Tuesday, May 3, 2016

कहाँ गए वो प्यारे दिन जब…

➨ रात को सोने से पहले परिवार के सारे सदस्य घंटो बातें किया करते थे और अब सब हाथ में मोबाइल लिए हुए सो जाते हैं..
➨ लाइट जाती थी तब पूरा मोहल्ला बड़ के पेड़ के नीचे बैठ कर एक दूसरे की टांग खीचते थे,
अब तो इन्वर्टर की वजह से घर से ही नहीं निकलते..
.
➨ चूल्हे की आग पर डेगची में गुड़ वाली चाह्(चाय) की महक 10 किल्ले दूर तक जाती थी,
आज चाय गैस पर बनती है महक छोडो स्वाद का भी पता नहीं लगता..
.
➨ औरतें घूँघट काढती थी और लडकिया चुन्नी लेती थी,
अब कवारियां ढाठा मार के सुल्ताना डाकू बन रही हैं
और ब्याही हुई सर भी नहीं ढक रही..
➨ पहले पूरे दिन हारे पर कढोणी में दूध उबलता था और सीपी से खुरचन तार के खाते थे और उस दूध की दही इतना स्वादिष्ट होताथा अब तो
अब तो गए दुकान पर 15 का दही पाउच ले लिया..
.
➨ कच्ची फूस की छान में पानी मार कर झोपडी में सोने में बहुत मज़ा आता थी बिलकुल ठंडी हो जाती थी
अब वैसे ठंडक एसी भी नहीं दे रहे..
➨ दारु बड़े बूढे पीते थे अब तो 8वीं से ही पीना शुरू कर देते हैं..🍺🍺🍺
➨ पहले ज़मीन को माँ समझा जाता था
अब एक जमीन का टुकड़ा जिसे बेच कर कोठी बना लो एक कार ले लो और रोज उस कार में बैठ कर दारु और मुर्गा चलने दो..
➨पहले सभी एक दूसरे को राम राम बोलते थे अब हेल्लो हाय
पहले लड़ाइयां इज़्ज़त और सम्मान के लिए लड़ी जाती थी अब दारु पीकर अपने आप हो जाती है

No comments:

Post a Comment