सपनें बुन बुन , कलियाँ चुन चुन मनोरम बेला आई ।
प्रभु कृपा और
प्यार आपका जो, घर बाजेगी शहनाई ॥
साथ दिया है सदा
सदा ही "प्रियजी" अब इतनी प्रीत निभाना
राह तकेगीं
अखियाँ "पूज्य " आप खुशियाँ बाटने आना ॥
भूल हुई या चूक
कोई हो, ध्यान सभी तज देना ।
अनमोल बड़ा है
प्रेम आपका सानिध्य "रतन रज" देना ॥
यतन-जतन कर आ ही
जाना , आप ही से सुखमय हमारा संसार है ।
पीपल सी पाती पर, कुमकुम सी स्याही और अक्षत सी पावन मनुहार है ॥
ललाहित मन , उत्सुक नयन, करबद्ध तन और दिलों में आपका प्यार है ।
मनमोहिनी सी इस
बेला में "पूज्यवर" बस आपका इंतज़ार है ॥
"सौरभ" रहे सुमन का यूं, "अम्बर" तक रहे खुलापन।
एक-दूजे के लिए
जियें, नित गहराए अपनापन॥
बढ़ता रहे समर्पण
इनका, तृप्ति सदा ये पाएं।
खुशियों की बारिश
मे भीगे, प्रेम सुधा बरसायें॥
"सुमन का सौरभ,
अम्बर को महकाए।
अनामिका को कभी
अंगूठा ना दिखलाये।"
शुक्रवार तिथि
पंद्रह, और दिसम्बर मास।
'सौरभ' को इस दिन मिले उसका 'अम्बर' खास॥
उसका 'अम्बर' खास, सुमन की खुशबू महके।
'अनामिका' के मन मे हरदम खुशियाँ
चहके॥
इनके आँगन मे रहे, सदा खुशी आह्लाद।
शुभ-विवाह के पर्व पर, मेरा आशीर्वाद॥
परिणय की बगिया
सजी, खिले सुमन चहु ओर।
'सौरभ' संग 'अनामिका', बंधे प्रेम की
डोर।।
एक कविता मे आग
है, एक कविता मे पीर।
एक दूजे के प्यार
से, सवरेगी तकदीर॥
कर्तव्यों की
तूलिका, जीवन का कैनवास।
इनके आँगन मे सदा,
उड़ती राहे सुवास॥
इन दोनों के शीश
पर, रख दें अपना हाथ।
आकर इनको भेंट दें, बस इतनी सौगात॥
सौरभ
सुमन-अनामिका अम्बर का पुनीत गठ-बन्धन।
गंध-पुष्प का
मिलन, मिले रोली से जैसे चन्दन।
छंद और कविता के
स्वर का सदा रहे लय-संगम।
जीवन के सितार से
गुंजित, रहे सर्वप्रिय सरगम।
रहे बसंत सदा
पग-पग पर, पल-पल यूं मुस्काये।
जैसे कृष्ण
बांसुरी की धुन पे , राधा का ह्रदय
रिझाये।
आजीवन इनकी सांसो
मे हो योवन स्पंदन।
इनके स्वर के इस
बन्धन का, है शत-शत अभिनन्दन।
सोने से दिन हों
इनके, चांदी जैसी राते।
सौ बसंत तक रहे
देखते, नित नूतन बरसाते।
सौरभ सुरभित रहे,
स्वस्ति-मय अनामिका कल्याणी।
महावीर भगवान की घर-आँगन मे गूंजे वाणी।
अम्बर ने पूर्ण
विराम दिया, सौरभ के चयन
प्रबंधों को।
बुन्देल-खंड का
भार मिला, कुरु-कुल के सक्षम कंधो
को॥
स्वर-अम्बर,
शब्द-सुमन के इस परिणय का है भावार्थ यही।
बेतवा नदी की धार
मिली, गंगा-जल के तट-बंधो को॥
जब तक अम्बर में
सौरभ है, जब तक यह सुमनित धरा रहे।
हे अनुज!
तुम्हारी क्षमता का, तूणीर हमेशा भरा
रहे॥
मैं शब्द साधको
के कुल का हूँ, ज्येष्ठ तुम्हारा
पिता तुल्य।
हे अनुज वधू!
आशीष तुम्हे, सिंदूर हमेशा हरा
रहे॥
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आशीर्वाद दें, इन बच्चों को कि वे दोनों मिलकर एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकें !
आप सबको आदर
सहित......
इस नेह पत्रिका
के जरिये
आमंत्रण भेज रहा
सब को !
अंजलि भर, आशीषों की है
बस चाह, हमारे बच्चों को !
दिल से निकले
आशीर्वाद ,दुर्गम पथ
सरल बनायेंगे !
विधि-गौरव के
नवजीवन में, सौभाग्य पुष्प बिखराएंगे !
दिव्या सतीश का
कुल गौरव
एक विदुषी को घर
लाया है
विमला के घर, स्नेह सहित ,
विश्वास ,राज का पाया है !
अब हाथ पकड़ विधि
का गौरव, कुल का सम्मान बढ़ाएंगे
जिस नेह को
दुनिया याद रखे, वह प्यार
सभी में बाँटेंगे !
चंदा कुटीर में
गरिमा और,
हँसते इशान,रोली, अक्षत
अर्चना थाल,नूपुर, कंगन ,
जलकलश,खड़े दरवाजे पर
विधि रथ आने पर
स्वागत में, ये सबसे
पहले जायेंगे !
गौरैया कोयल चहक
चहक कर, स्वागत गीत सुनायेंगे
!
आशीष नेह से दें
इनको,
समृद्ध,यशस्वी हों दोनों !
पैरों की आहट से
इनके ,
झंकार उठे , वीरानों में !
गुलमोहर के
वृक्षों ने भी,उस दिन को इकट्ठे फूल किये
कहते हैं, उस दिन झूम झूम, फूलों को वे बरसाएंगे !
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बिटियाँ
"रानी" हम सबकी दुलारी है ।
घर-आँगन की यह
शोभा न्यारी है ॥
भगवती सृजन कर
सृष्टि में आई है ।
अब विवाह आयोजन
की अनुपम छटा छाई है ॥
"श्री
केदारधाम " में विशाल परिहार है ।
पहले भी सब आए थे, पुन: "मीठी मनुहार" है ॥
अबके भी
पधारियेगा यह दिल की पुकार है ।
केवल अनुग्रह की
बात नहीं "श्रद्धेय" यह आपका प्यार है ॥
रूठना मनाना तो
दुनिया की रीत है ।
मनुहार बड़ी नहीं
बड़ी आपकी प्रीत है ॥
न बहाने बनाना, न अपनों को भूलाना ।
डगर निहारेंगीं
पलकें, दरस दे राहें सजाना ॥
'मुनियाँ' और 'मुन्नी' की लाज रख जाना ।
"पूज्य
श्री" आगमन से खुशियों को दुगनी बनाना ॥
मेरी असाहित्यक रचनाएं बिकाऊ नहीं और न पुरस्कार की चाहत रखती हैं, सहज मन की अभिव्यक्ति हैं, अगर कुछ पढ़ने आये हैं तो निराश नहीं होंगे ! विद्रोही स्वभाव,अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलता है ! निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना और डर कर किसी के आगे सिर झुकाना बिलकुल पसंद नहीं ! ईश्वर अन्तिम समय तक इतनी शक्ति एवं सामर्थ्य अवश्य बनाये रखे कि जरूरतमंदो के काम आता रहूँ , भूल से भी किसी का दिल न दुखाऊँ ..
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