बदलते परिप्रेक्ष्य के साथ ही विश्व की भौगोलिक परिस्थितियां भी बदल रही है समस्याओं से घिरी इस दुनिया में आज सबसे बड़ी समस्या प्राणी, संसार और वनस्पति जगत के बीच बिगड़ता हुआ संतुलन है । आबादी की बेतहाशा बढ़ोतरी ने इस संतुलन को बिगाड़ा है और हमारे लिए आर्थिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। कटते जंगलों से मानव-सभ्यता को भी खतरा पैदा हो गया है। मौसम में काफी परिवर्तन आ गया है। ऐसे में वृक्षारोपण करना मानवता को संजीवनी देना ही है , कागजों में विरक्षरोपण की बाते होती है लेकिन धरातल पर गंभीरता कभी नजर नही आती लेकिन डेगाना के मनोज पेंटर ने क्षेत्र में लगभग ५००० पौधे लगाकर मिशाल कायम की है उन्होंने सिर्फ पौधा लगाकर इतिश्री नही की है बल्कि कई वर्षों से वे सुबह जल्दी उठकर पौधों को सींचते है उनकी देखभाल करते है ये उनके लिए दिनचर्या का अंग है उनके प्रयास को शहरवासी भी सराह रहे है
डेगाना के मुक्ति धाम को ग्रीन गार्डन का रूप दिया
जेहन में मुक्ति धाम का नाम आते है वीरानी सी नजर आती है लेकिन मनोज पेंटर की वृक्षारोपण मुहीम से आज डेगाना के मुक्ति धाम ने हरे भरे गार्डन का रूप ले लिया है जिसे देखते ही लोगों की निगाहें बरबस ही रूक जाती है उन्होंने कतारबद्ध तरीके से ऐसे पौधे लगाये जिससे मुक्ति धाम ने सुंदर बगीचे का रूप ले लिया है वे रोजाना यहा पहुंचकर पौधों की देखभाल करते है वही डेगाना के राजकीय महाविद्यालय में पेड़ों की श्रृंखला नजर आती है ये मनोज पेंटर की ही देन है वे वर्षों से इन पौधों की देखरेख कर रहे है वे कई स्तरों पर प्रयास करके पौधों का जुगाड़ करते है और उन्हें उगाकर पेड़ बनने तक उसकी सेवा करते है
पेड़ों के जरिये ही मानवता बच सकेगी - मनोज
पर्यावरण प्रेमी मनोज कहते है कि अपने लिए तो सभी जीते हैं हमे दूसरों के लिए भी जीना चाहिए तभी जीवन सार्थक होगा। पेंड़ हमें सद्भावना एवं त्याग की प्रेरणा देते हैं इसलिए हम सबको मिलकर पेड़ लगाने चाहिए। पेड़ों पर आप कितनी भी अमानवीयता करें लेकिन वे हर हाल में फल एवं छाया नि:स्वार्थ भाव से देते रहेंगे। वृक्ष मानव ही नहीं प्राणी जगत के लिए भी लाभकारी होते हैं। पेड़ों की सहायता से ही आगामी युग में मानवता को बचाया जा सकेगा
इस बात की पीड़ा है कि नागौर में पिछले एक साल से क़ानून और व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति को लेकर नागौर जिले के मंत्रियों और अन्य जनप्रतिनिधियों और राजनेताओं ने जिले का नेतृत्व नहीं किया है। एकाध अपवाद को छोड़कर केवल अफसरों के भरोसे व्यवस्था नहीं चलती है। अफसरों की अपनी सीमा होती है। वे निर्णय का पालन कर सकते हैं,निर्णय लेना उनका काम थोड़े ही है ?
ऐसा ही नागौर नहर परियोजना और अवैध टोल वसूलियों के बारे में हुआ है। नागौर नहर को लेकर आजतक गंभीरता से कोई बैठक ही जिले में नहीं हुई है। नहर का नाम आते ही अजीब सी चुप्पी छा जाती है। न मुख्यमंत्री ने अपने दौरों में न किसी प्रभारी या परबारी मंत्री ने अब तक जनता को परियोजना के बारे में जनता को जागरूक किया है। कि किस दिन कैसे पानी किस गाँव या शहर में पहुंचेगा,
बार बार कहा जाता हैं पानी लाकर रहेंगे ! कब लायेंगे, कोई कागज तो दिखाओ, ठेकेदार कम्पनियां बीच बीच में भाग जाती हैं और फिर सरकार को काम रोक देने का कहकर ब्लेकमेल करती हैं। ब्लेकमेल के बाद घालमेल ! ऐसा ही टोल वसूली मामले में हुआ है। बिना सुविधाओं के और बिना काम पूरा किये अजमेर से नागौर के बीच टोल चालू हो गया है। सारे बाईपास अधूरे पड़े हैं, बाडी घाटी से जयपुर रोड तक का 22 किमी का सबसे महत्वपूर्ण काम और रेन, मूंडवा, भडाना और इनाणा के बाईपास बाकी हैं।
और भाई ने जयपुर में कुछ लोगों से मिलकर टोल शुरू कर दिया। डरी हुई और अबोध जनता को लूटने में कोई पीछे नहीं हैं। जब बाड़ ही खेत को खाए तो ? भला हो मीडिया और अदालत का कि जनता की आस ज़िंदा है। हर मामले में. वर्ना तो राजतन्त्र से भी बुरा हाल है।
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