समाज की भूमिका
दिल्ली गैंग रेप का नाबालिग दोषी उत्तर प्रदेश के बंदायू जिले का रहने वाला है। वह 11 साल की उम्र में अपने परिवार का पेट भरने के लिए दिल्ली कमाने के लिए आ गया। मां बताती है कि ‘‘वह बहुत संवेदनशील बच्चा था और गांव में सभी से डरता था; मुझे लगता है कि वह दिल्ली जाकर बुरी संगत में पड़ गया जिसकी वजह से उसने यह घिनौना अपराध किया’’। वह बताती है कि ‘‘बेटे से अंतिम मुलाकात छह-सात साल पहले दिल्ली जाने के समय ही हुई थी। दिल्ली जाने से पहले आखिरी बार उसने हमसे कहा कि मैं अपना ख्याल रखूं और फिर वो बस पकड़ कर शहर के लिए रवाना हो गया। वहां जाने के बाद दो-तीन साल तक उसने अपनी कमाई का पैसा भेजा लेकिन उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला, मुझे लगता था कि वह अब जिन्दा नहीं होगा।’’
सवाल यह है कि जो बच्चा 11 साल की उम्र में घर से बाहर आता है, वह हर अच्छे बच्चे की तरह संवेदनशील, दूसरों की इज्जत करने वाला और परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला होता है। वह जब अपने परिवार से दूर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आता है तो वह इतना क्रूर और हिंसक हो जाता है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है- वह परिवार या हमारा समाज और हम?
सवाल यह है कि जो बच्चा 11 साल की उम्र में घर से बाहर आता है, वह हर अच्छे बच्चे की तरह संवेदनशील, दूसरों की इज्जत करने वाला और परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाला होता है। वह जब अपने परिवार से दूर शहर में रोजी-रोटी की तलाश में आता है तो वह इतना क्रूर और हिंसक हो जाता है कि वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है- वह परिवार या हमारा समाज और हम?
दूसरी घटना दिल्ली की मदनगीर इलाके की है। 15-17 साल उम्र के पांच बच्चे दिन-दहाड़े, बाजार में एक सचिन (उम्र 20 साल) नामक व्यक्ति को चाकू गोद को मार डालते हैं। यह घटना बाजार में लगे सीसीटीवी में आ जाती है जिसकी निशानदेही पर पुलिस इन अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लेती है। ये ‘अभियुक्त’ पुलिस के पूछ-ताछ में बताते हैं कि उनको इस हत्या का कोई अफसोस नहीं है, उन्होंने जो किया है वह अच्छा किया है। सचिन गली का बदमाश था, वह मौजमस्ती करने के लिए कम उम्र के बच्चों से चोरी, छिनौती करवाता था। इन ‘अभियुक्तों’ में से एक की गली में राशन की दुकान थी और सचिन इस पर दबाव डाल कर नमकीन के चार-पांच पैकेट मंगवाया करता था। दूसरे ‘अभियुक्त’ के पिता बिल्डर के पास लेबर का काम किया करते थे, उस पर सचिन पैसे चुराने का दबाव डालता था। यह सिलसिला करीब एक साल से चल रहा था और सचिन के शिकार ये सभी ‘अभियुक्त’ हो चुके थे। इन ‘अभियुक्तों’ ने रोज-रोज के झंझट से तंग आकर सचिन को ठिकाने लगाने का मन बना लिया। आखिर इस तरह के अपराध के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या हमारा शासन-प्रशासन सही काम करता तो इन ‘अभियुक्तों’ द्वारा हत्या करने की नौबत आती? सचिन, जिसकी उम्र 20 साल थी, इस तरह की मौज-मस्ती करने का तरीका कहां से सीखा? इसके लिए कौन दोषी है? क्या हम ऐसे अभियुक्तों को जेल भेज कर सुधार पाएंगे या अपराध की दुनिया में ढकेलेंगे?
अगर हम सचमुच बाल अपराधों की संख्या को कम करना चाहते हैं तो सबसे पहले बालश्रम को सख्ती से रोकना होगा और गरीब शोषित-पीडि़त तबकों के बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं एवं उचित शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। सर्वोपरी शोषण-दमन एवं अन्याय पर आधारित आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था को बदलना करना होगा।
No comments:
Post a Comment