है . अब यहीं से आदमी का पराभव प्रारंभ होता है . जितना बड़ा दबंग होगा उसे उतनी ही बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है . यह इस क्षेत्र का इतिहास रहा है .दबंगता का यह सिलसिला बदलता रहता है . कोई हफ्ते भर का , कोई महीने का , कोई साल का , कोई बहुत बड़ा हुआ तो कुछ साल का , फिर वही चार दिन की चाँदनी – - – - – - – - – - – .दूसरा आयेगा वह भी इसी तरह का दबंग बनने का प्रयास करता रहेगा , हम आप उसकी दबंगई देखने ,सुनने ,बर्दाश्त करने के लिए अभिशप्त रहेगें .कोई भी सिकंदर महान की वसीयत को पढ़ने को तैयार नहीं है ,जिसमे उसने कफन के बाहर दोनों हाथ रखने की वसीयत की थी ताकि लोग जान सकें कि विश्व विजेता भी जाते समय इस संसार से कुछ भी लेकर जा नहीं सका .

सरकार कोई स्वरूप नहीं होती . यह चुने हुए लोगों में से चुने हुए लोगों का एक समूह होती है ,जिसे जनता समाज के लिए नियम , कायदे , कानून बनाने के लिए चुनती है . जनता के ये प्रतिनिधि समय -समय पर समाज की आवश्यकता के अनुरूप कानून बनाते रहते हैं .

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