आज प्रातःस्मरणीय रैगर समाज के महान पुत्र स्वामी श्री आत्माराम 'लक्ष्य' जी की जयंती हैं। आज के दिन को हम युवा दिवस के रूप में भी मनाते हैं। स्वामी श्री आत्माराम 'लक्ष्य' जी सदैव ही मेरे आदर्श रहे हैं और मात्र मुझे ही नहीं बल्कि मुझ जेसे अनगिनत युवाओ को उनका जीवन समाज सेवा हेतु प्रेरित और प्रेरणा देता हैं।
जैसा की सभी जानते हैं किसी भी समाज की सबसे अहम एवम् अनमोल संपदा उसके युवा होते है। आज भारत विश्व समुदाय में सर्वाधिक युवा शक्ति वाला राष्ट्र है, इसी वजह से सारे उन्नत राष्ट्र भारत में अपना भविष्य देखते है,चूँकि उन्हें पता है की हर ऊंचाई और सफलता पाने के लिए युवाओ के जोश और जूनून की महती आवश्कता होती है,और यह गुण मेरे समाज के नवयुवको में कूट-कूट कर भरा हुआ है। आज जब हम देश-विदेश की खबरे पड़ते हैं या सुनते हैं और अगर उन खबरों में नामदेव वंशी(पंथी) या छिपा समाज के किसी व्यक्ति या नवयुवक का नाम सुनते या पढते हैं, उस वक्त गाहे-बगाहे ही हमारा सीना गर्व से चौडा हो जाता हैं,और नामदेव वंशी(पंथी) या छिपा होने का गर्व हमारे तन बदन में उद्दत होने लगता है।
एक रैगर होने के नाते में भी इस प्रकार के कई अनुभव महसूस कर चुका हूँ।
मगर क्या इस प्रकार के कुछ एक अनुभव मात्र से हम समाज को किसी शिखर तक पंहुचा पाएंगे? अगर हम यूँही सपनो की सुनहरी चादर ओढ़े, भूतकाल के मखमली बिस्तर पर, अपनी निष्क्रियता का तकिया लगाये सोये रहे तो समाज को उन्नत, अग्रिम और कुरीतियो से मुक्त समाज बनाने का सपना शायद कभी पुरा नही हो पायेगा।
आज जिस प्रकार युवा शक्ति का असंयमित, असंगठित और उद्देश्यहीन दोहन हो रहा है, वो किसी अनमोल धरोहर का व्यर्थ अपव्यय ही कहा जा सकता है। जिस प्रकार मानव उर्जा के स्त्रोत सूर्य की असंख्य किरणे इस चराचर ब्रह्मांड में बिखर कर धरती की गोद में ही समां जाती है, और उसका कोई महत्व नही आंका जाता है, क्योंकि ये मानव के लिए प्रतिदिन की दिनचर्या मात्र सी महसूस होती हैं, मगर उसी सूर्य की कुछ चंद किरणों को एक उत्तल लेंस की सहायता से किसी एक बिन्दु पर केंद्रित करने से कुछ ही क्षण में वो आग लगा देता है, उसी प्रकार आज समाज के बिखरे हुए उर्जा के स्त्रोत युवाओ को संगठित और अनुशासित करके उनकी उर्जा को किसी सकारात्मक लक्ष्य और समाज उत्थान के कार्य हेतु अगर प्रयोग में लिया गया तो, यह युवा शक्ति हर लक्ष्य को भेदती हुई, सफलता के नए आयाम गढकर समाज का नाम हिमालय की बुलंदियों तक पंहुचा सकेंगे। आज समाज के बिखरे हुए लोगो को जोड़ना आवश्यक हैं। जो की किसी न किसी वजह से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से दूर हैं या शायद आज तक उन्हें कोई सही मार्गदर्शन ही नही मिल पाया हो (जैसा स्वयं महाबली और महापराक्रमी राम भक्त हनुमान के साथ हुआ था की वो अपने अन्दर निहित अपार शक्ति को भी नही पहचान पा रहे थे और बाद में जामवंत जी के मार्गदर्शन से ही वो उस शक्ति का सही प्रयोग कर पाए थे)
चाहे जो भी वजह हैं अथवा रही हो, हमें सारी पुरानी चीजो को भूलते हुए एक नई उर्जा एवं उत्साह से समाज हित में कूदना होगा। इस हेतु समाज के वरिष्ठ लोगो को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज करवानी होगी, चूँकि हम हमेशा से ही अपने अग्रजो और बड़े बूढ़ो के पद चिह्नों पर अग्रसर होते आए हैं।
इसके लिए समाज के बुद्धिजीवी लोगो को यह सोचना होगा के किसी भी प्रकार से इस बिखरी हुई ऊर्जा को संगठित करे। अपने आस पास के युवाओ को अपने अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करे और उन्हें भी समाज हित में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करे। तभी समाज एवं राष्ट्र का कल्याण सम्भव हैं।
जैसा की सभी जानते हैं किसी भी समाज की सबसे अहम एवम् अनमोल संपदा उसके युवा होते है। आज भारत विश्व समुदाय में सर्वाधिक युवा शक्ति वाला राष्ट्र है, इसी वजह से सारे उन्नत राष्ट्र भारत में अपना भविष्य देखते है,चूँकि उन्हें पता है की हर ऊंचाई और सफलता पाने के लिए युवाओ के जोश और जूनून की महती आवश्कता होती है,और यह गुण मेरे समाज के नवयुवको में कूट-कूट कर भरा हुआ है। आज जब हम देश-विदेश की खबरे पड़ते हैं या सुनते हैं और अगर उन खबरों में नामदेव वंशी(पंथी) या छिपा समाज के किसी व्यक्ति या नवयुवक का नाम सुनते या पढते हैं, उस वक्त गाहे-बगाहे ही हमारा सीना गर्व से चौडा हो जाता हैं,और नामदेव वंशी(पंथी) या छिपा होने का गर्व हमारे तन बदन में उद्दत होने लगता है।
एक रैगर होने के नाते में भी इस प्रकार के कई अनुभव महसूस कर चुका हूँ।
मगर क्या इस प्रकार के कुछ एक अनुभव मात्र से हम समाज को किसी शिखर तक पंहुचा पाएंगे? अगर हम यूँही सपनो की सुनहरी चादर ओढ़े, भूतकाल के मखमली बिस्तर पर, अपनी निष्क्रियता का तकिया लगाये सोये रहे तो समाज को उन्नत, अग्रिम और कुरीतियो से मुक्त समाज बनाने का सपना शायद कभी पुरा नही हो पायेगा।
आज जिस प्रकार युवा शक्ति का असंयमित, असंगठित और उद्देश्यहीन दोहन हो रहा है, वो किसी अनमोल धरोहर का व्यर्थ अपव्यय ही कहा जा सकता है। जिस प्रकार मानव उर्जा के स्त्रोत सूर्य की असंख्य किरणे इस चराचर ब्रह्मांड में बिखर कर धरती की गोद में ही समां जाती है, और उसका कोई महत्व नही आंका जाता है, क्योंकि ये मानव के लिए प्रतिदिन की दिनचर्या मात्र सी महसूस होती हैं, मगर उसी सूर्य की कुछ चंद किरणों को एक उत्तल लेंस की सहायता से किसी एक बिन्दु पर केंद्रित करने से कुछ ही क्षण में वो आग लगा देता है, उसी प्रकार आज समाज के बिखरे हुए उर्जा के स्त्रोत युवाओ को संगठित और अनुशासित करके उनकी उर्जा को किसी सकारात्मक लक्ष्य और समाज उत्थान के कार्य हेतु अगर प्रयोग में लिया गया तो, यह युवा शक्ति हर लक्ष्य को भेदती हुई, सफलता के नए आयाम गढकर समाज का नाम हिमालय की बुलंदियों तक पंहुचा सकेंगे। आज समाज के बिखरे हुए लोगो को जोड़ना आवश्यक हैं। जो की किसी न किसी वजह से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से दूर हैं या शायद आज तक उन्हें कोई सही मार्गदर्शन ही नही मिल पाया हो (जैसा स्वयं महाबली और महापराक्रमी राम भक्त हनुमान के साथ हुआ था की वो अपने अन्दर निहित अपार शक्ति को भी नही पहचान पा रहे थे और बाद में जामवंत जी के मार्गदर्शन से ही वो उस शक्ति का सही प्रयोग कर पाए थे)
चाहे जो भी वजह हैं अथवा रही हो, हमें सारी पुरानी चीजो को भूलते हुए एक नई उर्जा एवं उत्साह से समाज हित में कूदना होगा। इस हेतु समाज के वरिष्ठ लोगो को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज करवानी होगी, चूँकि हम हमेशा से ही अपने अग्रजो और बड़े बूढ़ो के पद चिह्नों पर अग्रसर होते आए हैं।
इसके लिए समाज के बुद्धिजीवी लोगो को यह सोचना होगा के किसी भी प्रकार से इस बिखरी हुई ऊर्जा को संगठित करे। अपने आस पास के युवाओ को अपने अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करे और उन्हें भी समाज हित में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करे। तभी समाज एवं राष्ट्र का कल्याण सम्भव हैं।
“सपने उन्ही के पुरे होते हैं ,जिनके सपनो में जान होती हैं!
पंखो से कुछ नही होता ,अरमानो से उड़ान होती हैं !!”
पंखो से कुछ नही होता ,अरमानो से उड़ान होती हैं !!”
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